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उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९०

दोहा

भिन्न भिन्न मै दीख सबु अति बिचित्र हरिजान ।

अगनित भुवन फिरेउँ प्रभु राम न देखेउँ आन ॥८१ -क॥

सोइ सिसुपन सोइ सोभा सोइ कृपाल रघुबीर ।

भुवन भुवन देखत फिरउँ प्रेरित मोह समीर ॥८१ -ख

चौपाला

भ्रमत मोहि ब्रह्मांड अनेका । बीते मनहुँ कल्प सत एका ॥

फिरत फिरत निज आश्रम आयउँ । तहँ पुनि रहि कछु काल गवाँयउँ ॥

निज प्रभु जन्म अवध सुनि पायउँ । निर्भर प्रेम हरषि उठि धायउँ ॥

देखउँ जन्म महोत्सव जाई । जेहि बिधि प्रथम कहा मैं गाई ॥

राम उदर देखेउँ जग नाना । देखत बनइ न जाइ बखाना ॥

तहँ पुनि देखेउँ राम सुजाना । माया पति कृपाल भगवाना ॥

करउँ बिचार बहोरि बहोरी । मोह कलिल ब्यापित मति मोरी ॥

उभय घरी महँ मैं सब देखा । भयउँ भ्रमित मन मोह बिसेषा ॥

दोहा

देखि कृपाल बिकल मोहि बिहँसे तब रघुबीर ।

बिहँसतहीं मुख बाहेर आयउँ सुनु मतिधीर ॥८२ -क॥

सोइ लरिकाई मो सन करन लगे पुनि राम ।

कोटि भाँति समुझावउँ मनु न लहइ बिश्राम ॥८२ -ख॥

चौपाला

देखि चरित यह सो प्रभुताई । समुझत देह दसा बिसराई ॥

धरनि परेउँ मुख आव न बाता । त्राहि त्राहि आरत जन त्राता ॥

प्रेमाकुल प्रभु मोहि बिलोकी । निज माया प्रभुता तब रोकी ॥

कर सरोज प्रभु मम सिर धरेऊ । दीनदयाल सकल दुख हरेऊ ॥

कीन्ह राम मोहि बिगत बिमोहा । सेवक सुखद कृपा संदोहा ॥

प्रभुता प्रथम बिचारि बिचारी । मन महँ होइ हरष अति भारी ॥

भगत बछलता प्रभु कै देखी । उपजी मम उर प्रीति बिसेषी ॥

सजल नयन पुलकित कर जोरी । कीन्हिउँ बहु बिधि बिनय बहोरी ॥

दोहा

सुनि सप्रेम मम बानी देखि दीन निज दास ।

बचन सुखद गंभीर मृदु बोले रमानिवास ॥८३ -क॥

काकभसुंडि मागु बर अति प्रसन्न मोहि जानि ।

अनिमादिक सिधि अपर रिधि मोच्छ सकल सुख खानि ॥८३ -ख॥

चौपाला

ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना । मुनि दुर्लभ गुन जे जग नाना ॥

आजु देउँ सब संसय नाहीं । मागु जो तोहि भाव मन माहीं ॥

सुनि प्रभु बचन अधिक अनुरागेउँ । मन अनुमान करन तब लागेऊँ ॥

प्रभु कह देन सकल सुख सही । भगति आपनी देन न कही ॥

भगति हीन गुन सब सुख ऐसे । लवन बिना बहु बिंजन जैसे ॥

भजन हीन सुख कवने काजा । अस बिचारि बोलेउँ खगराजा ॥

जौं प्रभु होइ प्रसन्न बर देहू । मो पर करहु कृपा अरु नेहू ॥

मन भावत बर मागउँ स्वामी । तुम्ह उदार उर अंतरजामी ॥

दोहा

अबिरल भगति बिसुध्द तव श्रुति पुरान जो गाव ।

जेहि खोजत जोगीस मुनि प्रभु प्रसाद कोउ पाव ॥८४ -क॥

भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपा सिंधु सुख धाम ।

सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम ॥८४ -ख॥

चौपाला

एवमस्तु कहि रघुकुलनायक । बोले बचन परम सुखदायक ॥

सुनु बायस तैं सहज सयाना । काहे न मागसि अस बरदाना ॥

सब सुख खानि भगति तैं मागी । नहिं जग कोउ तोहि सम बड़भागी ॥

जो मुनि कोटि जतन नहिं लहहीं । जे जप जोग अनल तन दहहीं ॥

रीझेउँ देखि तोरि चतुराई । मागेहु भगति मोहि अति भाई ॥

सुनु बिहंग प्रसाद अब मोरें । सब सुभ गुन बसिहहिं उर तोरें ॥

भगति ग्यान बिग्यान बिरागा । जोग चरित्र रहस्य बिभागा ॥

जानब तैं सबही कर भेदा । मम प्रसाद नहिं साधन खेदा ॥

दों०माया संभव भ्रम सब अब न ब्यापिहहिं तोहि ।

जानेसु ब्रह्म अनादि अज अगुन गुनाकर मोहि ॥८५ -क॥

मोहि भगत प्रिय संतत अस बिचारि सुनु काग ।

कायँ बचन मन मम पद करेसु अचल अनुराग ॥८५ -ख॥

अब सुनु परम बिमल मम बानी । सत्य सुगम निगमादि बखानी ॥

निज सिद्धांत सुनावउँ तोही । सुनु मन धरु सब तजि भजु मोही ॥

मम माया संभव संसारा । जीव चराचर बिबिधि प्रकारा ॥

सब मम प्रिय सब मम उपजाए । सब ते अधिक मनुज मोहि भाए ॥

तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुतिधारी । तिन्ह महुँ निगम धरम अनुसारी ॥

तिन्ह महँ प्रिय बिरक्त पुनि ग्यानी । ग्यानिहु ते अति प्रिय बिग्यानी ॥

तिन्ह ते पुनि मोहि प्रिय निज दासा । जेहि गति मोरि न दूसरि आसा ॥

पुनि पुनि सत्य कहउँ तोहि पाहीं । मोहि सेवक सम प्रिय कोउ नाहीं ॥

भगति हीन बिरंचि किन होई । सब जीवहु सम प्रिय मोहि सोई ॥

भगतिवंत अति नीचउ प्रानी । मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी ॥

दोहा

सुचि सुसील सेवक सुमति प्रिय कहु काहि न लाग ।

श्रुति पुरान कह नीति असि सावधान सुनु काग ॥८६॥

चौपाला

एक पिता के बिपुल कुमारा । होहिं पृथक गुन सील अचारा ॥

कोउ पंडिंत कोउ तापस ग्याता । कोउ धनवंत सूर कोउ दाता ॥

कोउ सर्बग्य धर्मरत कोई । सब पर पितहि प्रीति सम होई ॥

कोउ पितु भगत बचन मन कर्मा । सपनेहुँ जान न दूसर धर्मा ॥

सो सुत प्रिय पितु प्रान समाना । जद्यपि सो सब भाँति अयाना ॥

एहि बिधि जीव चराचर जेते । त्रिजग देव नर असुर समेते ॥

अखिल बिस्व यह मोर उपाया । सब पर मोहि बराबरि दाया ॥

तिन्ह महँ जो परिहरि मद माया । भजै मोहि मन बच अरू काया ॥

दोहा

पुरूष नपुंसक नारि वा जीव चराचर कोइ ।

सर्ब भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ ॥८७ -क॥

सोरठा

सत्य कहउँ खग तोहि सुचि सेवक मम प्रानप्रिय ।

अस बिचारि भजु मोहि परिहरि आस भरोस सब ॥८७ -ख॥

चौपाला

कबहूँ काल न ब्यापिहि तोही । सुमिरेसु भजेसु निरंतर मोही ॥

प्रभु बचनामृत सुनि न अघाऊँ । तनु पुलकित मन अति हरषाऊँ ॥

सो सुख जानइ मन अरु काना । नहिं रसना पहिं जाइ बखाना ॥

प्रभु सोभा सुख जानहिं नयना । कहि किमि सकहिं तिन्हहि नहिं बयना ॥

बहु बिधि मोहि प्रबोधि सुख देई । लगे करन सिसु कौतुक तेई ॥

सजल नयन कछु मुख करि रूखा । चितइ मातु लागी अति भूखा ॥

देखि मातु आतुर उठि धाई । कहि मृदु बचन लिए उर लाई ॥

गोद राखि कराव पय पाना । रघुपति चरित ललित कर गाना ॥

सोरठा

जेहि सुख लागि पुरारि असुभ बेष कृत सिव सुखद ।

अवधपुरी नर नारि तेहि सुख महुँ संतत मगन ॥८८ -क॥

सोइ सुख लवलेस जिन्ह बारक सपनेहुँ लहेउ ।

ते नहिं गनहिं खगेस ब्रह्मसुखहि सज्जन सुमति ॥८८ -ख॥

मैं पुनि अवध रहेउँ कछु काला । देखेउँ बालबिनोद रसाला ॥

राम प्रसाद भगति बर पायउँ । प्रभु पद बंदि निजाश्रम आयउँ ॥

तब ते मोहि न ब्यापी माया । जब ते रघुनायक अपनाया ॥

यह सब गुप्त चरित मैं गावा । हरि मायाँ जिमि मोहि नचावा ॥

निज अनुभव अब कहउँ खगेसा । बिनु हरि भजन न जाहि कलेसा ॥

राम कृपा बिनु सुनु खगराई । जानि न जाइ राम प्रभुताई ॥

जानें बिनु न होइ परतीती । बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती ॥

प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई । जिमि खगपति जल कै चिकनाई ॥

सोरठा

बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु ।

गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु ॥८९ -क॥

कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु ।

चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ ॥८९ -ख॥

बिनु संतोष न काम नसाहीं । काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं ॥

राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा । थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा ॥

बिनु बिग्यान कि समता आवइ । कोउ अवकास कि नभ बिनु पावइ ॥

श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई । बिनु महि गंध कि पावइ कोई ॥

बिनु तप तेज कि कर बिस्तारा । जल बिनु रस कि होइ संसारा ॥

सील कि मिल बिनु बुध सेवकाई । जिमि बिनु तेज न रूप गोसाई ॥

निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा । परस कि होइ बिहीन समीरा ॥

कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा । बिनु हरि भजन न भव भय नासा ॥

दोहा

बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु ।

राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु ॥९० -क॥

सोरठा

अस बिचारि मतिधीर तजि कुतर्क संसय सकल ।

भजहु राम रघुबीर करुनाकर सुंदर सुखद ॥९० -ख॥

चौपाला

निज मति सरिस नाथ मैं गाई । प्रभु प्रताप महिमा खगराई ॥

कहेउँ न कछु करि जुगुति बिसेषी । यह सब मैं निज नयनन्हि देखी ॥

महिमा नाम रूप गुन गाथा । सकल अमित अनंत रघुनाथा ॥

निज निज मति मुनि हरि गुन गावहिं । निगम सेष सिव पार न पावहिं ॥

तुम्हहि आदि खग मसक प्रजंता । नभ उड़ाहिं नहिं पावहिं अंता ॥

तिमि रघुपति महिमा अवगाहा । तात कबहुँ कोउ पाव कि थाहा ॥

रामु काम सत कोटि सुभग तन । दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन ॥

सक्र कोटि सत सरिस बिलासा । नभ सत कोटि अमित अवकासा ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०