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अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७०

दोहा

साधु सभा गुर प्रभु निकट कहउँ सुथल सति भाउ।
प्रेम प्रपंचु कि झूठ फुर जानहिं मुनि रघुराउ ॥२६१॥

चौपाला

भूपति मरन पेम पनु राखी । जननी कुमति जगतु सबु साखी ॥
देखि न जाहि बिकल महतारी । जरहिं दुसह जर पुर नर नारी ॥
महीं सकल अनरथ कर मूला । सो सुनि समुझि सहिउँ सब सूला ॥
सुनि बन गवनु कीन्ह रघुनाथा । करि मुनि बेष लखन सिय साथा ॥
बिनु पानहिन्ह पयादेहि पाएँ । संकरु साखि रहेउँ एहि घाएँ ॥
बहुरि निहार निषाद सनेहू । कुलिस कठिन उर भयउ न बेहू ॥
अब सबु आँखिन्ह देखेउँ आई । जिअत जीव जड़ सबइ सहाई ॥
जिन्हहि निरखि मग साँपिनि बीछी । तजहिं बिषम बिषु तामस तीछी ॥

दोहा

तेइ रघुनंदनु लखनु सिय अनहित लागे जाहि।
तासु तनय तजि दुसह दुख दैउ सहावइ काहि ॥२६२॥

चौपाला

सुनि अति बिकल भरत बर बानी । आरति प्रीति बिनय नय सानी ॥
सोक मगन सब सभाँ खभारू । मनहुँ कमल बन परेउ तुसारू ॥
कहि अनेक बिधि कथा पुरानी । भरत प्रबोधु कीन्ह मुनि ग्यानी ॥
बोले उचित बचन रघुनंदू । दिनकर कुल कैरव बन चंदू ॥
तात जाँय जियँ करहु गलानी । ईस अधीन जीव गति जानी ॥
तीनि काल तिभुअन मत मोरें । पुन्यसिलोक तात तर तोरे ॥
उर आनत तुम्ह पर कुटिलाई । जाइ लोकु परलोकु नसाई ॥
दोसु देहिं जननिहि जड़ तेई । जिन्ह गुर साधु सभा नहिं सेई ॥

दोहा

मिटिहहिं पाप प्रपंच सब अखिल अमंगल भार।
लोक सुजसु परलोक सुखु सुमिरत नामु तुम्हार ॥२६३॥

चौपाला

कहउँ सुभाउ सत्य सिव साखी । भरत भूमि रह राउरि राखी ॥
तात कुतरक करहु जनि जाएँ । बैर पेम नहि दुरइ दुराएँ ॥
मुनि गन निकट बिहग मृग जाहीं । बाधक बधिक बिलोकि पराहीं ॥
हित अनहित पसु पच्छिउ जाना । मानुष तनु गुन ग्यान निधाना ॥
तात तुम्हहि मैं जानउँ नीकें । करौं काह असमंजस जीकें ॥
राखेउ रायँ सत्य मोहि त्यागी । तनु परिहरेउ पेम पन लागी ॥
तासु बचन मेटत मन सोचू । तेहि तें अधिक तुम्हार सँकोचू ॥
ता पर गुर मोहि आयसु दीन्हा । अवसि जो कहहु चहउँ सोइ कीन्हा ॥

दोहा

मनु प्रसन्न करि सकुच तजि कहहु करौं सोइ आजु।
सत्यसंध रघुबर बचन सुनि भा सुखी समाजु ॥२६४॥

चौपाला

सुर गन सहित सभय सुरराजू । सोचहिं चाहत होन अकाजू ॥
बनत उपाउ करत कछु नाहीं । राम सरन सब गे मन माहीं ॥
बहुरि बिचारि परस्पर कहहीं । रघुपति भगत भगति बस अहहीं।
सुधि करि अंबरीष दुरबासा । भे सुर सुरपति निपट निरासा ॥
सहे सुरन्ह बहु काल बिषादा । नरहरि किए प्रगट प्रहलादा ॥
लगि लगि कान कहहिं धुनि माथा । अब सुर काज भरत के हाथा ॥
आन उपाउ न देखिअ देवा । मानत रामु सुसेवक सेवा ॥
हियँ सपेम सुमिरहु सब भरतहि । निज गुन सील राम बस करतहि ॥

दोहा

सुनि सुर मत सुरगुर कहेउ भल तुम्हार बड़ भागु।
सकल सुमंगल मूल जग भरत चरन अनुरागु ॥२६५॥

चौपाला

सीतापति सेवक सेवकाई । कामधेनु सय सरिस सुहाई ॥
भरत भगति तुम्हरें मन आई । तजहु सोचु बिधि बात बनाई ॥
देखु देवपति भरत प्रभाऊ । सहज सुभायँ बिबस रघुराऊ ॥
मन थिर करहु देव डरु नाहीं । भरतहि जानि राम परिछाहीं ॥
सुनो सुरगुर सुर संमत सोचू । अंतरजामी प्रभुहि सकोचू ॥
निज सिर भारु भरत जियँ जाना । करत कोटि बिधि उर अनुमाना ॥
करि बिचारु मन दीन्ही ठीका । राम रजायस आपन नीका ॥
निज पन तजि राखेउ पनु मोरा । छोहु सनेहु कीन्ह नहिं थोरा ॥

दोहा

कीन्ह अनुग्रह अमित अति सब बिधि सीतानाथ।
करि प्रनामु बोले भरतु जोरि जलज जुग हाथ ॥२६६॥

चौपाला

कहौं कहावौं का अब स्वामी । कृपा अंबुनिधि अंतरजामी ॥
गुर प्रसन्न साहिब अनुकूला । मिटी मलिन मन कलपित सूला ॥
अपडर डरेउँ न सोच समूलें । रबिहि न दोसु देव दिसि भूलें ॥
मोर अभागु मातु कुटिलाई । बिधि गति बिषम काल कठिनाई ॥
पाउ रोपि सब मिलि मोहि घाला । प्रनतपाल पन आपन पाला ॥
यह नइ रीति न राउरि होई । लोकहुँ बेद बिदित नहिं गोई ॥
जगु अनभल भल एकु गोसाईं । कहिअ होइ भल कासु भलाईं ॥
देउ देवतरु सरिस सुभाऊ । सनमुख बिमुख न काहुहि काऊ ॥

दोहा

जाइ निकट पहिचानि तरु छाहँ समनि सब सोच।
मागत अभिमत पाव जग राउ रंकु भल पोच ॥२६७॥

चौपाला

लखि सब बिधि गुर स्वामि सनेहू । मिटेउ छोभु नहिं मन संदेहू ॥
अब करुनाकर कीजिअ सोई । जन हित प्रभु चित छोभु न होई ॥
जो सेवकु साहिबहि सँकोची । निज हित चहइ तासु मति पोची ॥
सेवक हित साहिब सेवकाई । करै सकल सुख लोभ बिहाई ॥
स्वारथु नाथ फिरें सबही का । किएँ रजाइ कोटि बिधि नीका ॥
यह स्वारथ परमारथ सारु । सकल सुकृत फल सुगति सिंगारु ॥
देव एक बिनती सुनि मोरी । उचित होइ तस करब बहोरी ॥
तिलक समाजु साजि सबु आना । करिअ सुफल प्रभु जौं मनु माना ॥

दोहा

सानुज पठइअ मोहि बन कीजिअ सबहि सनाथ।
नतरु फेरिअहिं बंधु दोउ नाथ चलौं मैं साथ ॥२६८॥

चौपाला

नतरु जाहिं बन तीनिउ भाई । बहुरिअ सीय सहित रघुराई ॥
जेहि बिधि प्रभु प्रसन्न मन होई । करुना सागर कीजिअ सोई ॥
देवँ दीन्ह सबु मोहि अभारु । मोरें नीति न धरम बिचारु ॥
कहउँ बचन सब स्वारथ हेतू । रहत न आरत कें चित चेतू ॥
उतरु देइ सुनि स्वामि रजाई । सो सेवकु लखि लाज लजाई ॥
अस मैं अवगुन उदधि अगाधू । स्वामि सनेहँ सराहत साधू ॥
अब कृपाल मोहि सो मत भावा । सकुच स्वामि मन जाइँ न पावा ॥
प्रभु पद सपथ कहउँ सति भाऊ । जग मंगल हित एक उपाऊ ॥

दोहा

प्रभु प्रसन्न मन सकुच तजि जो जेहि आयसु देब।
सो सिर धरि धरि करिहि सबु मिटिहि अनट अवरेब ॥२६९॥

चौपाला

भरत बचन सुचि सुनि सुर हरषे । साधु सराहि सुमन सुर बरषे ॥
असमंजस बस अवध नेवासी । प्रमुदित मन तापस बनबासी ॥
चुपहिं रहे रघुनाथ सँकोची । प्रभु गति देखि सभा सब सोची ॥
जनक दूत तेहि अवसर आए । मुनि बसिष्ठँ सुनि बेगि बोलाए ॥
करि प्रनाम तिन्ह रामु निहारे । बेषु देखि भए निपट दुखारे ॥
दूतन्ह मुनिबर बूझी बाता । कहहु बिदेह भूप कुसलाता ॥
सुनि सकुचाइ नाइ महि माथा । बोले चर बर जोरें हाथा ॥
बूझब राउर सादर साईं । कुसल हेतु सो भयउ गोसाईं ॥

दोहा

नाहि त कोसल नाथ कें साथ कुसल गइ नाथ।
मिथिला अवध बिसेष तें जगु सब भयउ अनाथ ॥२७०॥

चौपाला

कोसलपति गति सुनि जनकौरा । भे सब लोक सोक बस बौरा ॥
जेहिं देखे तेहि समय बिदेहू । नामु सत्य अस लाग न केहू ॥
रानि कुचालि सुनत नरपालहि । सूझ न कछु जस मनि बिनु ब्यालहि ॥
भरत राज रघुबर बनबासू । भा मिथिलेसहि हृदयँ हराँसू ॥
नृप बूझे बुध सचिव समाजू । कहहु बिचारि उचित का आजू ॥
समुझि अवध असमंजस दोऊ । चलिअ कि रहिअ न कह कछु कोऊ ॥
नृपहि धीर धरि हृदयँ बिचारी । पठए अवध चतुर चर चारी ॥
बूझि भरत सति भाउ कुभाऊ । आएहु बेगि न होइ लखाऊ ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०