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किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २०

दोहा

लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज ।
राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज ॥११॥

चौपाला

उमा राम सम हित जग माहीं । गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं ॥
सुर नर मुनि सब कै यह रीती । स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती ॥
बालि त्रास ब्याकुल दिन राती । तन बहु ब्रन चिंताँ जर छाती ॥
सोइ सुग्रीव कीन्ह कपिराऊ । अति कृपाल रघुबीर सुभाऊ ॥
जानतहुँ अस प्रभु परिहरहीं । काहे न बिपति जाल नर परहीं ॥
पुनि सुग्रीवहि लीन्ह बोलाई । बहु प्रकार नृपनीति सिखाई ॥
कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा । पुर न जाउँ दस चारि बरीसा ॥
गत ग्रीषम बरषा रितु आई । रहिहउँ निकट सैल पर छाई ॥
अंगद सहित करहु तुम्ह राजू । संतत हृदय धरेहु मम काजू ॥
जब सुग्रीव भवन फिरि आए । रामु प्रबरषन गिरि पर छाए ॥

दोहा

प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ ।
राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ ॥१२॥

चौपाला

सुंदर बन कुसुमित अति सोभा । गुंजत मधुप निकर मधु लोभा ॥
कंद मूल फल पत्र सुहाए । भए बहुत जब ते प्रभु आए ॥
देखि मनोहर सैल अनूपा । रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा ॥
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा । करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा ॥
मंगलरुप भयउ बन तब ते । कीन्ह निवास रमापति जब ते ॥
फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई । सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई ॥
कहत अनुज सन कथा अनेका । भगति बिरति नृपनीति बिबेका ॥
बरषा काल मेघ नभ छाए । गरजत लागत परम सुहाए ॥

दोहा

लछिमन देखु मोर गन नाचत बारिद पैखि ।
गृही बिरति रत हरष जस बिष्नु भगत कहुँ देखि ॥१३॥

चौपाला

घन घमंड नभ गरजत घोरा । प्रिया हीन डरपत मन मोरा ॥
दामिनि दमक रह न घन माहीं । खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ॥
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ । जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ ॥
बूँद अघात सहहिं गिरि कैंसें । खल के बचन संत सह जैसें ॥
छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई । जस थोरेहुँ धन खल इतराई ॥
भूमि परत भा ढाबर पानी । जनु जीवहि माया लपटानी ॥
समिटि समिटि जल भरहिं तलावा । जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ॥
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई । होई अचल जिमि जिव हरि पाई ॥

दोहा

हरित भूमि तृन संकुल समुझि परहिं नहिं पंथ ।
जिमि पाखंड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रंथ ॥१४॥

चौपाला

दादुर धुनि चहु दिसा सुहाई । बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ॥
नव पल्लव भए बिटप अनेका । साधक मन जस मिलें बिबेका ॥
अर्क जबास पात बिनु भयऊ । जस सुराज खल उद्यम गयऊ ॥
खोजत कतहुँ मिलइ नहिं धूरी । करइ क्रोध जिमि धरमहि दूरी ॥
ससि संपन्न सोह महि कैसी । उपकारी कै संपति जैसी ॥
निसि तम घन खद्योत बिराजा । जनु दंभिन्ह कर मिला समाजा ॥
महाबृष्टि चलि फूटि किआरीं । जिमि सुतंत्र भएँ बिगरहिं नारीं ॥
कृषी निरावहिं चतुर किसाना । जिमि बुध तजहिं मोह मद माना ॥
देखिअत चक्रबाक खग नाहीं । कलिहि पाइ जिमि धर्म पराहीं ॥
ऊषर बरषइ तृन नहिं जामा । जिमि हरिजन हियँ उपज न कामा ॥
बिबिध जंतु संकुल महि भ्राजा । प्रजा बाढ़ जिमि पाइ सुराजा ॥
जहँ तहँ रहे पथिक थकि नाना । जिमि इंद्रिय गन उपजें ग्याना ॥

दोहा

कबहुँ प्रबल बह मारुत जहँ तहँ मेघ बिलाहिं ।
जिमि कपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिं ॥१५ -क॥
कबहुँ दिवस महँ निबिड़ तम कबहुँक प्रगट पतंग ।
बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग सुसंग ॥१५ -ख॥

चौपाला

बरषा बिगत सरद रितु आई । लछिमन देखहु परम सुहाई ॥
फूलें कास सकल महि छाई । जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई ॥
उदित अगस्ति पंथ जल सोषा । जिमि लोभहि सोषइ संतोषा ॥
सरिता सर निर्मल जल सोहा । संत हृदय जस गत मद मोहा ॥
रस रस सूख सरित सर पानी । ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी ॥
जानि सरद रितु खंजन आए । पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए ॥
पंक न रेनु सोह असि धरनी । नीति निपुन नृप कै जसि करनी ॥
जल संकोच बिकल भइँ मीना । अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना ॥
बिनु धन निर्मल सोह अकासा । हरिजन इव परिहरि सब आसा ॥
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी । कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी ॥

दोहा

चले हरषि तजि नगर नृप तापस बनिक भिखारि ।
जिमि हरिभगत पाइ श्रम तजहि आश्रमी चारि ॥१६॥

चौपाला

सुखी मीन जे नीर अगाधा । जिमि हरि सरन न एकउ बाधा ॥
फूलें कमल सोह सर कैसा । निर्गुन ब्रम्ह सगुन भएँ जैसा ॥
गुंजत मधुकर मुखर अनूपा । सुंदर खग रव नाना रूपा ॥
चक्रबाक मन दुख निसि पैखी । जिमि दुर्जन पर संपति देखी ॥
चातक रटत तृषा अति ओही । जिमि सुख लहइ न संकरद्रोही ॥
सरदातप निसि ससि अपहरई । संत दरस जिमि पातक टरई ॥
देखि इंदु चकोर समुदाई । चितवतहिं जिमि हरिजन हरि पाई ॥
मसक दंस बीते हिम त्रासा । जिमि द्विज द्रोह किएँ कुल नासा ॥

दोहा

भूमि जीव संकुल रहे गए सरद रितु पाइ ।
सदगुर मिले जाहिं जिमि संसय भ्रम समुदाइ ॥१७॥

चौपाला

बरषा गत निर्मल रितु आई । सुधि न तात सीता कै पाई ॥
एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं । कालहु जीत निमिष महुँ आनौं ॥
कतहुँ रहउ जौं जीवति होई । तात जतन करि आनेउँ सोई ॥
सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी । पावा राज कोस पुर नारी ॥
जेहिं सायक मारा मैं बाली । तेहिं सर हतौं मूढ़ कहँ काली ॥
जासु कृपाँ छूटहीं मद मोहा । ता कहुँ उमा कि सपनेहुँ कोहा ॥
जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी । जिन्ह रघुबीर चरन रति मानी ॥
लछिमन क्रोधवंत प्रभु जाना । धनुष चढ़ाइ गहे कर बाना ॥

दोहा

तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव ॥
भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव ॥१८॥

चौपाला

इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा । राम काजु सुग्रीवँ बिसारा ॥
निकट जाइ चरनन्हि सिरु नावा । चारिहु बिधि तेहि कहि समुझावा ॥
सुनि सुग्रीवँ परम भय माना । बिषयँ मोर हरि लीन्हेउ ग्याना ॥
अब मारुतसुत दूत समूहा । पठवहु जहँ तहँ बानर जूहा ॥
कहहु पाख महुँ आव न जोई । मोरें कर ता कर बध होई ॥
तब हनुमंत बोलाए दूता । सब कर करि सनमान बहूता ॥
भय अरु प्रीति नीति देखाई । चले सकल चरनन्हि सिर नाई ॥
एहि अवसर लछिमन पुर आए । क्रोध देखि जहँ तहँ कपि धाए ॥

दोहा

धनुष चढ़ाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार ।
ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार ॥१९॥

चौपाला

चरन नाइ सिरु बिनती कीन्ही । लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही ॥
क्रोधवंत लछिमन सुनि काना । कह कपीस अति भयँ अकुलाना ॥
सुनु हनुमंत संग लै तारा । करि बिनती समुझाउ कुमारा ॥
तारा सहित जाइ हनुमाना । चरन बंदि प्रभु सुजस बखाना ॥
करि बिनती मंदिर लै आए । चरन पखारि पलँग बैठाए ॥
तब कपीस चरनन्हि सिरु नावा । गहि भुज लछिमन कंठ लगावा ॥
नाथ बिषय सम मद कछु नाहीं । मुनि मन मोह करइ छन माहीं ॥
सुनत बिनीत बचन सुख पावा । लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा ॥
पवन तनय सब कथा सुनाई । जेहि बिधि गए दूत समुदाई ॥

दोहा

हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ ।
रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ ॥२०॥

चौपाला

नाइ चरन सिरु कह कर जोरी । नाथ मोहि कछु नाहिन खोरी ॥
अतिसय प्रबल देव तब माया । छूटइ राम करहु जौं दाया ॥
बिषय बस्य सुर नर मुनि स्वामी । मैं पावँर पसु कपि अति कामी ॥
नारि नयन सर जाहि न लागा । घोर क्रोध तम निसि जो जागा ॥
लोभ पाँस जेहिं गर न बँधाया । सो नर तुम्ह समान रघुराया ॥
यह गुन साधन तें नहिं होई । तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई ॥
तब रघुपति बोले मुसकाई । तुम्ह प्रिय मोहि भरत जिमि भाई ॥
अब सोइ जतनु करहु मन लाई । जेहि बिधि सीता कै सुधि पाई ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०