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अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३०

दोहा

मगबासी नर नारि सुनि धाम काम तजि धाइ।
देखि सरूप सनेह सब मुदित जनम फलु पाइ ॥२२१॥

चौपाला

कहहिं सपेम एक एक पाहीं । रामु लखनु सखि होहिं कि नाहीं ॥
बय बपु बरन रूप सोइ आली । सीलु सनेहु सरिस सम चाली ॥
बेषु न सो सखि सीय न संगा । आगें अनी चली चतुरंगा ॥
नहिं प्रसन्न मुख मानस खेदा । सखि संदेहु होइ एहिं भेदा ॥
तासु तरक तियगन मन मानी । कहहिं सकल तेहि सम न सयानी ॥
तेहि सराहि बानी फुरि पूजी । बोली मधुर बचन तिय दूजी ॥
कहि सपेम सब कथाप्रसंगू । जेहि बिधि राम राज रस भंगू ॥
भरतहि बहुरि सराहन लागी । सील सनेह सुभाय सुभागी ॥

दोहा

चलत पयादें खात फल पिता दीन्ह तजि राजु।
जात मनावन रघुबरहि भरत सरिस को आजु ॥२२२॥

चौपाला

भायप भगति भरत आचरनू । कहत सुनत दुख दूषन हरनू ॥
जो कछु कहब थोर सखि सोई । राम बंधु अस काहे न होई ॥
हम सब सानुज भरतहि देखें । भइन्ह धन्य जुबती जन लेखें ॥
सुनि गुन देखि दसा पछिताहीं । कैकइ जननि जोगु सुतु नाहीं ॥
कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन । बिधि सबु कीन्ह हमहि जो दाहिन ॥
कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी । लघु तिय कुल करतूति मलीनी ॥
बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा । कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा ॥
अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा । जनु मरुभूमि कलपतरु जामा ॥

दोहा

भरत दरसु देखत खुलेउ मग लोगन्ह कर भागु।
जनु सिंघलबासिन्ह भयउ बिधि बस सुलभ प्रयागु ॥२२३॥

चौपाला

निज गुन सहित राम गुन गाथा । सुनत जाहिं सुमिरत रघुनाथा ॥
तीरथ मुनि आश्रम सुरधामा । निरखि निमज्जहिं करहिं प्रनामा ॥
मनहीं मन मागहिं बरु एहू । सीय राम पद पदुम सनेहू ॥
मिलहिं किरात कोल बनबासी । बैखानस बटु जती उदासी ॥
करि प्रनामु पूँछहिं जेहिं तेही । केहि बन लखनु रामु बैदेही ॥
ते प्रभु समाचार सब कहहीं । भरतहि देखि जनम फलु लहहीं ॥
जे जन कहहिं कुसल हम देखे । ते प्रिय राम लखन सम लेखे ॥
एहि बिधि बूझत सबहि सुबानी । सुनत राम बनबास कहानी ॥

दोहा

तेहि बासर बसि प्रातहीं चले सुमिरि रघुनाथ।
राम दरस की लालसा भरत सरिस सब साथ ॥२२४॥

चौपाला

मंगल सगुन होहिं सब काहू । फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू ॥
भरतहि सहित समाज उछाहू । मिलिहहिं रामु मिटहि दुख दाहू ॥
करत मनोरथ जस जियँ जाके । जाहिं सनेह सुराँ सब छाके ॥
सिथिल अंग पग मग डगि डोलहिं । बिहबल बचन पेम बस बोलहिं ॥
रामसखाँ तेहि समय देखावा । सैल सिरोमनि सहज सुहावा ॥
जासु समीप सरित पय तीरा । सीय समेत बसहिं दोउ बीरा ॥
देखि करहिं सब दंड प्रनामा । कहि जय जानकि जीवन रामा ॥
प्रेम मगन अस राज समाजू । जनु फिरि अवध चले रघुराजू ॥

दोहा

भरत प्रेमु तेहि समय जस तस कहि सकइ न सेषु।
कबिहिं अगम जिमि ब्रह्मसुखु अह मम मलिन जनेषु ॥२२५॥

चौपाला

सकल सनेह सिथिल रघुबर कें । गए कोस दुइ दिनकर ढरकें ॥
जलु थलु देखि बसे निसि बीतें । कीन्ह गवन रघुनाथ पिरीतें ॥
उहाँ रामु रजनी अवसेषा । जागे सीयँ सपन अस देखा ॥
सहित समाज भरत जनु आए । नाथ बियोग ताप तन ताए ॥
सकल मलिन मन दीन दुखारी । देखीं सासु आन अनुहारी ॥
सुनि सिय सपन भरे जल लोचन । भए सोचबस सोच बिमोचन ॥
लखन सपन यह नीक न होई । कठिन कुचाह सुनाइहि कोई ॥
अस कहि बंधु समेत नहाने । पूजि पुरारि साधु सनमाने ॥

छंद

सनमानि सुर मुनि बंदि बैठे उत्तर दिसि देखत भए।
नभ धूरि खग मृग भूरि भागे बिकल प्रभु आश्रम गए ॥
तुलसी उठे अवलोकि कारनु काह चित सचकित रहे।
सब समाचार किरात कोलन्हि आइ तेहि अवसर कहे ॥

दोहा

सुनत सुमंगल बैन मन प्रमोद तन पुलक भर।
सरद सरोरुह नैन तुलसी भरे सनेह जल ॥२२६॥

चौपाला

बहुरि सोचबस भे सियरवनू । कारन कवन भरत आगवनू ॥
एक आइ अस कहा बहोरी । सेन संग चतुरंग न थोरी ॥
सो सुनि रामहि भा अति सोचू । इत पितु बच इत बंधु सकोचू ॥
भरत सुभाउ समुझि मन माहीं । प्रभु चित हित थिति पावत नाही ॥
समाधान तब भा यह जाने । भरतु कहे महुँ साधु सयाने ॥
लखन लखेउ प्रभु हृदयँ खभारू । कहत समय सम नीति बिचारू ॥
बिनु पूँछ कछु कहउँ गोसाईं । सेवकु समयँ न ढीठ ढिठाई ॥
तुम्ह सर्बग्य सिरोमनि स्वामी । आपनि समुझि कहउँ अनुगामी ॥

दोहा

नाथ सुह्रद सुठि सरल चित सील सनेह निधान ॥
सब पर प्रीति प्रतीति जियँ जानिअ आपु समान ॥२२७॥

चौपाला

बिषई जीव पाइ प्रभुताई । मूढ़ मोह बस होहिं जनाई ॥
भरतु नीति रत साधु सुजाना । प्रभु पद प्रेम सकल जगु जाना ॥
तेऊ आजु राम पदु पाई । चले धरम मरजाद मेटाई ॥
कुटिल कुबंध कुअवसरु ताकी । जानि राम बनवास एकाकी ॥
करि कुमंत्रु मन साजि समाजू । आए करै अकंटक राजू ॥
कोटि प्रकार कलपि कुटलाई । आए दल बटोरि दोउ भाई ॥
जौं जियँ होति न कपट कुचाली । केहि सोहाति रथ बाजि गजाली ॥
भरतहि दोसु देइ को जाएँ । जग बौराइ राज पदु पाएँ ॥

दोहा

ससि गुर तिय गामी नघुषु चढ़ेउ भूमिसुर जान।
लोक बेद तें बिमुख भा अधम न बेन समान ॥२२८॥

चौपाला

सहसबाहु सुरनाथु त्रिसंकू । केहि न राजमद दीन्ह कलंकू ॥
भरत कीन्ह यह उचित उपाऊ । रिपु रिन रंच न राखब काऊ ॥
एक कीन्हि नहिं भरत भलाई । निदरे रामु जानि असहाई ॥
समुझि परिहि सोउ आजु बिसेषी । समर सरोष राम मुखु पेखी ॥
एतना कहत नीति रस भूला । रन रस बिटपु पुलक मिस फूला ॥
प्रभु पद बंदि सीस रज राखी । बोले सत्य सहज बलु भाषी ॥
अनुचित नाथ न मानब मोरा । भरत हमहि उपचार न थोरा ॥
कहँ लगि सहिअ रहिअ मनु मारें । नाथ साथ धनु हाथ हमारें ॥

दोहा

छत्रि जाति रघुकुल जनमु राम अनुग जगु जान।
लातहुँ मारें चढ़ति सिर नीच को धूरि समान ॥२२९॥

चौपाला

उठि कर जोरि रजायसु मागा । मनहुँ बीर रस सोवत जागा ॥
बाँधि जटा सिर कसि कटि भाथा । साजि सरासनु सायकु हाथा ॥
आजु राम सेवक जसु लेऊँ । भरतहि समर सिखावन देऊँ ॥
राम निरादर कर फलु पाई । सोवहुँ समर सेज दोउ भाई ॥
आइ बना भल सकल समाजू । प्रगट करउँ रिस पाछिल आजू ॥
जिमि करि निकर दलइ मृगराजू । लेइ लपेटि लवा जिमि बाजू ॥
तैसेहिं भरतहि सेन समेता । सानुज निदरि निपातउँ खेता ॥
जौं सहाय कर संकरु आई । तौ मारउँ रन राम दोहाई ॥

दोहा

अति सरोष माखे लखनु लखि सुनि सपथ प्रवान।
सभय लोक सब लोकपति चाहत भभरि भगान ॥२३०॥

चौपाला

जगु भय मगन गगन भइ बानी । लखन बाहुबलु बिपुल बखानी ॥
तात प्रताप प्रभाउ तुम्हारा । को कहि सकइ को जाननिहारा ॥
अनुचित उचित काजु किछु होऊ । समुझि करिअ भल कह सबु कोऊ ॥
सहसा करि पाछैं पछिताहीं । कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं ॥
सुनि सुर बचन लखन सकुचाने । राम सीयँ सादर सनमाने ॥
कही तात तुम्ह नीति सुहाई । सब तें कठिन राजमदु भाई ॥
जो अचवँत नृप मातहिं तेई । नाहिन साधुसभा जेहिं सेई ॥
सुनहु लखन भल भरत सरीसा । बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०