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लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १००

दोहा

तानेउ चाप श्रवन लगि छाँड़े बिसिख कराल ।

राम मारगन गन चले लहलहात जनु ब्याल ॥९१॥

चौपाला

चले बान सपच्छ जनु उरगा । प्रथमहिं हतेउ सारथी तुरगा ॥

रथ बिभंजि हति केतु पताका । गर्जा अति अंतर बल थाका ॥

तुरत आन रथ चढ़ि खिसिआना । अस्त्र सस्त्र छाँड़ेसि बिधि नाना ॥

बिफल होहिं सब उद्यम ताके । जिमि परद्रोह निरत मनसा के ॥

तब रावन दस सूल चलावा । बाजि चारि महि मारि गिरावा ॥

तुरग उठाइ कोपि रघुनायक । खैंचि सरासन छाँड़े सायक ॥

रावन सिर सरोज बनचारी । चलि रघुबीर सिलीमुख धारी ॥

दस दस बान भाल दस मारे । निसरि गए चले रुधिर पनारे ॥

स्त्रवत रुधिर धायउ बलवाना । प्रभु पुनि कृत धनु सर संधाना ॥

तीस तीर रघुबीर पबारे । भुजन्हि समेत सीस महि पारे ॥

काटतहीं पुनि भए नबीने । राम बहोरि भुजा सिर छीने ॥

प्रभु बहु बार बाहु सिर हए । कटत झटिति पुनि नूतन भए ॥

पुनि पुनि प्रभु काटत भुज सीसा । अति कौतुकी कोसलाधीसा ॥

रहे छाइ नभ सिर अरु बाहू । मानहुँ अमित केतु अरु राहू ॥

छंद

जनु राहु केतु अनेक नभ पथ स्त्रवत सोनित धावहीं ।

रघुबीर तीर प्रचंड लागहिं भूमि गिरन न पावहीं ॥

एक एक सर सिर निकर छेदे नभ उड़त इमि सोहहीं ।

जनु कोपि दिनकर कर निकर जहँ तहँ बिधुंतुद पोहहीं ॥

दोहा

जिमि जिमि प्रभु हर तासु सिर तिमि तिमि होहिं अपार ।

सेवत बिषय बिबर्ध जिमि नित नित नूतन मार ॥९२॥

चौपाला

दसमुख देखि सिरन्ह कै बाढ़ी । बिसरा मरन भई रिस गाढ़ी ॥

गर्जेउ मूढ़ महा अभिमानी । धायउ दसहु सरासन तानी ॥

समर भूमि दसकंधर कोप्यो । बरषि बान रघुपति रथ तोप्यो ॥

दंड एक रथ देखि न परेऊ । जनु निहार महुँ दिनकर दुरेऊ ॥

हाहाकार सुरन्ह जब कीन्हा । तब प्रभु कोपि कारमुक लीन्हा ॥

सर निवारि रिपु के सिर काटे । ते दिसि बिदिस गगन महि पाटे ॥

काटे सिर नभ मारग धावहिं । जय जय धुनि करि भय उपजावहिं ॥

कहँ लछिमन सुग्रीव कपीसा । कहँ रघुबीर कोसलाधीसा ॥

छंद

कहँ रामु कहि सिर निकर धाए देखि मर्कट भजि चले ।

संधानि धनु रघुबंसमनि हँसि सरन्हि सिर बेधे भले ॥

सिर मालिका कर कालिका गहि बृंद बृंदन्हि बहु मिलीं ।

करि रुधिर सरि मज्जनु मनहुँ संग्राम बट पूजन चलीं ॥

दोहा

पुनि दसकंठ क्रुद्ध होइ छाँड़ी सक्ति प्रचंड ।

चली बिभीषन सन्मुख मनहुँ काल कर दंड ॥९३॥

चौपाला

आवत देखि सक्ति अति घोरा । प्रनतारति भंजन पन मोरा ॥

तुरत बिभीषन पाछें मेला । सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला ॥

लागि सक्ति मुरुछा कछु भई । प्रभु कृत खेल सुरन्ह बिकलई ॥

देखि बिभीषन प्रभु श्रम पायो । गहि कर गदा क्रुद्ध होइ धायो ॥

रे कुभाग्य सठ मंद कुबुद्धे । तैं सुर नर मुनि नाग बिरुद्धे ॥

सादर सिव कहुँ सीस चढ़ाए । एक एक के कोटिन्ह पाए ॥

तेहि कारन खल अब लगि बाँच्यो । अब तव कालु सीस पर नाच्यो ॥

राम बिमुख सठ चहसि संपदा । अस कहि हनेसि माझ उर गदा ॥

छंद

उर माझ गदा प्रहार घोर कठोर लागत महि पर् यो ।

दस बदन सोनित स्त्रवत पुनि संभारि धायो रिस भर् यो ॥

द्वौ भिरे अतिबल मल्लजुद्ध बिरुद्ध एकु एकहि हनै ।

रघुबीर बल दर्पित बिभीषनु घालि नहिं ता कहुँ गनै ॥

दोहा

उमा बिभीषनु रावनहि सन्मुख चितव कि काउ ।

सो अब भिरत काल ज्यों श्रीरघुबीर प्रभाउ ॥९४॥

चौपाला

देखा श्रमित बिभीषनु भारी । धायउ हनूमान गिरि धारी ॥

रथ तुरंग सारथी निपाता । हृदय माझ तेहि मारेसि लाता ॥

ठाढ़ रहा अति कंपित गाता । गयउ बिभीषनु जहँ जनत्राता ॥

पुनि रावन कपि हतेउ पचारी । चलेउ गगन कपि पूँछ पसारी ॥

गहिसि पूँछ कपि सहित उड़ाना । पुनि फिरि भिरेउ प्रबल हनुमाना ॥

लरत अकास जुगल सम जोधा । एकहि एकु हनत करि क्रोधा ॥

सोहहिं नभ छल बल बहु करहीं । कज्जल गिरि सुमेरु जनु लरहीं ॥

बुधि बल निसिचर परइ न पार् यो । तब मारुत सुत प्रभु संभार् यो ॥

छंद

संभारि श्रीरघुबीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो ।

महि परत पुनि उठि लरत देवन्ह जुगल कहुँ जय जय भन्यो ॥

हनुमंत संकट देखि मर्कट भालु क्रोधातुर चले ।

रन मत्त रावन सकल सुभट प्रचंड भुज बल दलमले ॥

दोहा

तब रघुबीर पचारे धाए कीस प्रचंड ।

कपि बल प्रबल देखि तेहिं कीन्ह प्रगट पाषंड ॥९५॥

चौपाला

अंतरधान भयउ छन एका । पुनि प्रगटे खल रूप अनेका ॥

रघुपति कटक भालु कपि जेते । जहँ तहँ प्रगट दसानन तेते ॥

देखे कपिन्ह अमित दससीसा । जहँ तहँ भजे भालु अरु कीसा ॥

भागे बानर धरहिं न धीरा । त्राहि त्राहि लछिमन रघुबीरा ॥

दहँ दिसि धावहिं कोटिन्ह रावन । गर्जहिं घोर कठोर भयावन ॥

डरे सकल सुर चले पराई । जय कै आस तजहु अब भाई ॥

सब सुर जिते एक दसकंधर । अब बहु भए तकहु गिरि कंदर ॥

रहे बिरंचि संभु मुनि ग्यानी । जिन्ह जिन्ह प्रभु महिमा कछु जानी ॥

छंद

जाना प्रताप ते रहे निर्भय कपिन्ह रिपु माने फुरे ।

चले बिचलि मर्कट भालु सकल कृपाल पाहि भयातुरे ॥

हनुमंत अंगद नील नल अतिबल लरत रन बाँकुरे ।

मर्दहिं दसानन कोटि कोटिन्ह कपट भू भट अंकुरे ॥

दोहा

सुर बानर देखे बिकल हँस्यो कोसलाधीस ।

सजि सारंग एक सर हते सकल दससीस ॥९६॥

चौपाला

प्रभु छन महुँ माया सब काटी । जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी ॥

रावनु एकु देखि सुर हरषे । फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे ॥

भुज उठाइ रघुपति कपि फेरे । फिरे एक एकन्ह तब टेरे ॥

प्रभु बलु पाइ भालु कपि धाए । तरल तमकि संजुग महि आए ॥

अस्तुति करत देवतन्हि देखें । भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें ॥

सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल । अस कहि कोपि गगन पर धायल ॥

हाहाकार करत सुर भागे । खलहु जाहु कहँ मोरें आगे ॥

देखि बिकल सुर अंगद धायो । कूदि चरन गहि भूमि गिरायो ॥

छंद

गहि भूमि पार् यो लात मार् यो बालिसुत प्रभु पहिं गयो ।

संभारि उठि दसकंठ घोर कठोर रव गर्जत भयो ॥

करि दाप चाप चढ़ाइ दस संधानि सर बहु बरषई ।

किए सकल भट घायल भयाकुल देखि निज बल हरषई ॥

दोहा

तब रघुपति रावन के सीस भुजा सर चाप ।

काटे बहुत बढ़े पुनि जिमि तीरथ कर पाप ॥९७॥

चौपाला

सिर भुज बाढ़ि देखि रिपु केरी । भालु कपिन्ह रिस भई घनेरी ॥

मरत न मूढ़ कटेउ भुज सीसा । धाए कोपि भालु भट कीसा ॥

बालितनय मारुति नल नीला । बानरराज दुबिद बलसीला ॥

बिटप महीधर करहिं प्रहारा । सोइ गिरि तरु गहि कपिन्ह सो मारा ॥

एक नखन्हि रिपु बपुष बिदारी । भअगि चलहिं एक लातन्ह मारी ॥

तब नल नील सिरन्हि चढ़ि गयऊ । नखन्हि लिलार बिदारत भयऊ ॥

रुधिर देखि बिषाद उर भारी । तिन्हहि धरन कहुँ भुजा पसारी ॥

गहे न जाहिं करन्हि पर फिरहीं । जनु जुग मधुप कमल बन चरहीं ॥

कोपि कूदि द्वौ धरेसि बहोरी । महि पटकत भजे भुजा मरोरी ॥

पुनि सकोप दस धनु कर लीन्हे । सरन्हि मारि घायल कपि कीन्हे ॥

हनुमदादि मुरुछित करि बंदर । पाइ प्रदोष हरष दसकंधर ॥

मुरुछित देखि सकल कपि बीरा । जामवंत धायउ रनधीरा ॥

संग भालु भूधर तरु धारी । मारन लगे पचारि पचारी ॥

भयउ क्रुद्ध रावन बलवाना । गहि पद महि पटकइ भट नाना ॥

देखि भालुपति निज दल घाता । कोपि माझ उर मारेसि लाता ॥

छंद

उर लात घात प्रचंड लागत बिकल रथ ते महि परा ।

गहि भालु बीसहुँ कर मनहुँ कमलन्हि बसे निसि मधुकरा ॥

मुरुछित बिलोकि बहोरि पद हति भालुपति प्रभु पहिं गयौ ।

निसि जानि स्यंदन घालि तेहि तब सूत जतनु करत भयो ॥

दोहा

मुरुछा बिगत भालु कपि सब आए प्रभु पास ।

निसिचर सकल रावनहि घेरि रहे अति त्रास ॥९८॥

मासपारायण , छब्बीसवाँ विश्राम

चौपाला

तेही निसि सीता पहिं जाई । त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई ॥

सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी । सीता उर भइ त्रास घनेरी ॥

मुख मलीन उपजी मन चिंता । त्रिजटा सन बोली तब सीता ॥

होइहि कहा कहसि किन माता । केहि बिधि मरिहि बिस्व दुखदाता ॥

रघुपति सर सिर कटेहुँ न मरई । बिधि बिपरीत चरित सब करई ॥

मोर अभाग्य जिआवत ओही । जेहिं हौ हरि पद कमल बिछोही ॥

जेहिं कृत कपट कनक मृग झूठा । अजहुँ सो दैव मोहि पर रूठा ॥

जेहिं बिधि मोहि दुख दुसह सहाए । लछिमन कहुँ कटु बचन कहाए ॥

रघुपति बिरह सबिष सर भारी । तकि तकि मार बार बहु मारी ॥

ऐसेहुँ दुख जो राख मम प्राना । सोइ बिधि ताहि जिआव न आना ॥

बहु बिधि कर बिलाप जानकी । करि करि सुरति कृपानिधान की ॥

कह त्रिजटा सुनु राजकुमारी । उर सर लागत मरइ सुरारी ॥

प्रभु ताते उर हतइ न तेही । एहि के हृदयँ बसति बैदेही ॥

छंद

एहि के हृदयँ बस जानकी जानकी उर मम बास है ।

मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है ॥

सुनि बचन हरष बिषाद मन अति देखि पुनि त्रिजटाँ कहा ।

अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा ॥

दोहा

काटत सिर होइहि बिकल छुटि जाइहि तव ध्यान ।

तब रावनहि हृदय महुँ मरिहहिं रामु सुजान ॥९९॥

चौपाला

अस कहि बहुत भाँति समुझाई । पुनि त्रिजटा निज भवन सिधाई ॥

राम सुभाउ सुमिरि बैदेही । उपजी बिरह बिथा अति तेही ॥

निसिहि ससिहि निंदति बहु भाँती । जुग सम भई सिराति न राती ॥

करति बिलाप मनहिं मन भारी । राम बिरहँ जानकी दुखारी ॥

जब अति भयउ बिरह उर दाहू । फरकेउ बाम नयन अरु बाहू ॥

सगुन बिचारि धरी मन धीरा । अब मिलिहहिं कृपाल रघुबीरा ॥

इहाँ अर्धनिसि रावनु जागा । निज सारथि सन खीझन लागा ॥

सठ रनभूमि छड़ाइसि मोही । धिग धिग अधम मंदमति तोही ॥

तेहिं पद गहि बहु बिधि समुझावा । भौरु भएँ रथ चढ़ि पुनि धावा ॥

सुनि आगवनु दसानन केरा । कपि दल खरभर भयउ घनेरा ॥

जहँ तहँ भूधर बिटप उपारी । धाए कटकटाइ भट भारी ॥

छंद

धाए जो मर्कट बिकट भालु कराल कर भूधर धरा ।

अति कोप करहिं प्रहार मारत भजि चले रजनीचरा ॥

बिचलाइ दल बलवंत कीसन्ह घेरि पुनि रावनु लियो ।

चहुँ दिसि चपेटन्हि मारि नखन्हि बिदारि तनु ब्याकुल कियो ॥

दोहा

देखि महा मर्कट प्रबल रावन कीन्ह बिचार ।

अंतरहित होइ निमिष महुँ कृत माया बिस्तार ॥१०० ॥

छंद

जब कीन्ह तेहिं पाषंड । भए प्रगट जंतु प्रचंड ॥

बेताल भूत पिसाच । कर धरें धनु नाराच ॥१॥

जोगिनि गहें करबाल । एक हाथ मनुज कपाल ॥

करि सद्य सोनित पान । नाचहिं करहिं बहु गान ॥२॥

धरु मारु बोलहिं घोर । रहि पूरि धुनि चहुँ ओर ॥

मुख बाइ धावहिं खान । तब लगे कीस परान ॥३॥

जहँ जाहिं मर्कट भागि । तहँ बरत देखहिं आगि ॥

भए बिकल बानर भालु । पुनि लाग बरषै बालु ॥४॥

जहँ तहँ थकित करि कीस । गर्जेउ बहुरि दससीस ॥

लछिमन कपीस समेत । भए सकल बीर अचेत ॥५॥

हा राम हा रघुनाथ । कहि सुभट मीजहिं हाथ ॥

एहि बिधि सकल बल तोरि । तेहिं कीन्ह कपट बहोरि ॥६॥

प्रगटेसि बिपुल हनुमान । धाए गहे पाषान ॥

तिन्ह रामु घेरे जाइ । चहुँ दिसि बरूथ बनाइ ॥७॥

मारहु धरहु जनि जाइ । कटकटहिं पूँछ उठाइ ॥

दहँ दिसि लँगूर बिराज । तेहिं मध्य कोसलराज ॥८॥

छंद

तेहिं मध्य कोसलराज सुंदर स्याम तन सोभा लही ।

जनु इंद्रधनुष अनेक की बर बारि तुंग तमालही ॥

प्रभु देखि हरष बिषाद उर सुर बदत जय जय जय करी ।

रघुबीर एकहि तीर कोपि निमेष महुँ माया हरी ॥१॥

माया बिगत कपि भालु हरषे बिटप गिरि गहि सब फिरे ।

सर निकर छाड़े राम रावन बाहु सिर पुनि महि गिरे ॥

श्रीराम रावन समर चरित अनेक कल्प जो गावहीं ।

सत सेष सारद निगम कबि तेउ तदपि पार न पावहीं ॥२॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०