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बालकाण्ड दोहा ११ से २०

दोहा

जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग ।

पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग ॥११॥

चौपाला

जे जनमे कलिकाल कराला । करतब बायस बेष मराला ॥

चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े । कपट कलेवर कलि मल भाँड़ें ॥

बंचक भगत कहाइ राम के । किंकर कंचन कोह काम के ॥

तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी । धींग धरमध्वज धंधक धोरी ॥

जौं अपने अवगुन सब कहऊँ । बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ ॥

ताते मैं अति अलप बखाने । थोरे महुँ जानिहहिं सयाने ॥

समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी । कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी ॥

एतेहु पर करिहहिं जे असंका । मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका ॥

कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ । मति अनुरूप राम गुन गावउँ ॥

कहँ रघुपति के चरित अपारा । कहँ मति मोरि निरत संसारा ॥

जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥

समुझत अमित राम प्रभुताई । करत कथा मन अति कदराई ॥

दोहा

सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान ।

नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥१२॥

चौपाला

सब जानत प्रभु प्रभुता सोई । तदपि कहें बिनु रहा न कोई ॥

तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा ॥

एक अनीह अरूप अनामा । अज सच्चिदानंद पर धामा ॥

ब्यापक बिस्वरूप भगवाना । तेहिं धरि देह चरित कृत नाना ॥

सो केवल भगतन हित लागी । परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥

जेहि जन पर ममता अति छोहू । जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू ॥

गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥

बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहि पुनीत सुफल निज बानी ॥

तेहिं बल मैं रघुपति गुन गाथा । कहिहउँ नाइ राम पद माथा ॥

मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई । तेहिं मग चलत सुगम मोहि भाई ॥

दोहा

अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं ।

चढि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं ॥१३॥

चौपाला

एहि प्रकार बल मनहि देखाई । करिहउँ रघुपति कथा सुहाई ॥

ब्यास आदि कबि पुंगव नाना । जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ॥

चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे । पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे ॥

कलि के कबिन्ह करउँ परनामा । जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा ॥

जे प्राकृत कबि परम सयाने । भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने ॥

भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें । प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागें ॥

होहु प्रसन्न देहु बरदानू । साधु समाज भनिति सनमानू ॥

जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं । सो श्रम बादि बाल कबि करहीं ॥

कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होई ॥

राम सुकीरति भनिति भदेसा । असमंजस अस मोहि अँदेसा ॥

तुम्हरी कृपा सुलभ सोउ मोरे । सिअनि सुहावनि टाट पटोरे ॥

दोहा

सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान ।

सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान ॥१४ (क )॥

सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर ।

करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर ॥१४ (ख )॥

कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल ।

बाल बिनय सुनि सुरुचि लखि मोपर होहु कृपाल ॥१४ (ग )॥

सो ।

बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ ।

सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित ॥१४ (घ )॥

बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस ।

जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु ॥१४ (ङ )॥

बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहि कीन्ह जहँ ।

संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी ॥१४ (च )॥

दोहा

बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि ।

होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि ॥१४ (छ )॥

चौपाला

पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता । जुगल पुनीत मनोहर चरिता ॥

मज्जन पान पाप हर एका । कहत सुनत एक हर अबिबेका ॥

गुर पितु मातु महेस भवानी । प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी ॥

सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसीके ॥

कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा । साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा ॥

अनमिल आखर अरथ न जापू । प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू ॥

सो उमेस मोहि पर अनुकूला । करिहिं कथा मुद मंगल मूला ॥

सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ । बरनउँ रामचरित चित चाऊ ॥

भनिति मोरि सिव कृपाँ बिभाती । ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती ॥

जे एहि कथहि सनेह समेता । कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता ॥

होइहहिं राम चरन अनुरागी । कलि मल रहित सुमंगल भागी ॥

दोहा

सपनेहुँ साचेहुँ मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ ।

तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ ॥१५॥

चौपाला

बंदउँ अवध पुरी अति पावनि । सरजू सरि कलि कलुष नसावनि ॥

प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी । ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी ॥

सिय निंदक अघ ओघ नसाए । लोक बिसोक बनाइ बसाए ॥

बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची । कीरति जासु सकल जग माची ॥

प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू । बिस्व सुखद खल कमल तुसारू ॥

दसरथ राउ सहित सब रानी । सुकृत सुमंगल मूरति मानी ॥

करउँ प्रनाम करम मन बानी । करहु कृपा सुत सेवक जानी ॥

जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता । महिमा अवधि राम पितु माता ॥

दोहा

बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद ।

बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ ॥१६॥

चौपाला

प्रनवउँ परिजन सहित बिदेहू । जाहि राम पद गूढ़ सनेहू ॥

जोग भोग महँ राखेउ गोई । राम बिलोकत प्रगटेउ सोई ॥

प्रनवउँ प्रथम भरत के चरना । जासु नेम ब्रत जाइ न बरना ॥

राम चरन पंकज मन जासू । लुबुध मधुप इव तजइ न पासू ॥

बंदउँ लछिमन पद जलजाता । सीतल सुभग भगत सुख दाता ॥

रघुपति कीरति बिमल पताका । दंड समान भयउ जस जाका ॥

सेष सहस्त्रसीस जग कारन । जो अवतरेउ भूमि भय टारन ॥

सदा सो सानुकूल रह मो पर । कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर ॥

रिपुसूदन पद कमल नमामी । सूर सुसील भरत अनुगामी ॥

महावीर बिनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आप बखाना ॥

दोहा

प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन ।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥१७॥

चौपाला

कपिपति रीछ निसाचर राजा । अंगदादि जे कीस समाजा ॥

बंदउँ सब के चरन सुहाए । अधम सरीर राम जिन्ह पाए ॥

रघुपति चरन उपासक जेते । खग मृग सुर नर असुर समेते ॥

बंदउँ पद सरोज सब केरे । जे बिनु काम राम के चेरे ॥

सुक सनकादि भगत मुनि नारद । जे मुनिबर बिग्यान बिसारद ॥

प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा । करहु कृपा जन जानि मुनीसा ॥

जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुना निधान की ॥

ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥

पुनि मन बचन कर्म रघुनायक । चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥

राजिवनयन धरें धनु सायक । भगत बिपति भंजन सुख दायक ॥

दोहा

गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न ।

बदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ॥१८॥

चौपाला

बंदउँ नाम राम रघुवर को । हेतु कृसानु भानु हिमकर को ॥

बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो । अगुन अनूपम गुन निधान सो ॥

महामंत्र जोइ जपत महेसू । कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥

महिमा जासु जान गनराउ । प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ ॥

जान आदिकबि नाम प्रतापू । भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥

सहस नाम सम सुनि सिव बानी । जपि जेई पिय संग भवानी ॥

हरषे हेतु हेरि हर ही को । किय भूषन तिय भूषन ती को ॥

नाम प्रभाउ जान सिव नीको । कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥

दोहा

बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ।

राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥१९॥

चौपाला

आखर मधुर मनोहर दोऊ । बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ॥

सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू । लोक लाहु परलोक निबाहू ॥

कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके । राम लखन सम प्रिय तुलसी के ॥

बरनत बरन प्रीति बिलगाती । ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती ॥

नर नारायन सरिस सुभ्राता । जग पालक बिसेषि जन त्राता ॥

भगति सुतिय कल करन बिभूषन । जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन ।

स्वाद तोष सम सुगति सुधा के । कमठ सेष सम धर बसुधा के ॥

जन मन मंजु कंज मधुकर से । जीह जसोमति हरि हलधर से ॥

दोहा

एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ ।

तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ॥२०॥

चौपाला

समुझत सरिस नाम अरु नामी । प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ॥

नाम रूप दुइ ईस उपाधी । अकथ अनादि सुसामुझि साधी ॥

को बड़ छोट कहत अपराधू । सुनि गुन भेद समुझिहहिं साधू ॥

देखिअहिं रूप नाम आधीना । रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना ॥

रूप बिसेष नाम बिनु जानें । करतल गत न परहिं पहिचानें ॥

सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें । आवत हृदयँ सनेह बिसेषें ॥

नाम रूप गति अकथ कहानी । समुझत सुखद न परति बखानी ॥

अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०