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अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४०

दोहा

जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु।
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु ॥१३१॥

चौपाला

एहि बिधि मुनिबर भवन देखाए । बचन सप्रेम राम मन भाए ॥
कह मुनि सुनहु भानुकुलनायक । आश्रम कहउँ समय सुखदायक ॥
चित्रकूट गिरि करहु निवासू । तहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू ॥
सैलु सुहावन कानन चारू । करि केहरि मृग बिहग बिहारू ॥
नदी पुनीत पुरान बखानी । अत्रिप्रिया निज तपबल आनी ॥
सुरसरि धार नाउँ मंदाकिनि । जो सब पातक पोतक डाकिनि ॥
अत्रि आदि मुनिबर बहु बसहीं । करहिं जोग जप तप तन कसहीं ॥
चलहु सफल श्रम सब कर करहू । राम देहु गौरव गिरिबरहू ॥

दोहा

चित्रकूट महिमा अमित कहीं महामुनि गाइ।
आए नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ ॥१३२॥

चौपाला

रघुबर कहेउ लखन भल घाटू । करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू ॥
लखन दीख पय उतर करारा । चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा ॥
नदी पनच सर सम दम दाना । सकल कलुष कलि साउज नाना ॥
चित्रकूट जनु अचल अहेरी । चुकइ न घात मार मुठभेरी ॥
अस कहि लखन ठाउँ देखरावा । थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा ॥
रमेउ राम मनु देवन्ह जाना । चले सहित सुर थपति प्रधाना ॥
कोल किरात बेष सब आए । रचे परन तृन सदन सुहाए ॥
बरनि न जाहि मंजु दुइ साला । एक ललित लघु एक बिसाला ॥

दोहा

लखन जानकी सहित प्रभु राजत रुचिर निकेत।
सोह मदनु मुनि बेष जनु रति रितुराज समेत ॥१३३॥

मासपारायण , सत्रहँवा विश्राम

चौपाला

अमर नाग किंनर दिसिपाला । चित्रकूट आए तेहि काला ॥
राम प्रनामु कीन्ह सब काहू । मुदित देव लहि लोचन लाहू ॥
बरषि सुमन कह देव समाजू । नाथ सनाथ भए हम आजू ॥
करि बिनती दुख दुसह सुनाए । हरषित निज निज सदन सिधाए ॥
चित्रकूट रघुनंदनु छाए । समाचार सुनि सुनि मुनि आए ॥
आवत देखि मुदित मुनिबृंदा । कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा ॥
मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं । सुफल होन हित आसिष देहीं ॥
सिय सौमित्र राम छबि देखहिं । साधन सकल सफल करि लेखहिं ॥

दोहा

जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद।
करहि जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछंद ॥१३४॥

चौपाला

यह सुधि कोल किरातन्ह पाई । हरषे जनु नव निधि घर आई ॥
कंद मूल फल भरि भरि दोना । चले रंक जनु लूटन सोना ॥
तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता । अपर तिन्हहि पूँछहि मगु जाता ॥
कहत सुनत रघुबीर निकाई । आइ सबन्हि देखे रघुराई ॥
करहिं जोहारु भेंट धरि आगे । प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे ॥
चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढ़े । पुलक सरीर नयन जल बाढ़े ॥
राम सनेह मगन सब जाने । कहि प्रिय बचन सकल सनमाने ॥
प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी । बचन बिनीत कहहिं कर जोरी ॥

दोहा

अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय।
भाग हमारे आगमनु राउर कोसलराय ॥१३५॥

चौपाला

धन्य भूमि बन पंथ पहारा । जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा ॥
धन्य बिहग मृग काननचारी । सफल जनम भए तुम्हहि निहारी ॥
हम सब धन्य सहित परिवारा । दीख दरसु भरि नयन तुम्हारा ॥
कीन्ह बासु भल ठाउँ बिचारी । इहाँ सकल रितु रहब सुखारी ॥
हम सब भाँति करब सेवकाई । करि केहरि अहि बाघ बराई ॥
बन बेहड़ गिरि कंदर खोहा । सब हमार प्रभु पग पग जोहा ॥
तहँ तहँ तुम्हहि अहेर खेलाउब । सर निरझर जलठाउँ देखाउब ॥
हम सेवक परिवार समेता । नाथ न सकुचब आयसु देता ॥

दोहा

बेद बचन मुनि मन अगम ते प्रभु करुना ऐन।
बचन किरातन्ह के सुनत जिमि पितु बालक बैन ॥१३६॥

चौपाला

रामहि केवल प्रेमु पिआरा । जानि लेउ जो जाननिहारा ॥
राम सकल बनचर तब तोषे । कहि मृदु बचन प्रेम परिपोषे ॥
बिदा किए सिर नाइ सिधाए । प्रभु गुन कहत सुनत घर आए ॥
एहि बिधि सिय समेत दोउ भाई । बसहिं बिपिन सुर मुनि सुखदाई ॥
जब ते आइ रहे रघुनायकु । तब तें भयउ बनु मंगलदायकु ॥
फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना ॥मंजु बलित बर बेलि बिताना ॥
सुरतरु सरिस सुभायँ सुहाए । मनहुँ बिबुध बन परिहरि आए ॥
गंज मंजुतर मधुकर श्रेनी । त्रिबिध बयारि बहइ सुख देनी ॥

दोहा

नीलकंठ कलकंठ सुक चातक चक्क चकोर।
भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर ॥१३७॥

चौपाला

केरि केहरि कपि कोल कुरंगा । बिगतबैर बिचरहिं सब संगा ॥
फिरत अहेर राम छबि देखी । होहिं मुदित मृगबंद बिसेषी ॥
बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं । देखि राम बनु सकल सिहाहीं ॥
सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या । मेकलसुता गोदावरि धन्या ॥
सब सर सिंधु नदी नद नाना । मंदाकिनि कर करहिं बखाना ॥
उदय अस्त गिरि अरु कैलासू । मंदर मेरु सकल सुरबासू ॥
सैल हिमाचल आदिक जेते । चित्रकूट जसु गावहिं तेते ॥
बिंधि मुदित मन सुखु न समाई । श्रम बिनु बिपुल बड़ाई पाई ॥

दोहा

चित्रकूट के बिहग मृग बेलि बिटप तृन जाति।
पुन्य पुंज सब धन्य अस कहहिं देव दिन राति ॥१३८॥

चौपाला

नयनवंत रघुबरहि बिलोकी । पाइ जनम फल होहिं बिसोकी ॥
परसि चरन रज अचर सुखारी । भए परम पद के अधिकारी ॥
सो बनु सैलु सुभायँ सुहावन । मंगलमय अति पावन पावन ॥
महिमा कहिअ कवनि बिधि तासू । सुखसागर जहँ कीन्ह निवासू ॥
पय पयोधि तजि अवध बिहाई । जहँ सिय लखनु रामु रहे आई ॥
कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन । जौं सत सहस होंहिं सहसानन ॥
सो मैं बरनि कहौं बिधि केहीं । डाबर कमठ कि मंदर लेहीं ॥
सेवहिं लखनु करम मन बानी । जाइ न सीलु सनेहु बखानी ॥

दोहा

छिनु छिनु लखि सिय राम पद जानि आपु पर नेहु।
करत न सपनेहुँ लखनु चितु बंधु मातु पितु गेहु ॥१३९॥

चौपाला

राम संग सिय रहति सुखारी । पुर परिजन गृह सुरति बिसारी ॥
छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी । प्रमुदित मनहुँ चकोरकुमारी ॥
नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी । हरषित रहति दिवस जिमि कोकी ॥
सिय मनु राम चरन अनुरागा । अवध सहस सम बनु प्रिय लागा ॥
परनकुटी प्रिय प्रियतम संगा । प्रिय परिवारु कुरंग बिहंगा ॥
सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर । असनु अमिअ सम कंद मूल फर ॥
नाथ साथ साँथरी सुहाई । मयन सयन सय सम सुखदाई ॥
लोकप होहिं बिलोकत जासू । तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू ॥

दोहा

सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु।
रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु ॥१४०॥

चौपाला

सीय लखन जेहि बिधि सुखु लहहीं । सोइ रघुनाथ करहि सोइ कहहीं ॥
कहहिं पुरातन कथा कहानी । सुनहिं लखनु सिय अति सुखु मानी।
जब जब रामु अवध सुधि करहीं । तब तब बारि बिलोचन भरहीं ॥
सुमिरि मातु पितु परिजन भाई । भरत सनेहु सीलु सेवकाई ॥
कृपासिंधु प्रभु होहिं दुखारी । धीरजु धरहिं कुसमउ बिचारी ॥
लखि सिय लखनु बिकल होइ जाहीं । जिमि पुरुषहि अनुसर परिछाहीं ॥
प्रिया बंधु गति लखि रघुनंदनु । धीर कृपाल भगत उर चंदनु ॥
लगे कहन कछु कथा पुनीता । सुनि सुखु लहहिं लखनु अरु सीता ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०