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अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६०

सोरठा

गुर सन कहब सँदेसु बार बार पद पदुम गहि।
करब सोइ उपदेसु जेहिं न सोच मोहि अवधपति ॥१५१॥
चौपाला

पुरजन परिजन सकल निहोरी । तात सुनाएहु बिनती मोरी ॥
सोइ सब भाँति मोर हितकारी । जातें रह नरनाहु सुखारी ॥
कहब सँदेसु भरत के आएँ । नीति न तजिअ राजपदु पाएँ ॥
पालेहु प्रजहि करम मन बानी । सेएहु मातु सकल सम जानी ॥
ओर निबाहेहु भायप भाई । करि पितु मातु सुजन सेवकाई ॥
तात भाँति तेहि राखब राऊ । सोच मोर जेहिं करै न काऊ ॥
लखन कहे कछु बचन कठोरा । बरजि राम पुनि मोहि निहोरा ॥
बार बार निज सपथ देवाई । कहबि न तात लखन लरिकाई ॥

दोहा

कहि प्रनाम कछु कहन लिय सिय भइ सिथिल सनेह।
थकित बचन लोचन सजल पुलक पल्लवित देह ॥१५२॥

चौपाला

तेहि अवसर रघुबर रूख पाई । केवट पारहि नाव चलाई ॥
रघुकुलतिलक चले एहि भाँती । देखउँ ठाढ़ कुलिस धरि छाती ॥
मैं आपन किमि कहौं कलेसू । जिअत फिरेउँ लेइ राम सँदेसू ॥
अस कहि सचिव बचन रहि गयऊ । हानि गलानि सोच बस भयऊ ॥
सुत बचन सुनतहिं नरनाहू । परेउ धरनि उर दारुन दाहू ॥
तलफत बिषम मोह मन मापा । माजा मनहुँ मीन कहुँ ब्यापा ॥
करि बिलाप सब रोवहिं रानी । महा बिपति किमि जाइ बखानी ॥
सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा । धीरजहू कर धीरजु भागा ॥

दोहा

भयउ कोलाहलु अवध अति सुनि नृप राउर सोरु।
बिपुल बिहग बन परेउ निसि मानहुँ कुलिस कठोरु ॥१५३॥

चौपाला

प्रान कंठगत भयउ भुआलू । मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू ॥
इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी । जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी ॥
कौसल्याँ नृपु दीख मलाना । रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना।
उर धरि धीर राम महतारी । बोली बचन समय अनुसारी ॥
नाथ समुझि मन करिअ बिचारू । राम बियोग पयोधि अपारू ॥
करनधार तुम्ह अवध जहाजू । चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू ॥
धीरजु धरिअ त पाइअ पारू । नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू ॥
जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी । रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी ॥
दोहा

प्रिया बचन मृदु सुनत नृपु चितयउ आँखि उघारि।
तलफत मीन मलीन जनु सींचत सीतल बारि ॥१५४॥

चौपाला

धरि धीरजु उठी बैठ भुआलू । कहु सुमंत्र कहँ राम कृपालू ॥
कहाँ लखनु कहँ रामु सनेही । कहँ प्रिय पुत्रबधू बैदेही ॥
बिलपत राउ बिकल बहु भाँती । भइ जुग सरिस सिराति न राती ॥
तापस अंध साप सुधि आई । कौसल्यहि सब कथा सुनाई ॥
भयउ बिकल बरनत इतिहासा । राम रहित धिग जीवन आसा ॥
सो तनु राखि करब मैं काहा । जेंहि न प्रेम पनु मोर निबाहा ॥
हा रघुनंदन प्रान पिरीते । तुम्ह बिनु जिअत बहुत दिन बीते ॥
हा जानकी लखन हा रघुबर । हा पितु हित चित चातक जलधर।

दोहा

राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम।
तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम ॥१५५॥

चौपाला

जिअन मरन फलु दसरथ पावा । अंड अनेक अमल जसु छावा ॥
जिअत राम बिधु बदनु निहारा । राम बिरह करि मरनु सँवारा ॥
सोक बिकल सब रोवहिं रानी । रूपु सील बलु तेजु बखानी ॥
करहिं बिलाप अनेक प्रकारा । परहीं भूमितल बारहिं बारा ॥
बिलपहिं बिकल दास अरु दासी । घर घर रुदनु करहिं पुरबासी ॥
अँथयउ आजु भानुकुल भानू । धरम अवधि गुन रूप निधानू ॥
गारीं सकल कैकइहि देहीं । नयन बिहीन कीन्ह जग जेहीं ॥
एहि बिधि बिलपत रैनि बिहानी । आए सकल महामुनि ग्यानी ॥

दोहा

तब बसिष्ठ मुनि समय सम कहि अनेक इतिहास।
सोक नेवारेउ सबहि कर निज बिग्यान प्रकास ॥१५६॥

चौपाला

तेल नाँव भरि नृप तनु राखा । दूत बोलाइ बहुरि अस भाषा ॥
धावहु बेगि भरत पहिं जाहू । नृप सुधि कतहुँ कहहु जनि काहू ॥
एतनेइ कहेहु भरत सन जाई । गुर बोलाई पठयउ दोउ भाई ॥
सुनि मुनि आयसु धावन धाए । चले बेग बर बाजि लजाए ॥
अनरथु अवध अरंभेउ जब तें । कुसगुन होहिं भरत कहुँ तब तें ॥
देखहिं राति भयानक सपना । जागि करहिं कटु कोटि कलपना ॥
बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना । सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना ॥
मागहिं हृदयँ महेस मनाई । कुसल मातु पितु परिजन भाई ॥

दोहा

एहि बिधि सोचत भरत मन धावन पहुँचे आइ।
गुर अनुसासन श्रवन सुनि चले गनेसु मनाइ ॥१५७॥

चौपाला

चले समीर बेग हय हाँके । नाघत सरित सैल बन बाँके ॥
हृदयँ सोचु बड़ कछु न सोहाई । अस जानहिं जियँ जाउँ उड़ाई ॥
एक निमेष बरस सम जाई । एहि बिधि भरत नगर निअराई ॥
असगुन होहिं नगर पैठारा । रटहिं कुभाँति कुखेत करारा ॥
खर सिआर बोलहिं प्रतिकूला । सुनि सुनि होइ भरत मन सूला ॥
श्रीहत सर सरिता बन बागा । नगरु बिसेषि भयावनु लागा ॥
खग मृग हय गय जाहिं न जोए । राम बियोग कुरोग बिगोए ॥
नगर नारि नर निपट दुखारी । मनहुँ सबन्हि सब संपति हारी ॥

दोहा

पुरजन मिलिहिं न कहहिं कछु गवँहिं जोहारहिं जाहिं।
भरत कुसल पूँछि न सकहिं भय बिषाद मन माहिं ॥१५८॥

चौपाला

हाट बाट नहिं जाइ निहारी । जनु पुर दहँ दिसि लागि दवारी ॥
आवत सुत सुनि कैकयनंदिनि । हरषी रबिकुल जलरुह चंदिनि ॥
सजि आरती मुदित उठि धाई । द्वारेहिं भेंटि भवन लेइ आई ॥
भरत दुखित परिवारु निहारा । मानहुँ तुहिन बनज बनु मारा ॥
कैकेई हरषित एहि भाँति । मनहुँ मुदित दव लाइ किराती ॥
सुतहि ससोच देखि मनु मारें । पूँछति नैहर कुसल हमारें ॥
सकल कुसल कहि भरत सुनाई । पूँछी निज कुल कुसल भलाई ॥
कहु कहँ तात कहाँ सब माता । कहँ सिय राम लखन प्रिय भ्राता ॥

दोहा

सुनि सुत बचन सनेहमय कपट नीर भरि नैन।
भरत श्रवन मन सूल सम पापिनि बोली बैन ॥१५९॥

चौपाला

तात बात मैं सकल सँवारी । भै मंथरा सहाय बिचारी ॥
कछुक काज बिधि बीच बिगारेउ । भूपति सुरपति पुर पगु धारेउ ॥
सुनत भरतु भए बिबस बिषादा । जनु सहमेउ करि केहरि नादा ॥
तात तात हा तात पुकारी । परे भूमितल ब्याकुल भारी ॥
चलत न देखन पायउँ तोही । तात न रामहि सौंपेहु मोही ॥
बहुरि धीर धरि उठे सँभारी । कहु पितु मरन हेतु महतारी ॥
सुनि सुत बचन कहति कैकेई । मरमु पाँछि जनु माहुर देई ॥
आदिहु तें सब आपनि करनी । कुटिल कठोर मुदित मन बरनी ॥

दोहा

भरतहि बिसरेउ पितु मरन सुनत राम बन गौनु।
हेतु अपनपउ जानि जियँ थकित रहे धरि मौनु ॥१६०॥

चौपाला

बिकल बिलोकि सुतहि समुझावति । मनहुँ जरे पर लोनु लगावति ॥
तात राउ नहिं सोचे जोगू । बिढ़इ सुकृत जसु कीन्हेउ भोगू ॥
जीवत सकल जनम फल पाए । अंत अमरपति सदन सिधाए ॥
अस अनुमानि सोच परिहरहू । सहित समाज राज पुर करहू ॥
सुनि सुठि सहमेउ राजकुमारू । पाकें छत जनु लाग अँगारू ॥
धीरज धरि भरि लेहिं उसासा । पापनि सबहि भाँति कुल नासा ॥
जौं पै कुरुचि रही अति तोही । जनमत काहे न मारे मोही ॥
पेड़ काटि तैं पालउ सींचा । मीन जिअन निति बारि उलीचा ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०