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बालकाण्ड दोहा २०१ से २१०

दोहा

देखरावा मातहि निज अदभुत रुप अखंड।
रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड ॥२०१॥

चौपाला
अगनित रबि ससि सिव चतुरानन । बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन ॥
काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ । सोउ देखा जो सुना न काऊ ॥
देखी माया सब बिधि गाढ़ी । अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी ॥
देखा जीव नचावइ जाही । देखी भगति जो छोरइ ताही ॥
तन पुलकित मुख बचन न आवा । नयन मूदि चरननि सिरु नावा ॥
बिसमयवंत देखि महतारी । भए बहुरि सिसुरूप खरारी ॥
अस्तुति करि न जाइ भय माना । जगत पिता मैं सुत करि जाना ॥
हरि जननि बहुबिधि समुझाई । यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई ॥

दोहा

बार बार कौसल्या बिनय करइ कर जोरि ॥
अब जनि कबहूँ ब्यापै प्रभु मोहि माया तोरि ॥२०२॥

चौपाला
बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा । अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा ॥
कछुक काल बीतें सब भाई । बड़े भए परिजन सुखदाई ॥
चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई । बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई ॥
परम मनोहर चरित अपारा । करत फिरत चारिउ सुकुमारा ॥
मन क्रम बचन अगोचर जोई । दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई ॥
भोजन करत बोल जब राजा । नहिं आवत तजि बाल समाजा ॥
कौसल्या जब बोलन जाई । ठुमकु ठुमकु प्रभु चलहिं पराई ॥
निगम नेति सिव अंत न पावा । ताहि धरै जननी हठि धावा ॥
धूरस धूरि भरें तनु आए । भूपति बिहसि गोद बैठाए ॥

दोहा

भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ।
भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ ॥२०३॥

चौपाला
बालचरित अति सरल सुहाए । सारद सेष संभु श्रुति गाए ॥
जिन कर मन इन्ह सन नहिं राता । ते जन बंचित किए बिधाता ॥
भए कुमार जबहिं सब भ्राता । दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता ॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई । अलप काल बिद्या सब आई ॥
जाकी सहज स्वास श्रुति चारी । सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी ॥
बिद्या बिनय निपुन गुन सीला । खेलहिं खेल सकल नृपलीला ॥
करतल बान धनुष अति सोहा । देखत रूप चराचर मोहा ॥
जिन्ह बीथिन्ह बिहरहिं सब भाई । थकित होहिं सब लोग लुगाई ॥

दोहा

कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल।
प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल ॥२०४॥

चौपाला
बंधु सखा संग लेहिं बोलाई । बन मृगया नित खेलहिं जाई ॥
पावन मृग मारहिं जियँ जानी । दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी ॥
जे मृग राम बान के मारे । ते तनु तजि सुरलोक सिधारे ॥
अनुज सखा सँग भोजन करहीं । मातु पिता अग्या अनुसरहीं ॥
जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा । करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा ॥
बेद पुरान सुनहिं मन लाई । आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई ॥
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा ॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा । देखि चरित हरषइ मन राजा ॥

दोहा

ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप।
भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप ॥२०५॥

चौपाला
यह सब चरित कहा मैं गाई । आगिलि कथा सुनहु मन लाई ॥
बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी । बसहि बिपिन सुभ आश्रम जानी ॥
जहँ जप जग्य मुनि करही । अति मारीच सुबाहुहि डरहीं ॥
देखत जग्य निसाचर धावहि । करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं ॥
गाधितनय मन चिंता ब्यापी । हरि बिनु मरहि न निसिचर पापी ॥
तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा । प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा ॥
एहुँ मिस देखौं पद जाई । करि बिनती आनौ दोउ भाई ॥
ग्यान बिराग सकल गुन अयना । सो प्रभु मै देखब भरि नयना ॥

दोहा

बहुबिधि करत मनोरथ जात लागि नहिं बार।
करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार ॥२०६॥

चौपाला
मुनि आगमन सुना जब राजा । मिलन गयऊ लै बिप्र समाजा ॥
करि दंडवत मुनिहि सनमानी । निज आसन बैठारेन्हि आनी ॥
चरन पखारि कीन्हि अति पूजा । मो सम आजु धन्य नहिं दूजा ॥
बिबिध भाँति भोजन करवावा । मुनिवर हृदयँ हरष अति पावा ॥
पुनि चरननि मेले सुत चारी । राम देखि मुनि देह बिसारी ॥
भए मगन देखत मुख सोभा । जनु चकोर पूरन ससि लोभा ॥
तब मन हरषि बचन कह राऊ । मुनि अस कृपा न कीन्हिहु काऊ ॥
केहि कारन आगमन तुम्हारा । कहहु सो करत न लावउँ बारा ॥
असुर समूह सतावहिं मोही । मै जाचन आयउँ नृप तोही ॥
अनुज समेत देहु रघुनाथा । निसिचर बध मैं होब सनाथा ॥

दोहा

देहु भूप मन हरषित तजहु मोह अग्यान।
धर्म सुजस प्रभु तुम्ह कौं इन्ह कहँ अति कल्यान ॥२०७॥

चौपाला
सुनि राजा अति अप्रिय बानी । हृदय कंप मुख दुति कुमुलानी ॥
चौथेंपन पायउँ सुत चारी । बिप्र बचन नहिं कहेहु बिचारी ॥
मागहु भूमि धेनु धन कोसा । सर्बस देउँ आजु सहरोसा ॥
देह प्रान तें प्रिय कछु नाही । सोउ मुनि देउँ निमिष एक माही ॥
सब सुत प्रिय मोहि प्रान कि नाईं । राम देत नहिं बनइ गोसाई ॥
कहँ निसिचर अति घोर कठोरा । कहँ सुंदर सुत परम किसोरा ॥
सुनि नृप गिरा प्रेम रस सानी । हृदयँ हरष माना मुनि ग्यानी ॥
तब बसिष्ट बहु निधि समुझावा । नृप संदेह नास कहँ पावा ॥
अति आदर दोउ तनय बोलाए । हृदयँ लाइ बहु भाँति सिखाए ॥
मेरे प्रान नाथ सुत दोऊ । तुम्ह मुनि पिता आन नहिं कोऊ ॥

दोहा

सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस।
जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस ॥२०८ (क )॥

सोरठा

पुरुषसिंह दोउ बीर हरषि चले मुनि भय हरन ॥
कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन ॥२०८ (ख )॥

अरुन नयन उर बाहु बिसाला । नील जलज तनु स्याम तमाला ॥
कटि पट पीत कसें बर भाथा । रुचिर चाप सायक दुहुँ हाथा ॥
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई । बिस्बामित्र महानिधि पाई ॥
प्रभु ब्रह्मन्यदेव मै जाना । मोहि निति पिता तजेहु भगवाना ॥
चले जात मुनि दीन्हि दिखाई । सुनि ताड़का क्रोध करि धाई ॥
एकहिं बान प्रान हरि लीन्हा । दीन जानि तेहि निज पद दीन्हा ॥
तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही । बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही ॥
जाते लाग न छुधा पिपासा । अतुलित बल तनु तेज प्रकासा ॥

दोहा

आयुष सब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि।
कंद मूल फल भोजन दीन्ह भगति हित जानि ॥२०९॥

चौपाला
प्रात कहा मुनि सन रघुराई । निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाई ॥
होम करन लागे मुनि झारी । आपु रहे मख कीं रखवारी ॥
सुनि मारीच निसाचर क्रोही । लै सहाय धावा मुनिद्रोही ॥
बिनु फर बान राम तेहि मारा । सत जोजन गा सागर पारा ॥
पावक सर सुबाहु पुनि मारा । अनुज निसाचर कटकु सँघारा ॥
मारि असुर द्विज निर्मयकारी । अस्तुति करहिं देव मुनि झारी ॥
तहँ पुनि कछुक दिवस रघुराया । रहे कीन्हि बिप्रन्ह पर दाया ॥
भगति हेतु बहु कथा पुराना । कहे बिप्र जद्यपि प्रभु जाना ॥
तब मुनि सादर कहा बुझाई । चरित एक प्रभु देखिअ जाई ॥
धनुषजग्य मुनि रघुकुल नाथा । हरषि चले मुनिबर के साथा ॥
आश्रम एक दीख मग माहीं । खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं ॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी । सकल कथा मुनि कहा बिसेषी ॥

दोहा

गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर ।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर ॥२१०॥


छंद

परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही ।
देखत रघुनायक जन सुख दायक सनमुख होइ कर जोरि रही ॥
अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही ।
अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही ॥
धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई ।
अति निर्मल बानीं अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई ॥
मै नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई।
राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई ॥
मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना ।
देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना ॥
बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना ।
पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना ॥
जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी ।
सोइ पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी ॥
एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार बार हरि चरन परी ।
जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पतिलोक अनंद भरी ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०