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लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६०

दोहा

जासु प्रबल माया बल सिव बिरंचि बड़ छोट ।

ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट ॥५१॥

चौपाला

नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा । महि ते प्रगट होहिं जलधारा ॥

नाना भाँति पिसाच पिसाची । मारु काटु धुनि बोलहिं नाची ॥

बिष्टा पूय रुधिर कच हाड़ा । बरषइ कबहुँ उपल बहु छाड़ा ॥

बरषि धूरि कीन्हेसि अँधिआरा । सूझ न आपन हाथ पसारा ॥

कपि अकुलाने माया देखें । सब कर मरन बना एहि लेखें ॥

कौतुक देखि राम मुसुकाने । भए सभीत सकल कपि जाने ॥

एक बान काटी सब माया । जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया ॥

कृपादृष्टि कपि भालु बिलोके । भए प्रबल रन रहहिं न रोके ॥

दोहा

आयसु मागि राम पहिं अंगदादि कपि साथ ।

लछिमन चले क्रुद्ध होइ बान सरासन हाथ ॥५२॥

चौपाला

छतज नयन उर बाहु बिसाला । हिमगिरि निभ तनु कछु एक लाला ॥

इहाँ दसानन सुभट पठाए । नाना अस्त्र सस्त्र गहि धाए ॥

भूधर नख बिटपायुध धारी । धाए कपि जय राम पुकारी ॥

भिरे सकल जोरिहि सन जोरी । इत उत जय इच्छा नहिं थोरी ॥

मुठिकन्ह लातन्ह दातन्ह काटहिं । कपि जयसील मारि पुनि डाटहिं ॥

मारु मारु धरु धरु धरु मारू । सीस तोरि गहि भुजा उपारू ॥

असि रव पूरि रही नव खंडा । धावहिं जहँ तहँ रुंड प्रचंडा ॥

देखहिं कौतुक नभ सुर बृंदा । कबहुँक बिसमय कबहुँ अनंदा ॥

दोहा

रुधिर गाड़ भरि भरि जम्यो ऊपर धूरि उड़ाइ ।

जनु अँगार रासिन्ह पर मृतक धूम रह्यो छाइ ॥५३॥

चौपाला

घायल बीर बिराजहिं कैसे । कुसुमित किंसुक के तरु जैसे ॥

लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा । भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा ॥

एकहि एक सकइ नहिं जीती । निसिचर छल बल करइ अनीती ॥

क्रोधवंत तब भयउ अनंता । भंजेउ रथ सारथी तुरंता ॥

नाना बिधि प्रहार कर सेषा । राच्छस भयउ प्रान अवसेषा ॥

रावन सुत निज मन अनुमाना । संकठ भयउ हरिहि मम प्राना ॥

बीरघातिनी छाड़िसि साँगी । तेज पुंज लछिमन उर लागी ॥

मुरुछा भई सक्ति के लागें । तब चलि गयउ निकट भय त्यागें ॥

दोहा

मेघनाद सम कोटि सत जोधा रहे उठाइ ।

जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ ॥५४॥

चौपाला

सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू । जारइ भुवन चारिदस आसू ॥

सक संग्राम जीति को ताही । सेवहिं सुर नर अग जग जाही ॥

यह कौतूहल जानइ सोई । जा पर कृपा राम कै होई ॥

संध्या भइ फिरि द्वौ बाहनी । लगे सँभारन निज निज अनी ॥

ब्यापक ब्रह्म अजित भुवनेस्वर । लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर ॥

तब लगि लै आयउ हनुमाना । अनुज देखि प्रभु अति दुख माना ॥

जामवंत कह बैद सुषेना । लंकाँ रहइ को पठई लेना ॥

धरि लघु रूप गयउ हनुमंता । आनेउ भवन समेत तुरंता ॥

दोहा

राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन ।

कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥५५॥

चौपाला

राम चरन सरसिज उर राखी । चला प्रभंजन सुत बल भाषी ॥

उहाँ दूत एक मरमु जनावा । रावन कालनेमि गृह आवा ॥

दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना । पुनि पुनि कालनेमि सिरु धुना ॥

देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा । तासु पंथ को रोकन पारा ॥

भजि रघुपति करु हित आपना । छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना ॥

नील कंज तनु सुंदर स्यामा । हृदयँ राखु लोचनाभिरामा ॥

मैं तैं मोर मूढ़ता त्यागू । महा मोह निसि सूतत जागू ॥

काल ब्याल कर भच्छक जोई । सपनेहुँ समर कि जीतिअ सोई ॥

दोहा

सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार ।

राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार ॥५६॥

चौपाला

अस कहि चला रचिसि मग माया । सर मंदिर बर बाग बनाया ॥

मारुतसुत देखा सुभ आश्रम । मुनिहि बूझि जल पियौं जाइ श्रम ॥

राच्छस कपट बेष तहँ सोहा । मायापति दूतहि चह मोहा ॥

जाइ पवनसुत नायउ माथा । लाग सो कहै राम गुन गाथा ॥

होत महा रन रावन रामहिं । जितहहिं राम न संसय या महिं ॥

इहाँ भएँ मैं देखेउँ भाई । ग्यान दृष्टि बल मोहि अधिकाई ॥

मागा जल तेहिं दीन्ह कमंडल । कह कपि नहिं अघाउँ थोरें जल ॥

सर मज्जन करि आतुर आवहु । दिच्छा देउँ ग्यान जेहिं पावहु ॥

दोहा

सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान ।

मारी सो धरि दिव्य तनु चली गगन चढ़ि जान ॥५७॥

चौपाला

कपि तव दरस भइउँ निष्पापा । मिटा तात मुनिबर कर सापा ॥

मुनि न होइ यह निसिचर घोरा । मानहु सत्य बचन कपि मोरा ॥

अस कहि गई अपछरा जबहीं । निसिचर निकट गयउ कपि तबहीं ॥

कह कपि मुनि गुरदछिना लेहू । पाछें हमहि मंत्र तुम्ह देहू ॥

सिर लंगूर लपेटि पछारा । निज तनु प्रगटेसि मरती बारा ॥

राम राम कहि छाड़ेसि प्राना । सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना ॥

देखा सैल न औषध चीन्हा । सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा ॥

गहि गिरि निसि नभ धावत भयऊ । अवधपुरी उपर कपि गयऊ ॥

दोहा

देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि ।

बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि ॥५८॥

चौपाला

परेउ मुरुछि महि लागत सायक । सुमिरत राम राम रघुनायक ॥

सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए । कपि समीप अति आतुर आए ॥

बिकल बिलोकि कीस उर लावा । जागत नहिं बहु भाँति जगावा ॥

मुख मलीन मन भए दुखारी । कहत बचन भरि लोचन बारी ॥

जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा । तेहिं पुनि यह दारुन दुख दीन्हा ॥

जौं मोरें मन बच अरु काया । प्रीति राम पद कमल अमाया ॥

तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला । जौं मो पर रघुपति अनुकूला ॥

सुनत बचन उठि बैठ कपीसा । कहि जय जयति कोसलाधीसा ॥

सोरठा

लीन्ह कपिहि उर लाइ पुलकित तनु लोचन सजल ।

प्रीति न हृदयँ समाइ सुमिरि राम रघुकुल तिलक ॥५९॥

चौपाला

तात कुसल कहु सुखनिधान की । सहित अनुज अरु मातु जानकी ॥

कपि सब चरित समास बखाने । भए दुखी मन महुँ पछिताने ॥

अहह दैव मैं कत जग जायउँ । प्रभु के एकहु काज न आयउँ ॥

जानि कुअवसरु मन धरि धीरा । पुनि कपि सन बोले बलबीरा ॥

तात गहरु होइहि तोहि जाता । काजु नसाइहि होत प्रभाता ॥

चढ़ु मम सायक सैल समेता । पठवौं तोहि जहँ कृपानिकेता ॥

सुनि कपि मन उपजा अभिमाना । मोरें भार चलिहि किमि बाना ॥

राम प्रभाव बिचारि बहोरी । बंदि चरन कह कपि कर जोरी ॥

दोहा

तव प्रताप उर राखि प्रभु जेहउँ नाथ तुरंत ।

अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत ॥६०क॥

भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार ।

मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार ॥६०ख॥

चौपाला

उहाँ राम लछिमनहिं निहारी । बोले बचन मनुज अनुसारी ॥

अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ । राम उठाइ अनुज उर लायउ ॥

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ । बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ ॥

मम हित लागि तजेहु पितु माता । सहेहु बिपिन हिम आतप बाता ॥

सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई ॥

जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू । पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू ॥

सुत बित नारि भवन परिवारा । होहिं जाहिं जग बारहिं बारा ॥

अस बिचारि जियँ जागहु ताता । मिलइ न जगत सहोदर भ्राता ॥

जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना ॥

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही । जौं जड़ दैव जिआवै मोही ॥

जैहउँ अवध कवन मुहु लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ॥

बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं । नारि हानि बिसेष छति नाहीं ॥

अब अपलोकु सोकु सुत तोरा । सहिहि निठुर कठोर उर मोरा ॥

निज जननी के एक कुमारा । तात तासु तुम्ह प्रान अधारा ॥

सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी । सब बिधि सुखद परम हित जानी ॥

उतरु काह दैहउँ तेहि जाई । उठि किन मोहि सिखावहु भाई ॥

बहु बिधि सिचत सोच बिमोचन । स्त्रवत सलिल राजिव दल लोचन ॥

उमा एक अखंड रघुराई । नर गति भगत कृपाल देखाई ॥

रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास
Chapters
बालकाण्ड श्लोक बालकाण्ड दोहा १ से १० बालकाण्ड दोहा ११ से २० बालकाण्ड दोहा २१ से ३० बालकाण्ड दोहा ३१ से ४० बालकाण्ड दोहा ४१ से ५० बालकाण्ड दोहा ५१ से ६० बालकाण्ड दोहा ६१ से ७० बालकाण्ड दोहा ७१ से ८० बालकाण्ड दोहा ८१ से ९० बालकाण्ड दोहा ९१ से १०० बालकाण्ड दोहा १०१ से ११० बालकाण्ड दोहा १११ से १२० बालकाण्ड दोहा १२१ से १३० बालकाण्ड दोहा १३१ से १४० बालकाण्ड दोहा १४१ से १५० बालकाण्ड दोहा १५१ से १६० बालकाण्ड दोहा १६१ से १७० बालकाण्ड दोहा १७१ से १८० बालकाण्ड दोहा १८१ से १९० बालकाण्ड दोहा १९१ से २०० बालकाण्ड दोहा २०१ से २१० बालकाण्ड दोहा २११ से २२० बालकाण्ड दोहा २२१ से २३० बालकाण्ड दोहा २३१ से २४० बालकाण्ड दोहा २४१ से २५० बालकाण्ड दोहा २५१ से २६० बालकाण्ड दोहा २६१ से २७० बालकाण्ड दोहा २७१ से २८० बालकाण्ड दोहा २८१ से २९० बालकाण्ड दोहा २९१ से ३०० बालकाण्ड दोहा ३०१ से ३१० बालकाण्ड दोहा ३११ से ३२० बालकाण्ड दोहा ३२१ से ३३० बालकाण्ड दोहा ३३१ से ३४० बालकाण्ड दोहा ३४१ से ३५० बालकाण्ड दोहा ३५१ से ३६० अयोध्या काण्ड श्लोक अयोध्या काण्ड दोहा १ से १० अयोध्या काण्ड दोहा ११ से २० अयोध्या काण्ड दोहा २१ से ३० अयोध्या काण्ड दोहा ३१ से ४० अयोध्या काण्ड दोहा ४१ से ५० अयोध्या काण्ड दोहा ५१ से ६० अयोध्या काण्ड दोहा ६१ से ७० अयोध्या काण्ड दोहा ७१ से ८० अयोध्या काण्ड दोहा ८१ से ९० अयोध्या काण्ड दोहा ९१ से १०० अयोध्या काण्ड दोहा १०१ से ११० अयोध्या काण्ड दोहा १११ से १२० अयोध्या काण्ड दोहा १२१ से १३० अयोध्या काण्ड दोहा १३१ से १४० अयोध्या काण्ड दोहा १४१ से १५० अयोध्या काण्ड दोहा १५१ से १६० अयोध्या काण्ड दोहा १६१ से १७० अयोध्या काण्ड दोहा १७१ से १८० अयोध्या काण्ड दोहा १८१ से १९० अयोध्या काण्ड दोहा १९१ से २०० अयोध्या काण्ड दोहा २०१ से २१० अयोध्या काण्ड दोहा २११ से २२० अयोध्या काण्ड दोहा २२१ से २३० अयोध्या काण्ड दोहा २३१ से २४० अयोध्या काण्ड दोहा २४१ से २५० अयोध्या काण्ड दोहा २५१ से २६० अयोध्या काण्ड दोहा २६१ से २७० अयोध्या काण्ड दोहा २७१ से २८० अयोध्या काण्ड दोहा २८१ से २९० अयोध्या काण्ड दोहा २९१ से ३०० अयोध्या काण्ड दोहा ३०१ से ३१० अयोध्या काण्ड दोहा ३११ से ३२६ अरण्यकाण्ड श्लोक अरण्यकाण्ड दोहा १ से १० अरण्यकाण्ड दोहा ११ से २० अरण्यकाण्ड दोहा २१ से ३० अरण्यकाण्ड दोहा ३१ से ४० अरण्यकाण्ड दोहा ४१ से ४६ किष्किन्धाकाण्ड श्लोक किष्किन्धाकाण्ड दोहा १ से १० किष्किन्धाकाण्ड दोहा ११ से २० किष्किन्धाकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड श्लोक सुन्दरकाण्ड दोहा १ से १० सुन्दरकाण्ड दोहा ११ से २० सुन्दरकाण्ड दोहा २१ से ३० सुन्दरकाण्ड दोहा ३१ से ४० सुन्दरकाण्ड दोहा ४१ से ५० सुन्दरकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड श्लोक लंकाकाण्ड दोहा १ से १० लंकाकाण्ड दोहा ११ से २० लंकाकाण्ड दोहा २१ से ३० लंकाकाण्ड दोहा ३१ से ४० लंकाकाण्ड दोहा ४१ से ५० लंकाकाण्ड दोहा ५१ से ६० लंकाकाण्ड दोहा ६१ से ७० लंकाकाण्ड दोहा ७१ से ८० लंकाकाण्ड दोहा ८१ से ९० लंकाकाण्ड दोहा ९१ से १०० लंकाकाण्ड दोहा १०१ से ११० लंकाकाण्ड दोहा १११ से १२१ उत्तरकाण्ड - श्लोक उत्तरकाण्ड - दोहा १ से १० उत्तरकाण्ड - दोहा ११ से २० उत्तरकाण्ड - दोहा २१ से ३० उत्तरकाण्ड - दोहा ३१ से ४० उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५० उत्तरकाण्ड - दोहा ५१ से ६० उत्तरकाण्ड - दोहा ६१ से ७० उत्तरकाण्ड - दोहा ७१ से ८० उत्तरकाण्ड - दोहा ८१ से ९० उत्तरकाण्ड - दोहा ९१ से १०० उत्तरकाण्ड - दोहा १०१ से ११० उत्तरकाण्ड - दोहा १११ से १२० उत्तरकाण्ड - दोहा १२१ से १३०