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'नवजीवन' और 'यंग इंडिया'

एक तरफ तो चाहे जैसा धीमा होने पर भी शान्ति-रक्षा का यह आन्दोलन चल रहा था और दूसरी तरफ सरकार की दमन नीति पूरे जोर से चल रही थी। पंजाब मे उसके प्रभाव का साक्षात्कार हुआ। वहाँ फौजी कानून यानि नादिरशाही शुरू हुई। नेतागण पकड़े गये। खास अदालते अदालते नही, बल्कि केवल गवर्नर का हुक्म बजाने का साधन बनी हुई थी। उन्होंने बिना सबूत और बिना शहाशत के लोगो को सजाये दी। फऔजू सिपाहियो ने निर्दोष लोगो को कीड़ो की तरह पेट के बल चलाया। इसके सामने जलियाँवाला बाग का घोर हत्याकांड तो मेरी दृष्टि मे किसी गिनती मे नही था, यद्यपि आम लोगो का और दुनिया का ध्यान इस हत्याकांड ने ही खींचा था।

मुझ पर दबाव पड़ने लगा कि मै जैसे भी बनू पंजाब पहुँचू। मैने वाइसरॉय को पत्र लिखे, तार किये, परन्तु जाने की इजाजत न मिली। बिना इजाजत के जाने पर अन्दर तो जा ही नही सकता था, केवल सविनय कानून-भंग करने का संतोष मिल सकता था। मेरे सामने यह विकट प्रश्न खड़ा था कि इस धर्म-संकट मे मुझे क्या करना चाहिये। मुझे लगा कि निषेधाज्ञा का अनादार करके प्रवेश करूँगा , तो वह विनय-पूर्वक अनादार न माना जायेगा। शान्ति की जो प्रतीति मै चाहता था , वह मुझे अब तक हुई नही थी। पंजाब की नादिरशाही ने लोगो को अशान्ति को अधिक भड़का दिया था। मुझे लगा कि ऐसे समय मेरे द्वारा की गयी कानून की अवज्ञा जलती आग मे घी होम ने का काम करेगी। अतएव पंजाब मे प्रवेश करने की सलाह को मैने तुरन्त माना नही। मेरे लिए यह निर्णय एक कड़वा घूट था। पंजाब से रोज अन्याय के समाचार आते थे औऱ मुझे उन्हें रोज सुनना तथा दाँत पीसकर रह जाना पड़ता था।

इतने मे मि. हार्निमैन को , जिन्होने 'क्रॉनिकल' को एक प्रचंड शक्ति बना दिया था , सरकार चुरा ले गयी और जनता को इसका पता तक न चलने दिया गया। इस चोरी मे जो गन्दगी थी, उसकी बदबू मुझे अभी तक आया करती है। मै जानता हूँ कि मि. हार्निमैन अराजकता नहीं चाहते थे। मैने सत्याग्रह-समिति की सलाह के बिना पंजाब-सरकार का हुक्म तोड़ा, यह उन्हें अच्छा नही लगा था। सविनय कानून-भंग को मुलतवी रखने मे वे पूरी तरह सहमत थे। उस मुलतवी रखनेका अपना निर्णय मैने प्रकट किया , इसके पहले ही मुलतवी रखने की सलाह देने वाला उनका पत्र मेरे नाम रवाना हो चुका था औ वह मेरा निर्णय प्रकट होने के बाद मुझे मिला। इसका कारण अहमदाबाद और बम्बई के बीच का फासला था। अतएव उनके देश निकाले से मुझे जितना आश्चर्य हुआ उतना ही दुःख भी हुआ।

इस घटना के कारण 'क्रॉनिकल' के व्यवस्थापको मे उसे चलाने का बोझ मुझ पर डाला। मि. ब्रेलवी तो थे ही। इसलिए मुझे अधिक कुछ करना नही पड़ता था। फिर भी मेरे स्वभाव के अनुसार मेरे लिए यह जिम्मेदारी बहुत बड़ी हो गयी थी।

किन्तु मुझे यह जिम्मेदारी अधिक दिन तक उठानी नही पड़ी। सरकारी मेहरबानी से 'क्रॉनिकल' बन्द हो गया।

जो लोग 'क्रॉनिकल' की व्यवस्था के कर्ताधर्ता थे, वे ही लोग 'यंग इंडिया' की व्यवस्था पर भी निगरानी रखते थे। वे थे उमर सोबानी और शंकरलाल बैकर। इन दोनो भाइयो ने मुझे सुझाया कि मै 'यंग इंडिया' की जिम्मेदारी अपने सिर लूँ। और 'क्रॉनिकल' के अभाव की थोड़ी पूर्ति करने के विचार से 'यंग इंडिया' को हफ्ते मे एक बार के बदले दो बार निकालना उन्हें औऱ मुझे ठीक लगा। मुझे लोगो को सत्याग्रह का रहस्य समझाने का उत्साह था। पंजाब के बारे मे मै और कुछ नही तो कम-से-कम उचित आलोचना को कर ही सकता था , और उसके पीछे सत्याग्रह-रूपी शक्ति है इसका पता सरकार को था ही। अतएव इन मित्रो की सलाह मैने स्वीकार कर ली।

किन्तु अंग्रेजी द्वारा जनता को सत्याग्रह की शिक्षा कैसे दी जा सकती थी ? गुजरात मेरे कार्य का मुख्य क्षेत्र था। इस समय भाई इन्दुलाल याज्ञिक उमर सोबानी और शंकरलाल बैकर की मंडली मे थे। वे 'नवजीवन' नामक गुजराती मासिक चला रहे थे। उसका खर्च भी उक्त मित्र पूरा करते थे। भाई इन्दुलाल और उन मित्रो ने यह पत्र मुझे सौंप दिया और भाई इन्दुलाल ने इसमे काम करना भी स्वीकार किया। इस मासिक को साप्ताहिक बनाया गया।

इस बीच 'क्रॉनिकल' फिर जी उठा , इसलिए 'यंग इंडिया' पुनः साप्ताहिक हो गया और मेरी सलाह के कारण उसे अहमदाबाद ले जाया गया। दो पत्रो को अलग-अलग स्थानो से निकालने मे खर्च अधिक होता था और मुझे अधिक कठिनाई होती थी। 'नवजीवन' तो अहमदाबाद से ही निकलता था। ऐसे पत्रो के लिए स्वतंत्र छापाखाना होना चाहिए, इसका अनुभव मुझे 'इंडियन ओपीनियन' के सम्बन्ध मे हो चुका था। इसके अतिरिक्त यहाँ के उस समय के अखबारो के कानून भी ऐसे थे कि मै जो विचार प्रकट करना चाहता था, उन्हें व्यापारिक दृष्टि से चलनेवाले छापखानो के मालिक छापने मे हिचकिचाते थे। अपना स्वतंत्र छापखाना खड़ा करने का यह भी एक प्रबल कारण था और यह काम अहमदाबाद मे ही सरलता से हो सकता था। अतएव 'यंग इंडिया' को अहमदाबाद ले गये।

इन पत्रो के द्वारा मैने जनता को यथाशक्ति सत्याग्रह की शिक्षा देना शुरू किया। पहले दोनो पत्रो की थोड़ी ही प्रतियाँ खपती थी। लेकिन बढते-बढते वे चालिस हजार के आसपास पहुँच गयी। 'नवजीवन' के ग्राहक एकदम बढे, जब कि 'यंग इंडिया' के धीरे-धीरे बढे। मेरे जेल जाने के बाद इसमे कमी हुई और आज दोनो की ग्राहक संख्या 8000 से नीचे चली गयी है।

इन पत्रो मे विज्ञापर न लेने का मेरा आग्रह शुरू से ही था। मै मानता हूँ कि इससे कोई हानि नही हुई और इस प्रथा के कारण पत्रो के विचार-स्वातंत्र्य की रक्षा करने मे बहुत मदद मिली। इस पत्रो द्वारा मै अपनी शान्ति प्राप्त कर सका। क्योकि यद्यपि मै सविनय कानून-भंग तुरन्त ही शुरू नही कर सका, फिर भी मै अपने विचार स्वतंत्रता-पूर्वक प्रकट कर सका , जो लोग सलाह और सुझाव के लिए मेरी ओर देख रहे थे, उन्हे मै आश्वासन दे सका। और , मेरा ख्याल है कि दोनो पत्रो ने उस कठिन समय मे जनता की अच्छी सेवा की और फौजी कानून के जुल्म को हलका करने मे हाथ बंटाया।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति