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गोखले के साथ पूना में

मेरे बम्बई पहुँचते ही गोखले ने मुझे खबर दी थी : "गवर्नर आपसे मिलना चाहते हैं। अतएव पूना आने के पहले उनसे मिल आना उचित होगा।" इसलिए मैं उनसे मिले गया। साधारण बातचीत के बाद उन्होंने कहा : "मैं आपसे एक वचन माँगतो हूँ। मैं चाहता हूँ कि सरकार के बारे में आप कोई भी कदम उठाये , उसके पहले मुझे से मिलकर बात कर लिया करें।"

मैंने जबाव दिया : "वचन देना मेरे लिए बहुत सरल हैं। क्योंकि सत्याग्रही के नाते मेरा नियम ही हैं कि किसी के विरुद्ध कोई कदम उठाना हैं तो पहले उसका दृष्टिकोण उसी से समझ लूँ और जिस हद तक संभव हो उस हद तक अनुकूल हो जाउँ। दक्षिण अफ्रीका में मैंने सदा इस नियम का पालन किया हैं और यहाँ भी वैसा ही करने वाला हूँ।"

लार्ड विलिंग्डन ने आभार माना और कहा: 'आप जब मिलना चाहेंगे, मुझसे तुरन्त मिल सकेंगे और आप देखेंगे कि सरकार जान-बूझकर कोई बुरा काम नहीं करना चाहती।'

मैंने जवाब दिया: 'यह विश्वास ही तो मेरा सहारा हैं।'

मैं पूना पहुँचा। वहाँ के सब संस्मरण देने में मैं असमर्थ हूँ। गोखले ने और (भारत सेवक समाज) सोसायटी के सदस्यों ने मुझे अपने प्रेम से नहला दिया। जहाँ तक मुझे याद हैं , उन्होंने सब सदस्यों को पूना बुलाया था। सबके साथ कई विषयों पर मैंने दिल खोल कर बातचीत की। गोखले की तीव्र इच्छा थी कि मैं भी सोसायटी में सम्मिलित हो जाऊँ। मेरी इच्छा तो थी ही। किन्तु सोसाइटी के सदस्यों को ऐसा लगा कि सोसाइटी के आदर्श और काम करने की रीति मुझसे भिन्न हैं, इसलिए मुझे सदस्य बनना चाहिये या नहीं इस बारे में उनके मन में शंका थी। गोखले का विश्वास था कि मुझमें अपने आदर्शों पर ढृढ़ रहने का जितना आग्रह हैं उतना ही दूसरों के आदर्शों को निबाह लेने का और उनके साथ घुलमिल जाने का मेरा स्वभाव हैं। उन्होंने कहा: 'हमारे सदस्य अभी आपके इस निबाह लेने वाले स्वभाव को पहचान नहीं पाये हैं। वे अपने आदर्शों पर ढृढ़ रहने वाले स्वतंत्र और ढृढ़ विचार के लोग हैं। मैं आशा तो करता हूँ कि वे आपको स्वीकार कर लेंगे। पर स्वीकार न भी करें तो आप यह न समझना कि उन्हें आप के प्रति कम आदर या कम प्रेम हैं। इस प्रेम को अखंडित रखने के लिए वे कोई जोखिम उठाते हूए डरते हैं। पर आप सोसाइटी के सदस्य बने या न बने मैं तो आपको सदस्य ही मानूँगा।'

मैंने अपने विचार गोखले को बता दिये थे: ' मैं सोसाइटी का सदस्य चाहे न बनूँ तो भी मुझे एक आश्रम खोलकर उसमें फीनिक्स के साथियों को रखना और खुद वहाँ बैठ जाना हैं। इस विश्वास के कारण कि गुजराती होने से मेरे पास गुजरात की सेवा के जरिये देश की सेवा करने की पूँजी अधिक होनी चाहिये , मैं गुजरात में कही स्थिर होना चाहता हूँ।'

गोखले को ये विचार पसन्द पड़े थे , इसलिए उन्होंने कहा: 'आप ऐसा अवश्य करे। सदस्यों के साथ आपकी बातचीत का जो भी परिणाम आये, पर यह निश्चित हैं कि आपको आश्रम के लिए पैसा मुझी से लेना हैं। उसे मैं अपना ही आश्रम समझूँगा।'

मेरा हृदय फूल उठा। मैं यह सोचकर खुश हुआ कि मुझे पैसा उगाने के धन्धे से मुक्ति मिल गयी और यह कि अब मुझे अपनी जवाबदारी पर नहीं चलना पड़ेगा , बल्कि हर परेशानी के समय मुझे रास्ता दिखाने वाला कोई होगा। इस विश्वास के काऱण मुझे ऐसा लगा मानो मेरे सिर का बड़ा बोझ उतर गया हो।

गोखने ने स्व. डाक्टर देव को बुलाकर कह दिया:'गाँधी का खाता अपने यहाँ खोल लीजिये और इन्हें आश्रम के लिए तथा अपने सार्वजनिक कार्यो के लिए जितनी रकम की जरुरत हो, आप देते रहिये।'

अब मैं पूना छोड़कर शान्तिनिकेतन जाने की तैयारी कर रहा था। अंतिम रात को गोखले ने मुझे रुचने वाली एक दावत दी और उसमें उन्होंने जो चीजे मैं खाता था उन्हीं का अर्थात् सूखे और ताजे फलों के आहार का ही प्रबन्ध किया। दावत की जगह उनके कमरे से कुछ ही दूर थी , पर उसमें भी सम्मिलित होने की उनकी हालत न थी। लेकिन उनका प्रेम उन्हें दूर कैसे रहने देता? उन्होंने आने का आग्रह किया। वे आये भी, पर उन्हें मूर्छा आ गयी ऐर वापस जाना पड़ा। उनकी ऐसी हालत जब-तब हो जाया करती थी। अतएव उन्होंने संदेशा भेजा कि दावत जारी ही रखनी हैं। दावत का मतलब था, सोसाइटी के आश्रम मे मेहमानघर के पासवाले आँगन में जाजम बिछाकर बैठना, मूंगफली, खजूर आदि खाना, प्रेमपूर्ण चर्चाये करना और एक दूसरे के दिलो को अधिक जानना।

पर गोखले की यह मूर्छा मेरे जीवन के लिए साधारण अनुभव बनकर रहने वाली न थी।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति