Get it on Google Play
Download on the App Store

एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव

इस महामारी ने गरीब हिन्दुस्तानियो पर मेरे प्रभाव को, मेरे धंधे का और मेरी जिम्मेदारी को बढा दिया। साथ ही , यूरोपियनो के बीच मेरी बढ़ती हुई कुछ जान पहचान भी इतनी निकट की होती गयी कि उसके कारण भी मेरी जिम्मेदारी बढने लगी।

जिस तरह वेस्ट से मेरी जान पहचान निरामिषाहारी भोजनगृह मे हुई , उसी तरह पोलाक के विषय मे हुआ। एक दिन जिस मेज पर मै बैठा था , उससे दूसरी मेज पर एक नौजवान भोजन कर रहे थे। उन्होने मिलने की इच्छा से मुझे अपने नाम का कार्ड भेजा। मैने उन्हें मेज पर आने के लिए निमंत्रित किया। वे आये।

'मैं 'क्रिटिक' का उप संपादक हूँ। महामारी विषयक आपका पत्र पढने के बाद मुझे आपसे मिलने की बडी इच्छा हुई। आज मुझे यह अवसर मिल रहा है।'

मि. पोलाक की शुद्ध भावना से मै उनकी ओर आकर्षित हुआ। पहली ही रात मे हम एक दूसरे को पहचानने लगे और जीवन विषयक अपने विचारो मे हमे बहुत साम्य दिखायी पडा। उन्हें सादा जीवन पसंद था। एक बार जिस वस्तु को उनकी बुद्धि कबूल कर लेती, उस पर अमल करने की उनकी शक्ति मुझे आश्चर्य जनक मालूम हुई। उन्होंने अपने जीवन मे कई परिवर्तन तो एकदम कर लिये।

'इंडियन ओपीनियन' का खर्च बढता जाता था। वेस्ट की पहली ही रिपोर्ट मुझे चौकानेवाली थी। उन्होने लिखा, 'आपने जैसा कहा था वैसा मुनाफा मै इस काम मे नही देखता। मुझे तो नुकसान ही नजर आता हैं। बही खातो की अव्यवस्था है। उगाही बहुत है। पर वह बिना सिर पैर की है। बहुत से फेरफार करने होगे। पर इस रिपोर्ट से आप घबराइये नही। मै सारी बातो को व्यवस्थित बनाने की भरसक कोशिश करुँगा। मुनाफा नही है , इसके लिए मैं इस काम को छोडूंगी नही।'

यदि वेस्ट चाहते तो मुनाफा न होता देखकर काम छोड सकते थे और मै उन्हें किसी तरह का दोष न दे सकता था। यही नहीं, बल्कि बिना जाँच पड़ताल किये इसे मुनाफेवाला काम बताने का दोष मुझ पर लगाने का उन्हें अधिकार था। इतना सब होने पर भी उन्होंने मुझे कभी कड़वी बात तक नही सुनायी। पर मै मानता हूँ कि इस नई जानकारी के कारण वेस्ट की दृष्टि मे मेरी गितनी उन लोगो मे हुई होगी , जो जल्दी मे दूसरो का विश्वास कर लेते है। मदनजीत की धारणा के बारे मे पूछताछ किये बिना उनकी बात पर भरोसा करके मैने वेस्ट से मुनाफे की बात कही थी। मेरा ख्याल है कि सार्वजनिक काम करने वाले को ऐसा विश्वास न रखकर वही बात कहनी चाहिये जिसकी उसने स्वयं जाँच कर ली हो। सत्य के पुजारी को तो बहुत साबधानी रखनी चाहिये। पूरे विश्वास के बिना किसी के मन पर आवश्यकता से अधिक प्रभाव डालना भी सत्य को लांछित करना है। मुझे यह कहते हुए दुःख होता हैं कि इस वस्तु को जानते हुए भी जल्दी मे विश्वास करके काम हाथ मे लेने की अपनी प्रकृति को मै पूरी तरह सुधार नहीं सका। इसमे मैं अपनी शक्ति से अधिक काम करने के लाभ को दोष देखता हूँ। इस लोभ के कारण मुझे जितना बेचैन होना पड़ा हैं, उसकी अपेक्षा मेरे साथियों को कहीं अधिक बेचैन होना पड़ा हैं।

वेस्ट का ऐसा पत्र आने से मै नेटाल के लिए रवाना हुआ। पोलाक तो मेरी सब बाते जानने लगे ही थे। वे मुझे छोड़ने स्टेशन तक आये और यह कहकर कि 'यह रास्ते में पढ़ने योग्य हैं , आप इसे पढ़ जाइये , आपको पसन्द आयेगी।' उन्होने रस्किन की 'अंटु दिस लास्ट' पुस्तक मेरे हाथ मे रख दी।

इस पुस्तक को हाथ मे लेने के बाद मैं छोड ही न सका। इसने मुझे पकड़ लिया। जोहानिस्बर्ग से नेटान का रास्ता लगभग चौबीस घंटो का था। ट्रेन शाम को डरबन पहुँचती थी। पहुँचने के बाद मुझे सारी रात नींद न आयी। मैने पुस्तक मे सूचित विचारो को अमल ने लाने को इरादा किया।

इससे पहले मैने रस्किन की एक भी पुस्तक नहीं पढी थी। विद्याध्ययन के समय मे पाठ्यपुस्तको के बाहर की मेरी पढ़ाई लगभग नही के बराबर मानी जायगी। कर्मभूमि मे प्रवेश करने के बाद समय बहुत कम बचता था। आज भी यही कहा जा सकता हैं। मेरा पुस्तकीय ज्ञान बहुत ही कम है। मै मानता हू कि इस अनायास अथवा बरबस पाले गये संयम से मुझे कोई हानि नहीं हुई। बल्कि जो थोडी पुस्तके मैं पढ पाया हूँ , कहा जा सकता हैं कि उन्हें मैं ठीक से हजम कर सका हूँ। इन पुस्तकों मे से जिसने मेरे जीवन मे तत्काल महत्त्व के रचनात्मक परिवर्तन कराये , वह 'अंटु दिस लास्ट' ही कही जा सकती हैं। बाद मे मैने उसका गुजराती अनुवाद किया औऱ वह 'सर्वोदय' नाम से छपा।

मेरा यह विश्वास है कि जो चीज मेरे अन्दर गहराई मे छिपी पड़ी थी , रस्किन के ग्रंथरत्न मे मैने उनका प्रतिबिम्ब देखा। औऱ इस कारण उसने मुझ पर अपना साम्राज्य जमाया और मुझसे उसमे अमल करवाया। जो मनुष्य हममे सोयी हुई उत्तम भावनाओ को जाग्रत करने की शक्ति रखता है, वह कवि है। सब कवियों का सब लोगो पर समान प्रभाव नही पडता , क्योकि सबके अन्दर सारी सद्भावनाओ समान मात्रा मे नही होती।

मै 'सर्वोदय' के सिद्धान्तो को इस प्रकार समझा हूँ :

1. सब की भलाई मे हमारी भलाई निहित हैं .

2. वकील और नाई दोनो के काम की कीमत एक सी होनी चाहिये, क्योकि आजीविका का अधिकार सबको एक समान है।

3. सादा मेहनत मजदूरी का किसान का जीवन ही सच्चा जीवन हैं।

पहली चीज मै जानता था। दूसरी को धुँधले रुप मे देखता था। तीसरी की मैने कभी विचार ही नही किया था। 'सर्वोदय' ने मुझे दीये की तरह दिखा दिया कि पहली चीज मे दूसरी चीजें समायी हुई है। सवेरा हुआ और मैं इन सिद्धान्तों पर अमल करने के प्रयत्न मे लगा।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति