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मजदूरों के सम्पर्क में

चम्पारन मे अभी मै समिति के काम को समेट ही रहा था कि इतने मे खेड़ा से मोहनलाल पंडया और शंकरलाला परीख का पत्र आया कि खेड़ा जिले मे फसल नष्ट हो गयी हैं और लगान माफ कराने की जरूरत हैं। उन्होंने आग्रह पूर्वक लिखा कि मै वहाँ पहुँचू और लोगो की रहनुमाई करूँ। मौके पर जाँच किये बिना कोई सलाह देने की मेरी इच्छा नही थी , न मुझे मे वैसी शक्ति या हिम्मत ही थी।

दूसरी ओर से श्री अनसुयाबाई का पत्र उनके मजदूर संघ के बारे में आया था। मजदूरो की तनख्वाहे कम थी। तनख्वाह बढाने की उनकी माँग बहुत पुरानी थी। इस मामले मे उनकी रहनुमाई करने का उत्साह मुझ मे था। लेकिन मुझ मे यह क्षमता न थी कि इस अपेक्षाकृत छोटे प्रतीत होने वाले काम को भी मै दूर बैठकर कर सकूँ। इसलिए मौका मिलते ही मै पहले अहमदाबाद पहुँचा। मैने यह सोचा कि दोनो मामलो की जाँच करके थोड़े समय मे मैं वापस चम्पारन पहुँचूगा और वहाँ के रचनात्मक काम की देखरेख करूँगा।

पर अहमदाबाद पहुँचने के बाद वहाँ ऐसे काम निकल आये कि मै कुछ समय तक चम्पारन नही जा सका और जो पाठशालाये वहाँ चल रही थी वे एक एक करके बन्द हो गयी। साथियो ने और मैने कितने ही हवाई किले रचे थे , पर बस कुछ समय के लिए तो वे सब ढह ही गये।

चम्पारन मे ग्राम पाठशालाओ और ग्राम सुधार के अलावा गोरक्षा की काम भी मैने हाथ मे लिखा था। गोरक्षा और हिन्दी प्रचार के काम का इजारा मारवाडी भाइयों ने ले रखा है , इसे मै अपने भ्रमण मे देख चुका था। बेतिया मे एक मारवाड़ी सज्जन ने अपनी धर्मशाला मे मुझे आश्रय दिया था। बेतिया के मारवाड़ी सज्जनों ने मुझे अपनी गोरक्षा के काम मे फाँद लिया था। गोरक्षा के विषय मे मेरी जो कल्पना आज है, वही उस समय बन चुकी थी। गोरक्षा का अर्थ है , गोवंश की वृद्धि, गोजाति का सुधार, बैल से मर्यादित काम लेना , गोशाला को आदर्श दुग्धालय बनाना, आदि आदि। इस काम मे मारवाडी भाइयो ने पूरी मदद देने का आश्वासन दिया था। पर मै चम्पारन मे स्थिर होकर रह न सका, इसलिए वह काम अधूरा ही रह गया।

बेतिया मे गोशाला तो आज भी चलती है पर वह आदर्श दुग्धालय नही बन सकी है। चम्पारन के बैलो से आज भी उनकी शक्ति से अधिक काम लिया जाता हैं। नामधारी हिन्दू आज भी बैलो को निर्दयता पूर्वक पीटते है और धर्म को बदनाम करते है। यह कसक मेरे मन मे सदा के लिए रह गयी। और , जब जब मै चम्पारन जाता हूँ तब तब इन अधूरे कामो का स्मरण करके लम्बी साँस लेता हूँ और उन्हें अधूरा छोड देने के लिए मारवाड़ी भाइयो और बिहारियों का मीठा उलाहना सुनता हूँ।


पाठशालाओ का काम को एक या दूसरी रीति से अन्य स्थानो मे चल रहा है , पर गोसेवा के कार्यक्रम ने जड़ ही नही पकड़ी थी , इसलिए उसे सही दिशा मे गति न मिल सकी।

अहमदाबाद मे खेड़ा जिले के काम के बारे मे सलाह मशविरा हो ही रहा था कि इस बीच मैने मजदूरो का काम हाथ मे ले लिया।

मेरी स्थिति बहुत ही नाजुक थी। मजदूरो का मामला मुझे मजबूत मालूम हुआ। श्री अनसूयाबाई को अपने सगे भाई के साथ लड़ना था। मजदूरो और मालिको के बीच के इस दारूण युद्ध मे श्री अंबालाल साराभाई ने मुख्य रूप से हिस्सा लिया था। मिल मालिको के साथ मेरा मीठा सम्बन्ध था।

उनके विरुद्ध लड़ने का काम विकट था। उनसे चर्चाये करके मैने प्रार्थना की कि वे मजदूरो की माँग के संबंध मे पंच नियुक्त करे। किन्तु मालिको ने अपने और मजदूरो के बीच पंच के हस्ताक्षेप की आवश्यकता को स्वीकार न किया।

मैने मजदूरो को हडताल करने की सलाह दी। यह सलाह देने से पहले मै मजदूरो और मजदूर नेताओ के सम्पर्क मे अच्छी तरह आया। उन्हें हड़ताल की शर्ते समझायी :

1. किसी भी दशा मे शांति भंग न होने दी जाय।

2. जो मजदूर काम पर जाना चाहे उसके साथ जोर जबरदस्ती न की जाय।

3. मजदूर भिक्षा का अन्न न खाये।

4. हडताल कितनी ही लम्बी क्यो न चले, वे ढृढ रहे और अपने पास पैसा न रहे तो दूसरी मजदूरी करके खाने योग्य कमा लें।

मजदूर नेताओ ने ये शर्तं समझ ली औऱ स्वीकार कर ली। मजदूरो की आम सभा हुई औऱ उसमे उन्होंने निश्चय किया कि जब तक उनकी माँग मंजूर न की जाय अथवा उसकी योग्यता अयोग्यता की जाँच के लिए पंच की नियुक्ति न हो तब तक वे काम पर नही जायेंगे।

कहना होगा कि इस हडताल के दौरान मे मैं श्री वल्लभभाई पटेल और श्री शंकरलाल बैकर को यथार्थ रूप मै पहचानने लगा। श्री अनसूयाबाई का परिचय तो मुझे इसके पहले ही अच्छी तरह हो चुका था। हडतालियो की सभा रोज साबरमती नदी के किनारे एक पेड़ का छाया तले होने लगी। उसमे वे लोग सैकड़ो की तादाद मे जमा होते थे। मै उन्हें रोज प्रतिज्ञा का स्मरण कराता तथा शान्ति बनाये रखने और स्वाभिमान समझाता था। वे अपना 'एक टेक' का झंडा लेकर रोज शहर मे घूमते थे और जुलूस के रूप मे सभा मे हाजिर होते थे।

यह हडताल इक्कीस दिन तक चली। इस बीच समय समय पर मै मालिको से बातचीत किया करता था और उन्हें इन्साफ करने के लिए मनाता था। मुझे यह जवाब मिलता, 'हमारी भी तो टेक है न ? हममे और हमारे मजदूरो मे बाप बेटे का सम्बन्ध हैं। उसके बीच मे कोई दखल दे तो हम कैसे सहन करे ? हमारे बीच पंच कैसे?'

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति