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मेरा प्रयत्न

पूना पहुँचने पर गोखले की उत्तरक्रिया आदि सम्पन्न करके हम सब इस प्रश्न की चर्चा मे लग गये कि अब सोसायटी किस तरह चलायी जाय औऱ मुझे उसमे सम्मिलित होना चाहिये या नही। मुझ पर भारी बोझ आ पड़ा। गोखले के जीते जी मेरे लिए सोसायटी मे दाखिल होने का प्रयत्न करना आवश्यक न था। मुझे केवल गोखले की आज्ञा औऱ इच्छा के वश होना था। यह स्थिति मुझे पसन्द थी। भारतवर्ष के तूफानी समुद्र मे कूदते समय मुझे एक कर्णधार की आवश्यकता थी और गोखले के समान कर्णधार की छाया मे मै सुरक्षित था।

अब मैने अनुभव किया कि मुझे सोसायटी मे भरती होने के लिए सतत प्रयत्न करना चाहिये। मुझे यह लगा कि गोखले की आत्मा यही चाहेगी। मैने बिना संकोच के और ढृढता यह प्रयत्न शुरू किया। इस समय सोसायटी के लगभग सभी सदस्य पूना मे उपस्थित थे। मैने उन्हें मनाना और मेरे विषय मे जो डर था उसे दूर करना शुरू किया। किन्तु मैने देखा कि सदस्यो मे मतभेद था। एक राय मुझे दाखिल करने के पक्ष मे थी , दूसरी ढृढता पूर्वक मेरे प्रवेश का विरोध करती थी। मैन अपने प्रति दोनो पक्षो के प्रेम को देख सकता था। पर मेरे प्रति प्रेम उनकी वफादारी कदाचित् अधिक थी, प्रेम से कम तो थी ही नही।

इस कारण हमारी चर्चा मीठी थी और केवल सिद्धान्तो का अनुसरण करने वाली थी। विरुद्ध पक्षवालो को लगा कि अनेक विषयों मे मेरे और उनके विचारो के बीच उत्तर दक्षिण का अन्तर था। इससे भी अधिक उन्हे यह लगा कि जिन ध्येयो को ध्यान मे रखकर गोखले ने सोसायटी की रचना की थी , मेरे सोसायटी मे रहने से उन ध्ययो के ही खतरे मे पड़ जाने की पूरी संभावना थी। स्वभावतः यह उन्हे असह्य प्रतीत हुआ।

लम्बी चर्चा के बाद हम एक दूसरे से अलग हुए। सदस्यो ने अंतिम निर्णय की बात दूसरी सभा तक उठा रखी।

घर लौटते हुए मै विचारो के भँवर मे पड़ गया। बहुमत से दाखिल होने का प्रंसग आने पर क्या वैसा करना मेरे लिए इष्च होगा ? क्या वह गोखले के प्रति मेरी वफादारी मानी जायगी ? अगर मेरे विरुद्ध मत प्रकट हो तो क्या उस दशा मे मै सोयायटी की स्थिति को नाजुक बनाने का निमित्त न बनूँगा ? मैने स्पष्ट देखा कि जब तक सोसायटी के सद्स्यो मे मुझे दाखिल करने के बारे मे मतभेद रहे, तब तक स्वयं मुझी को दाखिल होने का आग्रह छोड़ देना चाहिये और इस प्रकार विरोधी पक्ष को नाजुक स्थिति मे पड़ने से बचा लेना चाहिये। उसी मे सोसायटी और गोखले के प्रति मेरी वफादारी है। ज्यो ही मेरी अन्तरात्मा मे इस निर्णय का उदय हुआ , त्यो ही मैने शास्त्री को पत्र लिखा कि वे मेरे प्रवेश के विषय मे सभा बुलाये ही नही। विरोध करने वालो को मेरा यह निश्चय बहुत पसन्द आया। वे धर्म संकट से बच गये। उनके और मेरे बीच की स्नेहगाँठ अधिक ढृढ हो गयी और सोसायटी मे प्रवेश पाने की अपनी अर्जी को वापस लेकर मै सोसायटी का सच्चा सदस्य बना।

अनुभव से मै देखता हूँ कि मेरा प्रथा के अनुसार सोसायटी का सदस्य न बनना ही उचित था , और जिन सदस्यो मे मेरे प्रवेश का विरोध किया था , उनका विरोध वास्तविक था। अनुभव ने यह सिद्ध कर दिया है कि उनके और मेरे सिद्धान्तो के बीच भेद था।


किन्तु मतभेद को जान चुकने पर भी हमारे बीच आत्मा का अन्तर कभी नही पड़ा, खटाई कभी पैदा न हुई। मतभेद के रहते भी हम परस्पर बंधु और मित्र रहे है। सोसायटी का स्थान मेरे लिए यात्रा का धाम रहा है। लौकिक दृष्टि से मै भले ही उसका सदस्य नही बना, पर आध्यात्मिक दृष्टि से को मै उसका सदस्य रहा ही हूँ। लौकिक सम्बन्ध की अपेक्षा आध्यात्मिक सम्बन्ध अधिक मूल्यवान है। आध्यत्मिक सम्बन्ध से रहित लौकिक सम्बन्ध प्राणहीन देह के समान है।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति