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संयम की ओर

मै पिछले प्रकरण मे लिख चुका हूँ कि आहार-सम्बन्धी कुछ परिवर्तन कस्तूरबाई की बीमारी के निमित्त हुए थे। पर अब तो दिन-प्रतिदिन ब्रह्मचर्य की दृष्टि से आहार मे परिवर्तन होने लगे।

इनमे पहला परिवर्तन दूध छोड़ने का हुआ। मुझे पहले रायचन्दभाई से मालूम हुआ था कि दूध इन्द्रिय विकार पैदा करने वाली वस्तु है। अन्नाहार विषयक अंग्रेजी पुस्तको के वाचन से इस विचार मे वृद्धि हुई। लेकिन जब तक मै दूध छोड़ने का कोई खास इरादा नही कर सका था। यह चीज तो मै बहुत पहले से समझने लगा था कि शरीर के निर्वाह के लिए दूध आवश्यक नही है। लेकिन यह झट छूटने वाली चीज न थी। मै यह अधिकाधिक समझने लगा था कि इन्द्रिय दमन के लिए दूध छोड़ना चाहिये। इन्हीं दिनो मेरे पास कलकत्ते से कुछ साहित्य आया , जिसमे गाय-भैंस पर ग्वालो द्बारा किये जाने वाले क्रूर अत्याचारो की कथा थी। इस साहित्य का मुझ पर चमत्कारी प्रभाव पड़ा। मैने इस सम्बनध मे मि. केलनबैक से चर्चा की।

यद्यपि मि. केलनबैक का परिचय मै सत्याग्रह के इतिहास मे दे चुका हूँ तो भी यहाँ दो शब्द अधिक कहने की आवश्यकता है। उनसे मेरी भेट अनायास ही हुई थी। वे मि. खान के मित्र थे। मि. खान ने उनके अन्तर की गहराई मे वैराग्य-वृत्ति का दर्शन किया था और मेरा ख्याल है कि इसी कारण उन्होने मेरी पहचान उनसे करायी थी। जिस समय पहचान हुई उस समय उनके तरह-तरह के शौको से और खर्चीलेपन से मै चौंक उठा था। पर पहले ही परिचय मे उन्होने मुझ से धर्म विषयक प्रश्न किये। इस चर्चा मे अनायास ही बुद्ध भगवान के त्याग की बात निकली। इस प्रसंग के बाद हमारा संपर्क बढता चला गया। वह इस हद तक बढा कि उन्होने अपने मन मे यह निश्चय कर लिया कि जो काम मै करूँ वह उन्हें भी करना चाहिये। वे बिल्कुल अकेले थे। मकान किराये के अलावा हर महीने लगभग बारह सौ रुपये वे अपने आप पर खर्च कर डालते थे। आखिर इसमे से इतनी सादगी पर पहुँच गये कि एक समय उनका मासिक खर्च घटकर 120 रुपये पर जा टिका। मेरे अपनी घर-गृहस्थी को तोड़ देने के बाद और पहली जेल यात्रा के पश्चात हम दोनो साथ रहने लगे थे। उस समय हम दोनो का जीवन अपेक्षाकृत अधिक कठोर था।

जिन दिनो हम साथ रहते थे, उन्ही दिनो दूध सम्बन्धी उक्त चर्चा हुई थी। मि. केलनबैक ने सलाह दी, 'दूध के दोषो को चर्चा तो हम प्रायः करते ही है। तो फिर हम दूध छोड़ क्यो न दे ? उसकी आवश्यकता तो है ही नही। ' उनकी इस राय से मुझे सानन्द आश्चर्य हुआ। मैने इस सलाह का स्वागत किया और हम दोनो ने उसी क्षण टॉल्सटॉय फार्म पर दूध का त्याग किया। यह घटना सन् 1912 मे घटी।

इतने त्याग से मुझे शान्ति न हुई। दूध छोड़ने के कुछ ही समय बाद केवल फलाहार के प्रयोग का भी हमने निश्चय किया। फलाहार मे भी जो सस्ते से सस्ते फल मिले , उनसे ही अपना निर्वाह करने का हमारा निश्चय था। गरीब से गरीब आदमी जैसा जीवन बिताता है , वैसा ही जीवन बिताने की उमंग हम दोनो को थी। हमने फलाहार की सुविधा का भी खूब अनुभव किया। फलाहार मे अधिकतर चूल्हा जलाने की आवश्यकता ही होती थी। बिना सिकी मूंगफली, केले, खजूर, नीबू और जैतून का तेल -- यह हमारा साधारण आहार बन गया।

ब्रह्मचर्य का पालन करने की इच्छा रखनेवालो को यहाँ एक चेतावनी देने की आवश्यकता है। यद्यपि मैने ब्रह्मचर्य के साथ आहार और उपवास का निकट सम्बन्ध सूचित किया है, तो भी यह निश्चित है कि उसका मुख्य आधार मन पर है। मैला मन उपवास से शुद्ध नही होता। आहार का उस पर प्रभाव नही पड़ता। मन का मैल तो विचार से , ईश्वर के ध्यान से और आखिर ईश्वरी प्रसाद से ही छूटता है। किन्तु मन का शरीर के साथ निकट सम्बन्ध है और विकारयुक्त मन विकारयुक्त आहार की खोज मे रहता है। विकारी मन अनेक प्रकार के स्वादो और भोगो की तलाश मे रहता है और बाद मे उन आहारो तथा भोगो का प्रभाव मन पर पड़ता है। अतएव उस हद तक आहार पर अंकुश रखने की और निराहार रहने की आवश्यकता अवश्य उत्पन्न होती है। विकारग्रस्त मन शरीर और इन्द्रियो के अधीन होकर चलता है , इस कारण भी शरीर के लिए शुद्ध औऱ कम-से-कम विकारी आहार की मर्यादा की और प्रसंगोपात निराहार की -- उपवास की -- आवश्यकता रहती है। अतएव जो लोग यह कहते है कि संयमी के लिए आहार की मर्यादा की अथवा उपवास की आवश्यकता नही है , वे उतने ही गलती पर है जितने आहार तथा उपवास को सर्वस्व माननेवाले। मेरा अनुभव तो मुझे यह सिखाता है कि जिसका मन संयम की ओर बढ रहा है, उसके लिए आहार की मर्यादा और उपवास बहुत मदद करनेवाले है। इसकी सहायया के बिना मन की निर्विकारता असम्भव प्रतीत होती है।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति