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बम्बई में स्थिर हुआ?

गोखले की बड़ी इच्छा थी कि मैं बम्बई मे बस जाऊँ, वहाँ बारिस्टर का धन्धा करूँ और उनके साथ सार्वजनिक सेवा मे हाथ बंटाऊँ। उस समय सार्वजनिक सेवा का मतलब था, कांग्रेस की सेवा। उनके द्वारा स्थापित संस्था का मुख्य कार्य कांग्रे की व्यवस्था चलाना था।

मेरी भी यही इच्छा थी, पर काम मिलने के बारे मे मुझे आत्म-विश्वास न था। पिछले अनुभवो की याद भूली नही थी। खुशामद करना मुझे विषतुल्य लगता था।

इस कारण पहले तो मैं राजकोट मे ही रहा। वहाँ मेरे पुराने हितैषी और मुझे विलायत भेजने वाले केवलराम मावजी दवे थे। उन्होंने मुझे तीन मुकदमे सौपें। दो अपीले काठियावाड़ के ज्युडीशियल असिस्टेंट के सम्मुख थी और एक इब्तदाई मुकदमा जामनगर मे था। यह मुकदमा महत्त्वपूर्ण था। मैने इस मुकदमे की जोखिम उठाने से आनाकानी की। इस पर केवलराम बोल उठे, 'हारेंगे तो हम हारेंगे न ? तुमसे जितना हो सके , तुम करो। मैं भी तो तुम्हारे साथ रहूँगा ही न ?'

इस मुकदमे मे मेरे सामने स्व. समर्थ थे। मैने तैयारी ठीक की थी। यहाँ के कानून का तो मुझे बहुत ज्ञान नहीं था। केवलराम देवे मे मुझे इस विषय मे पूरी तरह तैयार कर दिया था। मेरे दक्षिण अफ्रीका जाने से पहले के मित्र मुझे कहा करते थे कि सर फीरोजशाह मेहता को कानून शहादत जबानी याद हैं और यही उनकी सफलता की कुंजी हैं। मैने इसे याद रखा था और दक्षिण अफ्रीका जाते समय यहाँ का कानून शहादत मैं टीका के साथ पढ गया था। इसके अतिरिक्त दक्षिण अफ्रीका का अनुभव तो मुझे था ही।

मुकदमे मे हम विजयी हुए। इससे मुझमे कुछ विश्वास पैदा हुआ। उक्त दो अपीलों के बारे मे तो मुझे शुरु से ही कोई डर न था। इससे मुझे लगा कि यदि बम्बई जाऊँ तो वहाँ भी वकालत करने में कोई दिक्कत न होगी।

इस विषय पर आने के पहले थोड़ा अंग्रेज अधिकारियो के अविचार और अज्ञान का अपना अनुभव सुना दूँ। ज्युडीशियल असिस्टेंट कहीँ एक जगह टिक कर नही बैठते थे। उनकी सवारी घूमती रहती थी -आज यहाँ, कल वहाँ। जहाँ वे महाशय जाते थे, वहाँ वकीलों और मवक्किलो को भी जाना होता था। वकील का मेहनताना जिनता केन्द्रिय स्थान पर होता, उससे अधिक बाहर होता था। इसलिए मुवक्किल को सहज ही दुगना खर्च पड़ जाता था। पर जज इसका बिल्कुल विचार न करता था।

इस अपील की सुनवाई वेरावल मे होने वाली थी। वहाँ उन दिनों बड़े जोर का प्लेग था। मुझे याद है कि रोज के पचास केस होते थे। वहाँ की आबादी 5500 के लगभग थी। गाँव प्रायः खाली हो गया था। मैं वहाँ की निर्जन धर्मशाला मे टिका था। वह गाँव से कुछ दूर थी। पर बेचारे मुवक्किल क्या करते ? यदि वे गरीब होते तो एक भगवान ही उनका मालिक था।


मेरे नाम वकील मित्रो का तार आया था कि मैं साहब से प्रार्थना करूँ कि प्लेग के कारण वे अपना मुकाम बदल दे। प्रार्थना करने पर साहब ने मुझ से पूछा, ' आपको कुछ डर लगता हैं ?'

मैने कहा, 'सवाल मेरे डरने का नही हैं। मै मानता हूँ कि मै अपना प्रबन्ध कर लूँगा, पर मुवक्किलो का क्या होगा ?'

साहब बोले, 'प्लेग ने तो हिन्दुस्तान मे घर कर लिया हैं। उससे क्या डरना ? वेरावल की हवा कैसी सुन्दर है ! (साहब गाँव से दूर समुद्र किनारे एक महलनुमा तंबू मे रहते थे।) लोगो को इस तरह बाहर रहना सीखना चाहिये।'

इस फिलासफी के आगे मेरी क्या चलती ? साहब ने सरिश्तेदार से कहा, 'मि. गाँधी की बात को ध्यान मे रखिये और अगर वकीलो तथा मुवक्किलो को बहुत असुविधा होती हो तो मुझे बतलाइये।'

इसमे साहब मे तो शुद्ध भाव से अपनी समझ के अनुसार ठीक ही किया। पर उन्हे कंगाल हिन्दुस्तान की मुश्किलों का अंदाज कैसा हो सकता था ? वे बेचारे हिन्दुस्तान की आवश्यकताओ, भली-बुरी आदतो और रीति-रिवाजो को क्योकर समझ सकते थे ? जिसे गिन्नियो में गिनती करने की आदत हो, उसे पाईयों मे हिसाब लगाने को कहिये,तो वह झट से हिसाब कैसे कर सकेगा ? अत्यन्त शुभ हेतु रखते हुए भी जिस तरह हाथी चींटी के लिए विचार करने मे असमर्थ होता हैं, उसी तरह हाथी की आवश्यकता वाला अंग्रेज चींटी की आवश्यकता वाले भारतीय के लिए विचार करने या नियम बनाने मे असमर्थ ही होगा।

अब मूल विषय पर आता हूँ।

ऊपर बताये अनुसार सफलता मिलने के बाद भी मै कुछ समय के लिए राजकोट मे ही रहने की सोच रहा था। इतने मे एक दिन केवलराम मेरे पास आये और बोले, 'गाँधी, तुमको यहाँ नहीं रहने दिया जायेगा। तुम्हें तो बम्बई ही जाना होगा।'

'लेकिन वहाँ मुझे पूछेगा कौन ? क्या मेरा खर्च आप चलायेंगे ?'

'हाँ, हाँ, मै तुम्हारा खर्च चलाऊँगा। तुम्हे बड़े बारिस्टर की तरह कभी कभी यहाँ ले आया करुँगा और लिखा-पढ़ी वगैरा का काम तुमको वहाँ भेजता रहूँगा। बारिस्टरो को छोटा-बड़ा बनाना तो हम वकीलो का काम है न ? तुमने अपनी योग्यता का प्रमाण तो जामनगर और वेरावल मे दे ही दिया हैं , इसलिए मैं निश्चिंत हूँ। तुम सार्वजनिक काम के लिए सिरजे गये हो , तुम्हें हम काठियावाड़ मे दफन न होने देंगे। कहों, कब रवाना होते हो ?'

'नेटाल से मेरे कुछ पैसे आने बाकी हैं , उनके आने पर चला जाऊँगा।'

पैसे एक-दो हफ्तो मे आ गये और मैं बम्बई पहुँचा। पेईन , गिलबर्ड और सयानी के दफ्तर में 'चेम्बर' (कमरे) किराये पर लिये और मुझे लगा कि अब मै बम्बई मे स्थिर हो गया।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति