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महामारी-1

म्युनिसिपैलिटी ने इस लोकेशन का मालिक पट्टा लेने के बाद तुरन्त ही वहाँ रहनेवाले हिन्दुस्तानियो को हटाया नही था। उन्हें दूसरी अनुकूल जगह देना तो जरूरी था ही। म्युनिसिपैलिटी ने यह जगह निश्चित नहीं की थी। इसलिए हिन्दुस्तानी लोग उसी 'गन्दे' लोकेशन मे रहें। लेकिन दो परिवर्तन हुए। हिन्दुस्तानी लोग मालिक न रहकर म्युनिसिपल विभाग के किरायेदार बने और लोकेशन की गन्दगी बढी। पहले जब हिन्दुस्तानियों का मालिक हक माना जाता था , उस समय वे इच्छा से नही तो डर के मारे ही कुछ न कुछ सफाई रखते थे। अब म्युनिसिपैलिटी को भला किसका डर था ? मकानों मे किरायेदार बढ़े और उसके साथ गन्दगी तथा अव्यवस्था भी बढ़ी।

इस तरह चल रहा था। हिन्दुस्तानियों के दिलों मे इसके कारण बेचैनी थी ही। इतने मे अचानक भयंकर महामारी फूट निकली। यह महामारी प्राणघातक थी। यह फेफड़ो की महामारी थी। गाँठवाली महामारी की तुलना मे यह अधिक भयंकर मानी जाती थी।

सौभाग्य से महामारी का कारण यह लोकेशन नही था। उसका कारण जोहानिस्बर्ग के आसपास की अनेक सोने की खानो मे से एक खान थी। वहाँ मुख्य रूप से हब्शी काम करते थे। उनकी स्वच्छता की जिम्मेदारी केवल गोरे मालिको के सिर थी। इस खान मे कुछ हिन्दुस्तानी भी काम करते थे। उनसे से तेईस को अचानक छूत लगी औऱ एक दिन शाम को भयंकर महामारी के शिकार बनकर वे लोकेशन वाले अपने घरों मे आये।

उस समय भाई मदनजीत 'इंडियन ओपीनियन' के ग्राहक बनाने और चन्दा वसूल करने के लिए वहाँ धूम फिर रहे थे। उनमे निर्भयता का बढिया गुण था। वे बीमार उनके देखने मे आये और उनका हृदय व्यथित हुआ। उन्होंने पेन्सिल से लिखी एक पर्ची मुझे भेजी। उसका भावार्थ यह था, 'यहाँ अचानक भयंकर महामारी फूट पड़ी हैं। आपको तुरन्त आकर कुछ करना चाहिये , नही तो परिणाम भयंकर होगा। तुरन्त आइये।'

मदनजीन ने एक खाली पड़े हुए मकान का ताला निडरता पूर्वक तोड़कर उस पर कब्जा कर लिया। मैं अपनी साइकल पर लोकेशन पहुँचा। वहाँ से टाउन-क्लर्क को सब जानकारी भेजी और यह सूचित किया कि किन परिस्थितियों में मकान पर कब्जा किया गया था।

डॉ. विलियन गॉडफ्रे जोहानिस्बर्ग मे डॉक्टरी करते थे। समाचार मिलते ही वे दौडे आये और बीमारो के डॉक्टर और नर्स का काम करने लगे। पर हम तीन आदमी तेईस बीमारो को संभाल नही सकते थे।

अनुभव के आधार पर मेरा यह विश्वास बना हैं कि भावना शुद्ध हो तो संकट का सामना करने के लिए सेवक और साधन मिल ही जाते है। मेरे आफिस मे कल्याणदास , माणेकलाल और दूसरे दो हिन्दुस्तानी थे। अन्तिम दो के नाम इस समय याद नही है. कल्याणदास को उनके जैसे परोपकारी और आज्ञा पालन मे विश्वास रखने वाले सेवक मैने वहाँ थोड़े ही देखे होगे। सौभाग्य से कल्याणदास उस समय ब्रह्मचारी थे। इसलिए उन्हें चाहे जैसा जोखिम का काम सौपने मे मैने कभी संकोच नहीं किया। दूसरे माणेकलाल मुझे जोहानिस्बर्ग मे मिल गये थे। मेरा ख्याल है कि वे भी कुँवारे थे। मैने अपने इन चारों मुहर्रिर , साथियों अथवा पुत्रों - कुछ भी कह लीजिये - को होमने का निश्चय किया। कल्याणदास को तो पूछना ही क्या था ? दूसरे तीन भी पूछते ही तैयार हो गये। 'जहाँ आप वहाँ हम' यह उनका छोटा र मीठा जवाब था।

मि. रीच का परिवार बड़ा था। वे स्वयं तो इस काम मे कूद पड़ने को तैयार थे , पर मैने उन्हें रोका। मैं उन्हें संकट मे डालने के लिए बिल्कुल तैयार न था। ऐसा करने की मुझ मे हिम्मत न थी। पर उन्होने बाहर का सब काम किया।

शुश्रूषा की वह रात भयानक थी। मैने बहुत से बीमारो की सेवा-शुश्रूषा की थी , पर प्लेग के बीमारों की सेवा-शुश्रूषा करने का अवसर मुझे कभी नहीं मिला था। डॉ. गॉडफ्रे की हिम्मत ने मुझे निडर बना दिया था। बीमारों की विशेष सेवा-चाकरी कर सकने जैसी स्थिति नहीं थी। उन्हें दवा देना, ढाढस बँधाना, पानी पिलाना और उनका मल-मूत्र आदि साफ करना , इसके सिवा कुछ विशेष करने को था ही नही।

चारो नौजवानो की तनतोड़ मेहनत और निडरता देखकर मेरे हर्ष की सीमा न रही।

डॉ. गॉडफ्रे की हिम्मत समझ मे आ सकती है। मदनजीत की भी समझ आ सकती हैं। पर इन नौजवानों की हिम्मत का क्या ? रात जैसे-तैसे बीती। जहाँ तक मुझे याद हैं उस रात हमने किसी बीमार को नही खोया।

पर यह प्रसंग जिनता करुणाजनक हैं, उतना ही रसपूर्ण और मेरी दृष्टि से धार्मिक भी हैं। अतएव इसके लिए अभी दूसरे दो प्रकरणों की जरूरत तो रहेगी ही।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति