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चालाकी?

अपनी सलाह के औचित्य के विषय मे मुझे लेश मात्र भी शंका न थी, पर मुकदमे की पूरी पैरवी करने की अपनी योग्यता के संबंध मे काफी शंका थी। ऐसी जोखिमवाले मालमे मे बड़ी अदालत मे मेरा बहस करना मुझे बहुत जोखिमभरा जान पड़ा। अतएव मन मे काँपते-काँपते मै न्यायाधीश के सामने उपस्थित हुआ। ज्यों ही उक्त भूल की बात निकली कि एक न्यायाधीश बोल उठे, 'यह चालाली नही कहलायेगी ?'

मुझे बड़ा गुस्सा आया। जहाँ चालाकी की गंघ तक नही थी , वहाँ चालाकी का शक होना मुझे असह्य प्रतीत हुआ। मैने मन मे सोचा , 'जहाँ पहले से ही जज का ख्याल बिगड़ा हुआ है , वहाँ इस मुश्किल मुकदमे को कैसे जीता जा सकता है ?'

मैने अपने गुस्से को दबाया और शांत भाव से जवाब दिया , 'मुझे आश्चर्य होता है कि आप पूरी बात सुनने के पहले ही चालाकी का आरोप लगाते है !'

जज बोले , 'मै आरोप नही लगाता, केवल शंका प्रकट करता हूँ।'

मैने उत्तर दिया, 'आपकी शंका ही मुझे आरोप-जैसी लगती है। मै आपको वस्तुस्थिति समझा दूँ और फिर शंका के लिए अवकाश हो , तो आप अवश्य शंका करे।'

जज ने शांत होकर कहा, 'मुझे खेद है कि मैने आपको बीच मे ही रोका। आप अपनी बात समझा कर कहिये। '

मेरे पास सफाई के लिए पूरा-पूरा मसाला था। शुरू मे ही शंका पैदा हुई और जज का ध्यान मै अपनी दलील की तरफ खींच सका, इससे मुझमे हिम्मत आ गयी और मैने विस्तार से सारी जानकारी दी। न्यायाधीश ने मेरी बातो को धैर्य-पूर्वक सुना और वे समझ गये कि भूल असावधानी के कारण ही हुई है। अतः बहुत परिश्रम से तैयार किया हिसाब रद करना उन्हें उचित नही मालूम हुआ।

प्रतिपक्षी के वकील को तो यह विश्वास ही था कि भूल स्वीकार कर लेने के बाद उनके लिए अधिक बहस करने की आवश्यकता न रहेगी। पर न्यायाधीश ऐसी स्पष्ट और सुधर सकनेवाली भूल को लेकर पंच-फैसला रद्द करने के लिए बिल्कुल तैयार न थे। प्रतिपक्षी के वकील ने बहुत माथापच्ची की, पर जिन न्यायाधीश के मन मे शंका पैदा हुई थी, वे ही मेरे हिमायती बन गये। वे बोले , 'मि. गाँधी ने गलती कबूल न की होती, तो आप क्या करते ?'

'जिस हिसाब-विशेषज्ञ को हमने नियुक्त किया था, उससे अधिक होशियार अथवा ईमानदार विशेषज्ञ हम कहाँ से लायें ?'

'हमे मानना चाहिये कि आप अपने मुकदमे को भलीभाँति समझते है। हिसाब का हर कोई जानकार जिस तरह की भूल कर सकता है, वैसी भूल के अतिरिक्त दूसरी कोई भूल आप न बता सके , तो कायदे की एक मामूली सी त्रुटि के लिए दोनो पक्षो को नये सिरे से खर्च मे डालने के लिए अदालत तैयार नही हो सकती। और यदि आप यह कहे कि इसी अदालत को यह केस नये सिरे से सुनना चाहिये, तो यह संभव न होगा।'

इस और ऐसी अनेक दलीलो से प्रतिपक्षी के वकील को शांत करके तथा फैसले मे रही भूल को सुधार कर अथवा इतनी भूल सुधार कर पुनः फैसला भेजने का हुक्म पंच को देकर अदालत ने उस सुधरे हुए फैसले को बहाल रखा।

मेरे हर्ष की सीमा न रही। मुवक्किल और बड़े वकील प्रसन्न हुए और मेरी यह धारणा ढृढ हो गयी कि वकालत के धंधे मे भी सत्य के रक्षा करते हुए काम हो सकते है।

पर पाठको को यह बात याद रखनी चाहिये कि धंधे के लिए की हुई प्रत्येक वकालत के मूल मे जो दोष विद्यमान है, उसे यह सत्य की रक्षा ढ़ाँक नही सकती।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति