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लार्ड कर्जन का दरबार

कांग्रेस-अधिवेशन समाप्त हुआ, पर मुझे तो दक्षिण अफ्रीका के लिए कलकत्ते मे रहकर चेम्बर ऑफ कॉमर्स इत्यादि मंड़लो से मिलना था। इसलिए मैं कलकत्ते में एक महीना ठहरा। इस बार मैने होटल में ठहरने के बदले परिचय प्राप्त करके 'इंडिया क्लब' में ठहरने की व्यवस्था की। इस क्लब में अग्रगण्य भारतीय उतरा करते थे। इससे मेरे मन मे यह लोभ था कि उनसे मेल-जोल बढ़ाकर मैं उनमें दक्षिण अफ्रीका के काम के लिए दिलचस्पी पैदा कर सकूँगा। इस क्लब में गोखले हमेशा तो नही, पर कभी-कभी बिलियर्ड खेलने आया करते थे। जैसे ही उन्हें पता चला कि मैं कलकत्ते मे ठहरने वाला हूँ , उन्होंने मुझे अपने साथ रहने के लिए निमंत्रित किया। मैने उनका निमंत्रण साभार स्वीकार किया, पर मुझे अपने-आप वहाँ जाना ठीक न लगा। एक-दो दिन बाट जोहता रहा। इतने में गोखले खुद आकर मुझे अपने साथ ले गये। मेरा संकोच देखकर उन्होंने कहा, 'गाँधी, तुम्हे इस देश मे रहना है। अतएव ऐसी शरम से काम नहीं चलेगा। जितने अधिक लोगो के साथ मेल-जोल बढ़ा सको तुम्हें बढ़ाना चाहिये। मुझे तुमसे कांग्रेस का काम लेना हैं।'

गोखले के स्थान पर जाने से पहले 'इंडिया क्लब' का एक अनुभव यहाँ देता हूँ।

उन्हीं दिनो लार्ड कर्जन का दरबार हुआ। उसमे जानेवाले कोई राजामहाराजा इस क्लब मे ठहरे हुए थे। क्लब मे तो मैं हमेशा सुन्दर बंगाली धोती, कुर्ता और चादर की पोशाक मे देखता था। आज उन्होंने पतलून, चोगा और चमकीले बूट पहने थे। यह देखकर मुझे दुःख हुआ और मैने इस परिवर्तन का कारण पूछा।

जवाब मिला, 'हमारा दुःख हम ही जानते हैं। अपनी सम्पति और अपनी उपाधियों को सुरक्षित रखने के लिए हमें जो अपमान सहने पड़ते हैं , उन्हें आप कैसे जान सकते हैं ?'

'पर यह खानसाने-जैसी पगड़ी और ये बूट किसलिए?'

'हममें और खानसामो मे आपने क्या फर्क देखा ? वे हमारे खानसामा है, तो हम लार्ड कर्जन के खानसामा हैं। यदि मैं दरबार में अनुपस्थित रहूँ, तो मुझको उसका दण्ड भुगतना पड़े। अपनी साधारण पोशाक पहनकर जाऊँ तो वह अपराध माना जायेगा। और वहाँ जाकर भी क्या मुझे लार्ड कर्जन से बाते करने का अवसर मिलेगा? कदापि नहीं।'

मुझे इस स्पष्टवक्ता भाई पर दया आयी।

ऐसे ही प्रसंगवाला एक और दरबार मुझे याद आ रहा हैं। जब काशी के हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव लार्ड़ हार्डिग के हाथों रखी गयी , तब उनका दरबार हुआ था। उसमें राजा-महाराजा तो आये ही थे। भारत-भूषण मालवीयजी मे मुझसे भी उसमे उपस्थित रहने का विशेष आग्रह किया था। मैं वहाँ गया था। केवल स्त्रियों को ही शोभा देनेवाली राजा-महाराजाओं की पोशाकें देखकर मुझे दुःख हुआ। रेशमी पाजामे, रेशमी अंगरखे और गले मे हीरे-मोती की मालाये, हाथ पर बाजूबन्द और पगड़ी पर हीरे-मोती की झालरें ! इन सबके साथ कमर में सोने की मूठवाली तलवार लटकती थी। किसी ने बताया कि ये चीजे उनके राज्याधिकार की नहीं, बल्कि उनकी गुलामी की निशानियाँ थीं। मै मानता था कि ऐसे नामर्दी-सूजक आभूषण वे स्वेच्छा से पहनते होगे। पर मुझे पता चला कि ऐसे सम्मेलनों मे अपने सब मूल्यावन आभूषण पहनकर जाना राजाओं के लिए अनिवार्य था। मुझे यह भी मालूम हुआ कि कईयों को ऐसे आभूषण पहनने से धृणा थी और ऐसे दरबार के अवसर को छोड़कर अन्य किसी अवसर पर वे इन गहनों को पहनते भी न थे। इस बात मे कितनी सच्चाई थी, सो मैं जानता नही। वे दूसरे अवसरों पर पहनते हों, क्या वाइसरॉय के दरबार मे और क्या दूसरी जगह, औरतों को ही शोभा देने वाले आभूषण पहनेकर जाना पड़े, यही पर्याप्त दुःख की बात हैं। धन, सत्ता और मान मनुष्य से कितने पाप और अनर्थ कराते है!

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति