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लोकेशन की होली

यद्यपि बीमारों की सेवा-शुश्रूषा से मै और मेरे साथी मुक्त हो चुके थे , फिर भी महामारी के कारण उत्पन्न दूसरे कामों की जवाबदारी तो सिर पर थी ही।

म्युनिसिपैलिटी लोकेशन की स्थिति के बारे में भले ही लापरवाह हो , पर गोरे नागरिकों के आरोग्य के विषय में तो वह चौबीसों घंटे जाग्रत रहती थी। उनके आरोग्य की रक्षा के लिए पैसा खर्च करने मे उसने कोई कसर न रखी। और इस मौके पर महामारी को आगे बढने से रोकने के लिए तो उसने पानी की तरह पैसे बहाये। मैने हिन्दुस्तानियो के प्रति म्युनिसिपैलिटी के व्यवहार मे बहुत से दोष देखे थे। फिर भी गोरो के लिए बरती गयी इस सावधानी के लिए मै म्युनिसिपैलिटी का आदर किये बिना न रह सका , और इस शुभ प्रयत्न मे मुझसे जितनी मदद बन पड़ी मैने दी। मै मानता हूँ कि मैने वैसी मदद न दी होती तो म्युनिसिपैलिटी के लिए काम मुश्किल हो जाता और कदाचित वह बन्दूक के -- बल के उपयोग करती -- करनें में हिचकिचाती नही और अपना चाहा सिद्ध करती।

पर वैसा कुछ हो नही पाया। हिन्दुस्तानियो के व्यवहार से म्युनिसिपैलिटी के अधिकारी खुश हुए और बाद का कितना ही काम सरल हो गया। म्युनिसिपैलिटी की माँगो के अनुकूल बरताब कराने मे मैने हिन्दुस्तानियो पर अपने प्रभाव का पूरा पूरा उपयोग किया। हिन्दुस्तानियो के लिए यह सब करना बहुत कठिन था, पर मुझे याद नही पड़ता कि उनमे से एक ने भी मेरी बात को टाला हो।

लोकेशन के आसपास पहरा बैठ गया। बिना इजाजत न कोई लोकेशन के बाहर जा सकता था और न बिना इजाजत कोई अन्दर घुस सकता था। मुझे और मेरे साथियों को स्वतंत्रता पूर्वक अन्दर जाने के परवाने दिये गये थे। म्युनिसिपैलिटी का इरादा यह था कि लोकेशन में रहने वाले सब लोगो को तीन हफ्तो के लिए जोहानिस्बर्ग से तेरह मील दूर एक खुले मैदान मे तम्बू गाड़कर बसाया जाय और लोकेशन को जला दिया जाय। डेर तम्बू की नई बस्ती बसाने मे और वहाँ रसद इत्यादि सामान पहुँचाने मे कुछ दिन तो लगते ही। इस बीच के समय के लिए उक्त पहरा बैठाया गया था।

लोग बहुत घबराये। लेकिन चूंकि मैं उनके साथ था, इसलिए उन्हें तसल्ली थी। उनमे से बहुतेरे गरीब अपने पैसे घरों मे गाड़कर रखते था। अब पैसे वहाँ से हटाना जरुरी हो गया। उनका कोई बैंक न था। बैंक का तो वे नाम भी न जानते थे। मै उनका बैक बना। मेरे यहाँ पैसो को ढेर लग गया। ऐसे समय मै कोई मेहनताना तो ले ही नही सकता था। जैसे तैसे मैने इस काम को पूरा किया। हमारे बैक के मैनेजर से मेरी अच्छी जान पहचान थी। मैने उनसे कहा कि मुझे उनके बैक मे बहुत बडी रकम जमा करनी होगी। बैंक तांबे और चादी के सिक्के लेने को तैयार नही होते। इसके सिवा , महामारी के क्षेत्र से आने वाले पैसो को छूने मे मुहर्रिर लोग आनाकानी करे , इसकी भी संभावना था। मैनेजर ने मेरे लिए सब प्रकार की सुविधा कर दी। तय हुआ कि जंतु नाशक पानी से धो कर पैसे बैक मे भेज दिये जाये। मुझे याद है कि इस तरह लगभग साठ हजार पौंड बैक मे जमा किये गये थे। जिनके पास अधिक रकमे थी उन मुवक्किलो को एक निश्चित अवधि के लिए अपनी रकम ब्याज पर रखने की सलाह मैने दी। इस प्रकार अलग अलग मुवक्किलो के नाम कुछ रकमें जमा की गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि उनसे से कुछ लोग बैंक मे पैसे रखने के आदी हो गये। लोकेशन मे रहने वालो को एक स्पेशल ट्रेन मे जाहानिस्बर्ग के पास क्लिपस्प्रूट फार्म पर ले जाया गया। वहाँ उनके खाने पीने की व्यवस्था म्युनिसिपैलिटी ने अपने खर्च से की। तंबुओ मे बसे इस गाँव का दृश्य सिपाहियों की छावनी जैसा था। लोगो को इस तरह रहने की आदत नही थी। इससे उन्हें मानसिक दुःख हुआ, नया नया सा लगा। किन्तु कोई खास तकलीफ नही उठानी पड़ी। मैं हर रोज एक बार साइकल पर वहाँ जाता थी। इस तरह तीन हफ्ते खुली हवा मे रहने से लोगो के स्वास्थय मे अवश्य ही सुधार हुआ और मानसिक दुःख को तो वे पहले चौबीस घंटो के अन्दर ही भूल गये। अतएव बाद मे वे आनन्द से रहने लगे। मैं जब भी वहाँ जाता, उन्हें भजन कीर्तन और खेल कूद मे ही लगा पाता।

जैसा कि मुझे याद है जिस दिन लोकेशन खाली किया गया उसके दूसरे दिन उसकी होली की गयी। म्युनिसिपैलिटी ने उसकी एक भी चीज बचाने का लोभ नही किया। इन्हीं दिनों और इसी निमित्त से म्युनिसिपैलिटी ने अपने मार्केट की सारी इमारती लकड़ी भी जला डाली और लगभग दस हजार पौंड का नुकसान सहन किया। मार्केट मे मरे हुए चूहे मिले थे, इस कारण यह कठोर कार्यवाही की गयी थी, पर परिणाम यह हुआ कि महामारी आगे बिल्कुल न बढ सकी। शहर निर्भय बना।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति