Get it on Google Play
Download on the App Store

प्रायश्चित-रुप उपवास

प्रामाणिकता-पूर्वक बालको और बालिकाओ के पालन-पोषण और शिक्षण मे कितनी कठिनाइयो आती है , इसका अनुभव दिन-दिन बढता गया। शिक्षक और अभिभावक के नाते मुझे उनके हृदय मे प्रवेश करना था, उनके सुख-दुःख मे हाथ बँटाना था, उनके जीवन की गुत्थियाँ सुलझानी थी और उनकी उछलती जवानी की तरंगो को सीधे मार्ग पर ले जाना था।

कुछ जेलवासियो के रिहा होने पर टॉल्सटॉय आश्रम मे थोड़े ही लोग रह गये। इनमे मुख्यतः फीनिक्सवासी थे। इसलिए मै आश्रम को फीनिक्स ले गया। फीनिक्स मे मेरी कड़ी परीक्षा हुई। टॉल्सटॉय आश्रम मे बचे हुए आश्रमवासियो को फीनिक्स छोड़कर मै जोहानिस्बर्ग गया। वहाँ कुछ ही दिन रहा था कि मेरे पास दो व्यक्तियो के भयंकर पतन के समाचार पहुँचे। सत्याग्रह की महान लड़ाई मे कहीँ भी निष्फलता-जैसी दिखायी पड़ती , तो उससे मुझे कोई आघात न पहुँचता था। पर इस घटना मे मुझ पर वज्र-सा प्रहार किया। मै तिलमिला उठा। मैने उसी दिन फीनिक्स की गाड़ी पकड़ी। मि. केलनबैक ने मेरे साथ चलने का आग्रह किया। वे मेरी दयाजनक स्थिति को समझ चुके थे। मुझे अकेले जाने देने की उन्होंने साफ मनाही कर दी। पतन के समाचार मुझे उन्ही के द्वारा मिले थे।

रास्ते मे मैने अपना धर्म समझ लिया, अथवा यो कहिये कि समझ लिया ऐसा मानकर मैने अनुभव किया कि अपनी निगरानी मे रहने वालो के पतन के लिए अभिभावक अथवा शिक्षक न्यूनाधिक अंश मे जरूर जिम्मेदार है। इस घटना मे मुझे अपनी जिम्मेदारी स्पष्ट जान पड़ी। मेरी पत्नी ने मुझे सावधान तो कर ही दिया था, किन्तु स्वभाव से विश्वासी होने के कारण मैने पत्नी की चेतावनी पर ध्यान नही दिया था। साथ ही, मुझे यह भी लगा कि इस पतन के लिए मै प्रायश्चित करूँगा तो ही ये पतित मेरा दुःख समझ सकेंगे और उससे उन्हे अपने दोष का भान होगा तथा उसकी गंभीरता का कुछ अंदाज बैठेगा। अतएव मैने सात दिन के उपवास और साढे चार महीने के एकाशन का व्रत लिया। मि. केलनबैक ने मुझे रोकने का प्रयत्न किया , पर वह निष्फल रहा। आखिर उन्होने प्रायश्चित के औचित्य को माना और खुद ने भी मेरे साथ व्रत रखने का आग्रह किया। मै उनके निर्मल प्रेम को रोक न सका। इस निश्चय के बाद मै तुरन्त ही हलका हो गया , शान्त हुआ , दोषियो के प्रति मेरे मन मे क्रोध न रहा, उनके लिए मन मे दया ही रही।

यों ट्रेन मे ही मन को हलका करके मै फीनिक्स पहुँचा। पूछताछ करके जो अधिक जानकारी लेनी थी सो ले ली। यद्यपि मेरे उपवास से सबको कष्ट हुआ , लेकिन उसके कारण वातावरण शुद्ध बना। सबको पाप करने की भयंकरता का बोध हुआ तथा विद्यार्थियो तथा विद्यार्थिनियो के और मेरे बीच सम्बन्ध अधिक ढृढ और सरल बन गया।

इस घटना के फलस्वरूप ही कुछ समय बाद मुझे चौदह उपवास करने का अवसर मिला था। मेरा यह विश्वास है कि उसका परिणाम अपेक्षा से अधिक अच्छा निकला था।

इस घटना पर से मै यह सिद्ध नही करना चाहता कि शिष्यो के प्रत्येक दोष के लिए शिक्षको को सदा उपवासादि करने ही चाहिये। पर मै जानता हूँ कि कुछ परिस्थितियो मे इस प्रकार के प्रायश्चित-रूप उपवास की गुंजाइश जरूर है। किन्तु उसके लिए विवेक और अधिकार चाहिये। जहाँ शिक्षक और शिष्य के बीच शुद्ध प्रेम-बन्धन नही है , जहाँ शिक्षक को अपने शिष्य के दोष से सच्चा आघात नहीं पहुँचता, जहां शिष्यो के मन मे शिक्षक के प्रति आदर नही है , वहाँ उपवास निरर्थक है और कदाचित हानिकारक भी हो सकता है। ऐसे उपवास या एकाशन के विषय मे शंका चाहे हो , परन्तु इस विषय मे मुझे लेशमात्र भी शंका नही कि शिक्षक शिष्य के दोषो के लिए कुछ अंश मे जरूर जिम्मेदार है।

सात उपवास और एकाशन हम दोनो मे से किसी के लिए कष्टकर नहीं हुए। इस बीच मेरा कोई भी काम बन्द या मन्द नही रहा। इस समय मे मै केवल फलाहारी ही रहा था। चौदह उपवासो का अन्तिम भाग मुझे काफी कष्टकर प्रतीत हुआ था। उस समय मै रामनाम के चमत्कार को पूरी तरह समझा न था। इस कारण दुःख सहन करने की शक्ति मुझमे कम थी। उपवास के दिनो मे कैसा भी प्रयत्न करके पानी खूब पीना चाहिये, इस बाह्य कला क मुझे जानकारी न थी। इस कारण भी ये उपवास कष्टप्रद सिद्ध हुए। इसके अतिरिक्त, पहले उपवास सुख-शान्तिपूर्वक हो गये थे, अतएव चौदह दिन के उपवासो के समय मै असावधान बन गया था। पहले उपवासो के समय मै रोज कूने का कटिस्नान करता था। चौदह दिनो के उपवास मे दो या तीन दिन के बाद मैने कटिस्नान बन्द कर दिया। पानी का स्वाद अच्छा नही लगता था और पानी पीने पर जी मचलाता था , इससे पानी बहुत ही कम पीता था। फलतः मेरा गला सूखने लगा , मै क्षीण होने लगा और अंतिम दिनो मे तो मै बहुत धीमी आवाज मे बोल पाता था। इतना होने पर भी लिखने का आवश्यक काम मै अन्तिम दिन तक कर पाया था और रामायण इत्यादि अंत तक सुनता रहा था। कुछ प्रश्नो के विषय मे सम्मति देने का आवश्यक कार्य भी मै कर सकता था।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति