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घर की व्यवस्था

मैं बम्बई मे और विलायत में घर बसा चुका था, पर उसमे और नेटाल मे घर की व्यवस्था जमाने मे फर्क था। नेटाल मे कुछ खर्च मैंने केवल प्रतिष्ठा के लिए चला रखा था। मैने मान लिया था कि नेटाल मे हिन्दुस्तानी बारिस्टर के नाते और हिन्दुस्तानियों के प्रतिनिधि के रुप में मुझे काफी खर्च करना चाहिये, इसलिए मैने अच्छे मुहल्ले में अच्छा घर लिया था। घर को अच्छी तरह सजाया भी था। भोजन सादा थास पर अंग्रेज मित्रो को न्योतना होता था और हिन्दुस्तानी साथियों की भी न्योतता था, इस कारण स्वभावतः वह खर्च भी बढ़ गया था।

नौकर की कमी तो सब कहीं जान पड़ती थी। किसी को नौकर के रुप में रखना मुझे आया ही नही।

एक साथी मेरे साथ रहता था। एक रसोइया रखा था। वह घर के आदमी जैसा बन गया था। दफ्तर मे जो मुहर्रिर रखे थे, उनमे से भी जिन्हे रख सकता था, मैने घर में रख लिया था।

मै मानता हूँ कि यह प्रयोग काफी सफल रहा। पर उसमे से मुझे संसार के कड़वे अनुभव भी हुए।

मेरा वह साथी बहुत होशियार था और मेरे ख्याल के मुताबिक मेरे प्रति वफादार था। पर मैं उसे पहचान न सका। दफ्तर के एक मुहर्रिर को मैने घर मे रख लिया था। उसके प्रति इस साथी के मन मे ईर्ष्या उत्पन्न हुई। साथी ने ऐसा जाल रचा कि मैं मुहर्रिर पर शक करने लगा। यह मुहर्रिर बहुत स्वतंत्र स्वभाव का था। उसने घर और दफ्तर दोनों छोड़ दिये। मुझे दुःख हुआ। कही उसके साथ अन्याय तो नही हुआ ? यह विचार मुझे कुरेदने लगा।

इसी बीच मैने जिस रसोइये को रखा था , उसे किसी कारण से दुसरी जगह जाना पड़ा। मैने उसे मित्र की सार-संभाल के लिए रखा था। इसलिए उसके बदले दूसरा रसोइया लगाया। बाद में मुझे पता चला कि वह आदमी उड़ती चिड़िया भाँपने वाला था। पर मेरे लिए वह इस तरह उपयोगी सिद्ध हुआ , मानो मुझे वैसे ही आदमी की जरुरत हो !

इस रसोइये को रखे मुश्किल से दो या तीन दिन हुए होगे। इस बीच उसने मेरे घर में मेरे अनजाने चलनेवाले अनाचार को देख लिया और मुझे चेताने का निश्चय़ किया। लोगो की यह धारणा बन गयी थी कि मै विश्वासशील और अपेक्षाकृत भला आदमी हूँ। इसलिए इस रसोइये को मेरे ही घर मे चलनेवाला भ्रष्टातार भयानक प्रतीत हुआ।

मै दोपहर के भोजन के लिए दफ्तर से एक बजे घर जाया करता था। एक दिन कोई बारह बजे होंगे। इतने मे यह रसोइया हाँफता-हाँफता आया और मुझसे कहने लगा , 'आप को कुछ देखना हो तो खडे पैरो घर चलिये।'

मैने कहा , 'इसका अर्थ क्या हैं ? तुम्हे मुझे बताना चाहिये कि काम क्या हैं। ऐसे समय मुझे घर चलकर क्या देखना हैं ?'

रसोइया बोला, 'न चलेंगे तो आप पछतायेंगे। मै आपको इससे अधिक कहना नहीं चाहता।'

उसकी ढृढता से मैं आकर्षित हुआ। मै अपने मुहर्रिर को साथ लेकर घर गया। रसोइया आगे चला।

घर पहुँचने पर वह मुझे दूसरी मंजिल पर ले गया। जिस कमरे मे वह साथी रहता था, उसे दिखा कर बोला, 'इस कमरे को खोलकर देखिये।'

अब मैं समझ गया। मैने कमरे का दरवाजा खटखटाया।

जवाब क्यो मिलता ? मैने बहुत जोर से दरवाजा खटखटाया। दीवार काँप उठी। दरवाजा खुला। अन्दर एक बदचलन औरत को देखा। मैने उससे कहा, 'बहन, तुम तो यहाँ से चली ही जाओ। अब फिर कभी इस घर में पैर न रखना।'

साथी से कहा, 'आज से तुम्हारा और मेरा सम्बन्ध समाप्त होता हैं। मै खूब ठगाया और मूर्ख बना। मेरे विश्वास का यहबदला तो न मिलना चाहिये था।'

साथी बिगड़ा। उसने मेरा सारा पर्दाफाश करने की धमकी दी।

'मेरे पास कोई छिपी चीज हैं ही नही। मैने जो कुछ किया हैं , उसे तुम खुशी से प्रकट करो। पर तुम्हारे साथ मेरा सम्बन्ध तो अब समाप्त हुआ।'

साथी और गरमाया। मैने नीचे खड़े मुहर्रिर से कहा , 'तुम जाओ। पुलिस सुपरिंटेंडेट से मेरा सलाम बोलो और कहो कि मेरे एक साथी ने मुझे धोखा दिया हैं। मैं उसे अपने घर मे रखना नही चाहता। फिर भी वह निकलने से इनकार करता हैं। मेहरबानी करके मुझे मदद भेजिये।'

अपराध मे दीनता होती हैं। मेरे इतना कहने से ही साथी ढीला पड़ा। उसने माफी माँगी। सुपरिंटेंडेट के यहाँ आदमी न भेजने के लिए वह गिड़गिड़ाया औक तुरन्त घर छोडकर जाना कबूल किया। उसने घर छोड़ दिया।

इस घटना ने मुझे जीवन मे ठीक समय पर सचेत कर दिया। यह साथी मेरे लिए मोहरुप और अवाँच्छनीय था, इसे मैं इस घटना के बाद ही स्पष्ट रुप मे देख सका। इस साथी को रखकर मैने अच्छे काम के लिए बुरे साधन को पसन्द किया था। बबूल के पेड़ से आम की आशा रखी थी। साथी का चाल-चलन अच्छा नही था , फिर भी मैने मान लिया था कि वह मेरे प्रति वफादार हैं। उसे सुधारने का प्रयत्न करते हुए मै स्वयं लगभग गन्दी मे सन गया था। मैने हितैषियों की सलाह का अनादर किया था। मोह ने मुझे बिल्कुल अन्धा बना दिया था। यदि इस दुर्घटना से मेरी आँखे न खुली होती , तो मुझे सत्य का पता न चलता , तो सम्भव है कि जो स्वार्पण मै कर सका हूँ, उसे करने में मैं कभी समर्थ न हो पाता। मेरी सेवा सजा अधूरी रहती , क्योकि वह साथी मेरी प्रगति को अवश्य रोकता। अपना बहुत सा समय मुझे उसके लिए देना पड़ता। उसमे मुझको अन्धकार मे रखने और गलत रास्ते ले जाने की शक्ति थी .

पर जिसे राम रखे, उसे कौन चखे ? मेरी निष्ठा शुद्ध थी , इसलिए अपनी गलतियों के बावजूद मैं बच गया और मेरे पहले अनुभव ने मुझे सावधान कर दिया।

उस रसोइये को शायद भगवान मे ही मेरे पास भेजा था। वह रसोई बनाना नही जानता था, इसलिए वह मेरे यहाँ रह न सकता था। पर उसके आये बिना दूसरा कोई मुझे जाग्रत नही कर सकता था। वह स्त्री मेरे घर मे पहली ही बार आयी हो, सो बात नही। पर इस रसोइये जितनी हिम्मत दूसरो को हो ही कैसे सकती थी ? इस साथी के प्रति मेरे बेहद विश्वास से सब लोग परिचित थे।

इतनी सेवा करके रसोइये ने तो उसी दिन और उसी क्षण जाने की इजाजत चाही। वह बोला, 'मैं आपके घर में नही रह सकता। आप भोले भंडारी ठहरे। यहाँ मेरा काम नही।'

मैने आग्रह नहीं किया।

उक्त मुहर्रिर पर शक पैदा करानेवाला यह साथी ही था , यह बात मुझे अब मालूम हुई। उसके साथ हुए अन्याय को मिटाने का मैने बहुत प्रयत्न किया , पर मै उसे पूरी तरह सन्तुष्ट न कर सका। मेरे लिए यह सदा ही दुःख की बात रही। फूटे बरतन को कितना ही पक्का क्यो न जोड़ा जाये, वह जोड़ा हुआ ही कहलायेगा , संपूर्ण कभी नही होगा।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति