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अमृतसर की कांग्रेस

फौजी कानून के चलते जिन सैकड़ो निर्दोष पंजाबियो को नाम की अदालतो ने नाम के सबूत लेकर छोटी-बड़ी मुद्दतो के लिए जेल मे ठूँस दिया था, पंजाब की सरकार उन्हें जेल मे रख न सकी। इस घोर अन्याय के विरुद्ध चारो ओर से ऐसी जबरदस्त आवाज उठी कि सरकार के लिए इन कैदियो को अधिक समय तक जेल मे रखना सम्भव न रहा। अतएव कांग्रेस-अधिवेशन के पहले बहुत से कैदी छूट गये। लाला हरकिसनलाल आदि सब नेता रिहा हो गये और कांग्रेस अधिवेशन के दिनो मे अलीभाई भी छूट कर आ गये। इससे लोगो के हर्ष की सीमा न रही। पं. मोतीलाल नेहरु, जिन्होने अपनी वकालत को एक तरफ रखकर पंजाब मे ही डेरा डाल दिया था, कांग्रेस के सभापति थे। स्वामी श्रद्धानन्दजी स्वागत-समिति के अध्यक्ष थे।

अब तक कांग्रेस मे मेरा काम इतना ही रहता था कि हिन्दी मे अपना छोटा सा भाषण करूँ , हिन्दी भाषा की वकालत करूँ , और उपनिवेशो मे रहने वाले हिन्दूस्तानियो का मामला पेश करूँ ? यह ख्याल नहीं था कि अमृतसर मे मुझे इसमे अधिक कुछ करना पड़ेगा। लेकिन जैसा कि मेरे संबंध मे पहले भी हो चुका है , जिम्मेदारी अचानक मुझ पर आ पड़ी।

नये सुधारो के सम्बन्ध मे सम्राट की घोषणा प्रकट हो चुकी थी। वह मुझे पूर्ण संतोष देनेवाली नही थी। और किसी को तो वह बिल्कुल पसन्द ही नही थी। लेकिन उस समय मैने यह माना था कि उक्त घोषणा मे सूचित सुधार त्रुटिपूर्ण होते हुए भी स्वीकार किये जा सकते है। सम्राट की घोषणा मे मुझे लार्ड सिंह का हाथ दिखायी पड़ा था। उस समय की मेरी आँखो ने घोषणा की भाषा मे आशा की किरणे देखी थी। किन्तु लोकमान्य, चितरंजन दास आदि अनुभवी योद्धा विरोध मे सिर हिला रहे थे। भारत-भूषण मालवीयजी तटस्थ थे।

मेरा डेरा मालवीयजी मे अपने ही कमरे मे रखा था। उनकी सादगी की झाँकी काशी विश्वविद्यालय के शिलान्यास के समय मै कर चुका था। लेकिन इस बार तो उन्होने मुझे अपने कमरे मे ही स्थान दिया था। इससे मै उनकी सारी दिनचर्या देख सका और मुझे सानन्द आश्चर्य हुआ। उनका कमरा क्या था, गरीबो की धर्मशाला थी। उसमे कही रास्ता नही रहने दिया गया था। जहाँ-तहाँ लोग पड़े ही मिलते थे। वहाँ न एकान्त था। चाहे जो आदमी चाहे जिस समय आता था औऱ उनका चाहे जितना समय ले लेता था। इस कमरे के एक कोने मे मेरा दरबार अर्थात खटिया थी।

किन्तु मुझे इस प्रकरण मे मालवीयजी की रहन-सहन का वर्णन नही करना है। अतएव मै अपने विषय पर आता हूँ।

इस स्थिति मे मालवीयजी के साथ रोज मेरी बातचीत होती थी। वे मुझे सबका पक्ष बड़ा भाई जैसे छोटे को समझाता है वैसे प्रेम से समझाते थे। सुधार-सम्बन्धी प्रस्ताव मे भाग लेना मुझे धर्मरूप प्रतीत हुआ। पंजाब विषयक कांग्रेस की रिपोर्ट की जिम्मेदारी मे मेरा हिस्सा था। पंजाब के विषय मे सरकार से काम लेना था। खिलाफत का प्रश्न तो था ही। मैने यह भी माना कि मांटेग्यू हिन्दुस्तान के साथ विश्वासघात नही करने देगे। कैदियो की और उनमे भी अलीभाईयो की रिहाई को मैने शुभ चिह्न माना था। अतएव मुझे लगा कि सुधारो को स्वीकार करने का प्रस्ताव पास होना चाहिये। चितरंजन दास का ढृढ मत था कि सुधारो को बिल्कुल असंतोषजनक और अधूरे मान कर उनकी उपेक्षा करनी चाहिये। लोकमान्य कुछ तटस्थ थे। किन्तु देशबन्धु जिस प्रस्ताव को पसन्द करे, उसके पक्ष मे अपना वजन डालने का उन्होंने निश्चय कर लिया था।

ऐसे पुराने अनुभवी और कसे हुए सर्वमान्य लोकनायको के साथ अपना मतभेद मुझे स्वयं असह्य मालूम हुआ। दूसरी ओर मेरा अन्तर्नाद स्पष्ट था मैने कांग्रेस की बैठक मे से भागने का प्रयत्न किया। पं. मोतीलाल नेहरू और मालवीयजी को मैने यह सुझाया कि मुझे अनुपस्थित रहने देने से सब काम बन जायेगा औऱ मै महान नेताओ के साथ मतभेद प्रकट करने के संकट से बच जाऊँगा।

यह सुझाव इन दोनो बुजुर्गो के गले न उतरा। जब बात लाला हरकिसनलाल के कान तक पहुँची तो उन्होने कहा, 'यह हरगिज न होगा। इससे पंजाबियो को भारी आधात पहुँचेगा।'

मैने लोकमान्य और देशबन्धु के साथ विचार-विमर्श किया। मि. जिन्ना से मिला। किसी तरह कोई रास्ता निकलता न था। मैने अपनी वेदना मालवीयजी के सामने रखी, 'समझौते के कोई लक्षण मुझे दिखाई नही देते। यदि मुझे अपना प्रस्ताव रखाना ही पड़ा, तो अन्त मे मत तो लिये ही जायेगे। पर यहाँ मत ले सकने की कोई व्यवस्था मै नही देख रहा हूँ। आज तक हमने भरी सभा मे हाथ उठवाये है। हाथ उठाते समय दर्शको और प्रतिनिधियो के बीच कोई भेद नही रहता। ऐसी विशाल सभा मे मत गिनने की कोई व्यवस्था हमारे पास नही होती। अतएव मुझे अपने प्रस्ताव पर मत लिवाने हो , तो भी इसकी सुविधा नही है।'

लाला हरकिसनलाल ने यह सुविधा संतोषजनक रीति से कर देने का जिम्मा लिया। उन्होने कहा, 'मत लेने के दिन दर्शको को नही आने देंगे। केवल प्रतिनिधि ही आयेगे औऱ वहाँ मतो की गिनती करा देना मेरा काम होगा। पर आप कांग्रेस की बैठक से अनुपस्थित तो रह ही नही सकते।'

आखिर मै हारा।

मैने अपना प्रस्ताव तैयार किया। बड़े संकोच से मैने उसे पेश करना कबूल किया। मि. जिन्ना और मालवीयजी उसका समर्थन करने वाले थे। भाषण हुए। मै देख रहा था कि यद्यपि हमारे मतभेद मे कही कटुता नही थी, भाषणो मे भी दलीलो के सिवा और कुछ नही था, फिर भी सभा जरा-सा भी मतभेद सहन नही कर सकती थी और नेताओ के मतभेद से उसे दुःख हो रहा था। सभा को तो एकमत चाहिये था।

जब भाषण हो रहे थे उस समय भी मंच पर मतभेद मिटाने की कोशिशे चल रही थी। एक-दूसरे बीच चिट्ठियाँ आ-जा रही थी। मालवीयजी, जैसे भी बने, समझौता कराने का प्रयत्न कर रहे थे। इतने मे जयरामगदास ने मेरे हाथ पर अपना सुझाव रखा और सदस्यो को मत देने के संकट से उबार लेने के लिए बहुत मीठे शब्दो मे मुझ से प्रार्थना की। मुझे उनका सुझाव पसन्द आया। मालवीयजी की दृष्टि तो चारो ओर आशा की खोज मे घूम ही रही थी। मैने कहा, 'यह सुझाव दोनो पक्षो को पसन्द आने लायक मालूम होता है।' मैने उसे लोकमान्य को दिखाया। उन्होने कहा, 'दास को पसन्द आ जाये , तो मुझे कोई आपत्ति नही।' देशबन्धु पिघले। उन्होंने विपिनचन्द्र पाल की ओर देखा। मालवीयजी को पूरी आशा बँध गयी। उन्होने परची हाथ से छीन ली। अभी देशबन्धु के मुँह से 'हाँ' का शब्द पूरा निकल भी नही पाया था कि वे बोल उठे, 'सज्जनो, आपको यह जानकर खुशी होगी कि समझौता हो गया है।' फिर क्या था ? तालियो का गडगड़ाहट से मंड़प गूंज उठा और लोगो के चहेरो पर जो गंभीरता थी, उसके बदले खुशी चमक उठी।

यह प्रस्ताव क्या था, इसकी चर्चा की यहाँ आवश्यकता नही। यह प्रस्ताव किस तरह स्वीकृत हुआ, इतना ही इस सम्बन्ध मे बतलाना मेरे इन प्रयोगो का विषय है। समझौते ने मेरी जिम्मेदारी बढा दी।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति