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धर्म की समस्या

ज्यो ही खबर दक्षिण अफ्रीका पहुँची कि हममे से कुछ इकट्ठा होकर युद्ध ने काम करने के लिए अपने नाम सरकार के पास भेजे है, त्यो ही मेरे नाम वहाँ से दो तार आये। उनमे एक पोलाक का था। उसमे पूछा गया था, 'क्या आपका कार्य अहिंसा के आपके सिद्धान्त के विरुद्ध नही है ?'

ऐसे तार की मुझे कुछ आशा ता थी ही। क्योकि 'हिन्द स्वराज्य' मे मैने इस विषय की चर्चा की थी और दक्षिण अफ्रीका मे मित्रो के साथ तो इसकी चर्चा निरन्तर होती ही रहती थी। युद्ध की अनीति को हम सब स्वीकार करते थे। जब मै अपने ऊपर हमला करने वाले पर मुकदमा चलाने को तैयार न था , तो दो राज्यो के बीच छिड़ी हुई लड़ाई मे, जिसके गुण-दोष का मुझे पता न था, मै किस प्रकार सम्मिलित हो सकता था ? यद्यपि मित्र जानते थे कि मैने बोअर-युद्ध मे हाथ बँटाया था, फिर भी उन्होने ऐसा मान लिया था कि उसके बाद मेरे विचारो मे परिवर्तन हुआ होगा।

असल मे जिस विचारधारा के वश होकर मै बोअर-युद्ध मे सम्मिलित हुआ था, उसी का उपयोग मैने इस बार भी किया था। मै समझता था कि युद्ध मे सम्मिलित होने का अहिंसा के साथ कोई मेल नही बैठ सकता। किन्तु कर्तव्य का बोध हमेशा दीपक की भाँति स्पष्ट नही होता। सत्य के पुजारी को बहुत ठोकरें खानी पड़ती है।

अहिंसा व्यापक वस्तु है। हम हिंसा की होली के बीच धिरे हुए पामर प्राणी है। यह वाक्य गलत नही है कि 'जीव जीव पर जीता है।' मनुष्य एक क्षण के लिए भी बाह्य हिंसा के बिना जी नही सकता। खाते-पीते, उठते-बैठते, सभी क्रियाओ मे इच्छा-अनिच्छा से वह कुछ-न-कुछ हिंसा तो करता ही रहता है। यदि इस हिंसा से छूटने के लिए वह महाप्रयत्न करता है , उसकी भावना केवल अनुकम्पा होती है , वह सूक्षम-से-सूक्षम जंतु का भी नाश नही चाहता और यथाशक्ति उसे बचाने का प्रयत्न करता है , तो वह अहिंसा का पुजारी है। उसके कार्यो मे निरन्तर संयम की वृद्धि होगी , उसमे निरन्तर करूणा बढती रहेगी। किन्तु कोई देहधारी बाह्य हिंसा से सर्वथा मुक्त नही हो सकता।

फिर, अहिंसा की तह मे ही अद्वैत-भावना निहित है। और, यदि प्राणीमात्र मै अभेद है, तो एक के पाप का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है, इस कारण भी मनुष्य हिंसा से बिल्कुल अछूता नही रह सकता। समाज मे रहने वाला मनुष्य समाज की हिंसा से, अनिच्छा से ही क्यो न हो, साझेदार बनता है। दो राष्टो के बीच युद्ध छिड़ने पर अहिंसा पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति का धर्म है कि वह उस युद्ध को रोके। जो इस धर्म का पालन न कर सके, जिसमे विरोध करने की शक्ति न हो, जिसे विरोध करने का अधिकार प्राप्त न हुआ हो, वह युद्ध कार्य मे सम्मिलित हो, और सम्मिलित होते हुए भी उसमे से अपने का, अपने देश को और सारे संसार को उबारने का हार्दिक प्रयत्न करे।

मुझे अंग्रेजी राज्य के द्वारा अपनी अर्थात् अपने राष्ट की स्थिति सुधारनी थी। मै विलायत मे बैठा हुआ अंग्रेजो के जंगी बेड़े से सुरक्षित था। उस बल का इस प्रकार उपयोग करके मै उसमे विद्यमान हिंसा मे सीधी तरह साझेदार बनता था। अतएव यदि आखिरकार मुझे उस राज्य के साथ व्यवहार बनाये रखना हो, उस राज्य के झंडे के नीचे रहना हो, तो या तो मुझे प्रकट रूप से युद्ध का विरोध करके उसका सत्याग्रह के शास्त्र के अनुसार उस समय तक बहिस्कार करना चाहिये, जब तक उस राज्य की युद्धनीति मे परिवर्तन न हो, अथवा उसके जो कानून भंग करने योग्य हो उसका सविनय भंग करके जेल की राह पकड़नी चाहिये , अथवा उसके युद्धकार्य मे सम्मिलित होकर उसका मुकाबला करने की शक्ति और अधिकार प्राप्त करना चाहिये। मुझ मे ऐसी शक्ति नही थी। इसलिए मैने माना कि मेरे पास युद्ध मे सम्मिलित होने का ही मार्ग बचा था।

मैने बन्दूकधारी मे और उसकी मदद करने वाले मे अहिंसा की दृष्टि से कोई भेद नही माना। जो मनुष्य लुटेरो की टोली मे उनकी आवश्यक सेवा करने, उनका बोझ ढोने , लूट के समय पहरा देने तथा घायल होने पर उनकी सेवा करने मे सम्मिलित होता है , लूट के संबंध मे लुटेरो जितना ही जिम्मेदार है। इस तरह सोचने पर फौज मे केवल घायलो की ही सार-संभाल करने के काम मे लगा हुआ व्यक्ति भी युद्ध के दोषो से मुक्त नही हो सकता।

पोलाक का तार मिलने से पहले ही मैने यह सब सोच लिया था। उनका तार मिलने पर मैने कुछ मित्रो से उसकी चर्चा की। युद्ध मे सम्मिलित होने मे मैने धर्म माना, और आज भी इस प्रश्न पर सोचता हूँ तो मुझे उपर्युक्त विचारधारा मे कोई दोष नजर नही आता। ब्रिटिश साम्राज्य के विषय मे उस समय मेरे जो विचार थे, उनके अनुसार मैने युद्धकार्य मे हिस्सा लिया था। अतएव मुझे उसका पश्चाताप भी नही है।

मै जानता हूँ कि अपने उपर्युक्त विचारो का औचित्य मै उस समय भी सब मित्रो के सामने सिद्ध नही कर सका था। प्रश्न सूक्ष्म है। उसमे मतभेद के लिए अवकाश है। इसीलिए अहिंसा -धर्म के मानने वाले और सूक्ष्म रीति से उसका पालन करने वालो के सम्मुख यथासंभव स्पष्टता से मैने अपनी राय प्रकट की है। सत्य का आग्रही रूढि से चिपटकर ही कोई काम न करे। वह अपने विचारो पर हठ पूर्वक डटा न रहे , हमेशा यह मान कर चले कि उनमे दोष हो सकता है और जब दोष का ज्ञान हो जाय तब भारी से भारी जोखिमो को उठाकर भी उसे स्वीकार करे और प्रायश्चित भी करे।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति