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अक्षर-ज्ञान

पिछले प्रकरण मे शारीरिक सिक्षा और उसके सिलसिले मे थोड़ी दस्तकारी सिखाने का काम टॉल्सटॉय आश्रम मे किस प्रकार शुरू किया गया , इस हम कुछ हद तक देख चुके है। यद्यपि यह काम मै ऐसे ढंग से तो कर ही न सका जिससे मुझे संतोष हो, फिर भी उसमे थोड़ी-बहुत सफलता मिली थी। पर अक्षर-ज्ञान देना कठिन मालूम हुआ। मेरे पास उसके लिए आवश्यक सामग्री न थी। स्वयं मुझे जितना मै चाहता था उतना समय न था , न मुझमे उतनी योग्यता थी। दिनभर शारीरिक काम करते-करते मै थक जाता था और जिस समय थोड़ा आराम करने की जरूरत होती उसी समय पढ़ाई के वर्ग लेने होते थे। अतएव मै ताजा रहने के बदले जबरदस्ती स जाग्रत रह पाता था। इसलिए दुपहर को भोजन के बाद तुरन्त ही शाला का काम शुरू होता था। इसके सिवा दूसरा कोई भी समय अनुकूल न था।

अक्षर-ज्ञान के लिए अधिक से अधिक तीन घंटे रखे गये थे। कक्षा मे हिन्दी, तामिल , गुजराती और उर्दू भाषाये सिखायी जाती थी। प्रत्येक बालक को उसकी मातृभाषा के द्वारा ही शिक्षा देने का आग्रह था। अंग्रेजी भी सबको सिखायी जाती थी। इसके अतिरिक्त गुजरात के हिन्दू बालको को थोड़ा संस्कृत का और सब बालको को थोड़ा हिन्दी का परिचय कराया जाता था। इतिहास , भूगोल और अंकगणित सभी को सिखाना था। यही पाठयक्रम था। तामिल और उर्दू सिखाने का काम मेरे जिम्मे था।

तामिल का ज्ञान मैने स्टीमरों मे और जेल मे प्राप्त किया था। इसमे भी पोप-कृत उत्तम 'तामिल स्वयं शिक्षक' से आगे मै बढ़ नही सका था। उर्दू लिपि का ज्ञान भी उतना ही था जितना स्टीमर मे हो पाया था। और , फारसी-अरबी के खास शब्दो का ज्ञान भी उतना ही था, जितना मुसलमान मित्रो के परिचय से प्राप्त कर सका था ! संस्कृत जितनी हाईस्कूल मे सीखा था उतनी ही जानता था। गुजराती का ज्ञान भी उतना ही था जितना शाला मे मिला था।

इतनी पूँजी से मुझे आपना काम चलाना था और इसमे मेरे जो सहायक थे वे मुझसे भी कम जानने वाले थे। परन्तु देशी भाषा के प्रति मेरे प्रेम ने अपनी शिक्षण शक्ति के विषया मे मेरी श्रद्धा ने, विद्यार्थियो के अज्ञान ने और उदारता ने इस काम मे मेरी सहायता की।

तामिल विद्यार्थियो का जन्म दक्षिण अफ्रीका मे ही हुआ था , इसलिए वे तामिल बहुत कम जानते थे। लिपि तो उन्हें बिल्कुल नही आती थी।

इसलिए मै उन्हें लिपि तथा व्याकरण के मूल तत्त्व सिखात था। यह सरल काम था। विद्यार्थी जानते थे कि तामिल बातचीत में तो वे मुझे आसानी से हरा सकते थे, और जब केवल तामिल जानने वाले ही मुझसे मिलने आते , तब वे मेरे दुभाषिये का काम करते थे। मेरी गाड़ी चली , क्योंकि मैने विद्यार्थियो के सामने अपने अज्ञान को छिपाने का कभी प्रयत्न ही नही किया। हर बात ने जैसा मै था, वैसा ही वे मुझे जानने लगे थे। इस कारण अक्षर-ज्ञान की भारी कमी रहते हुए भी मै उनके प्रेम और आदर से कभी वंचित न रहा।

मुसलमान बालको को उर्दू सिखाना अपेक्षाकृत सरल था। वे लिपि जानते थे। मेरा काम उनमे वाचन की रूचि बढाने और उनके अक्षर सुधारने का ही था।

मुख्यतः आश्रम के ये सब बालक निरक्षर थे और पाठशाला मे कहीं पढ़े हुए न थे। मैने सिखाते-सिखाते देखा कि मुझे उन्हें सिखाना तो कम ही है। ज्यादा काम तो उनका आलस्य छुड़ाने का , उनमे स्वयं पढ़ने की रूचि जगाने का और उनकी पढ़ाई पर निगरानी रखने का ही था। मुझे इतने काम से संतोष रहता था। यही कारण है कि अलग-अलग उमर के और अलग अलग विषयोवाले विद्यार्थियो को एक ही कमरे मे बैठाकर मै उनसे काम ले सकता था।

पाठ्यपुस्तको की जो पुकार जब-जब सुनायी पड़ती है , उसकी आवश्यकता मुझे कभी मालूम नही हुई। मुझे याद नही पड़ता कि जो पुस्तके हमारे पास थी उनका भी बहुत उपयोग किया गया हो। हरएक बालक को बहुत सी पुस्तके दिलाने की मैने जरूरत नही देखी। मेरा ख्याल है कि शिक्षक ही विद्यार्थियो ती पाठ्यपुस्तक है। मेरे शिक्षको ने पुस्तको की मदद से मुझे जो सिखाया था, वह मुझे बहुत ही कम याद रहा है। पर उन्होने अपने मुँह से जो सिखाया था , उसका स्मरण आज भी बना हुआ है। बालक आँखो से जितना ग्रहण करते है, उसकी अपेक्षा कानो से सुनी हुई बातो को वे थोड़े परिश्रम से और बहुत अधिक मात्रा मे ग्रहण कर सकते है। मुझे याद नही पड़ता कि मै बालको को एक भी पुस्तक पूरी पढ़ा पाया था।

पर अनेकानेक पुस्तको मे से जितना कुछ मै पचा पाया था , उसे मैने अपनी भाषा मे उनके सामने रखा था। मै मानता हूँ कि वह उन्हे आज भी याद होगा। पढ़ाया हुआ याद रखने मे उन्हें कष्ट होता था, जब कि मेरी कही हुई बात को वे उसी समय मुझे फिर सुना देते थे। जब मै थकावट के कारण या अन्य किसी कारण से मन्द और नीरस न होता , तब वे मेरी बात रस-पूर्वक और ध्यान-पूर्वक सुनते थे। उनके पूछे हुए प्रश्नो का उत्तर देने मे मुझे उनकी ग्रहण शक्ति का अन्दाजा हो जाता था।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति