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'पहाड़-जैसी भूल'

अहमदाबाद की सभा के बाद मै तुरन्त ही नडियाद गया। 'पहाड़-जैसी भूल' नामक का जो शब्द-प्रयोग हुआ है , उसका उपयोग मैने पहली बार नड़ियाद मे किया। अहमदाबाद मे ही मुझे अपनी भूल मालूम पड़ने लगी थी। पर नड़ियाद मे वहाँ की स्थिति का विचार करके और यह सुनकर कि खेडा जिले के बहुत से लोग पकडे गये है, जिस सभा मे मै घटित घटनाओ पर भाषण कर रहा था, उसमे मुझे अचानक यह ख्याल आया कि खेड़ा जिले के और ऐसे दूसरे लोगो को कानून का सविनय भंग करने के लिए निमंत्रित करने मे मैने जल्दबाजी की भूल की और वह भूल मुझे पहाड़-जैसी मालूम हुई।

इस प्रकार अपनी भूल कबूल करने के लिए मेरी खूब हँसी उड़ाई गयी। फिर भी अपनी इस स्वीकृति के लिए मुझे कभी पश्चाताप नही हुआ। मैने हमेशा यह माना है कि जैसे हम दूसरो के गज-जैसे दोषो को रजवत् मानकर देखते है और अपने रजवत् प्रतीत होने वाले दोषो को पहाड़-जैसा देखना सीखते है, तभी अपने और पराये दोषो को ठीक-ठीक अंदाज हो पाता है। मैने यह भी माना है कि सत्याग्रही बनने की इच्छा रखने वाले को तो इस साधारण नियम का पालन बहुत अधिक सूक्ष्मता के साथ करना चाहिये।

अब हम यह देखे कि पहाड़-जैसी प्रतीत होने वाली वह भूल क्या थी। कानून का सविनय भंग उन्हीं लोगो द्वारा किया जा सकता है , जिन्होने विनय-पूर्वक और स्वेच्छा से कानून का सम्मान किया हो। अधिकतर तो हम कानून का पालन इसलिए करते है कि उसे तोड़ने पर जो सजा होती है उससे हम डरते है। और , यह बात उस कानून पर विशेष रूप से घटित होती है , जिसमे नीति-अनीति का प्रश्न नही होता। कानून हो चाहे न हो, जो लोग भले माने जाते है वे एकाएक कभी चोरी नही करते। फिर भी रात मे साइकल पर बत्ती जलाने के नियम से बच निकलने मे भले आदमियो को भी क्षोभ नही होता , और ऐसे नियम का पालन करने की कोई सलाह-भर देता है , तो भले आदमी भी उसका पालन करने के लिए तुरन्त तैयार नही होते। किन्तु जब उसे कानून मे स्थान मिलता है और उसका भंग करने पर दंड़ित होने का डर लगता है , तब दंड की असुविधा से बचने के लिए वे रात मे साइकल पर बत्ती जलाते है। इस प्रकार का नियम पालन स्वेच्छा से किया हुआ पालन नही कहा जा सकता।

लेकिन सत्याग्रही समाज के जिन कानूनो का सम्मालन करेगा, वह सम्मान सोच-समझकर , स्वेच्छा से , सम्मान करना धर्म है ऐसा मानकर करेगा। जिसने इस प्रकार समाज के नियमो का विचार-पूर्वक पालन किया है, उसी को समाज के नियमो मे नीति-अनीति का भेद करने की शक्ति प्राप्त होती है और उसी को मर्यादित परिस्थितियो मे अमुक नियमो को तोड़ने का अधिकार प्राप्त करने से पहले मैने उन्हे सविनय कानूनभंग के लिए निमंत्रित किया , अपनी यह भूल मुझे पहाड़-जैसी लगी। और, खेड़ा जिले मे प्रवेश करने पर मुझे खेड़ा का लड़ाई का स्मरण हुआ और मुझे लगा कि मै बिल्कुल गलत रास्ते पर चल पड़ा हूँ। मुझे लगा कि लोग सविनय कानूनभंग करने योग्य बने , इससे पहले उन्हें उसके गंभीर रहस्य का ज्ञान होना चाहिये। जिन्होने कानूनो को रोज जान-बूझकर तोडा हो , जो गुप्त रीति से अनेक बार कानूनो का भंग करते हो, वे अचानक सविनय कानून-भंग को कैसे समझ सकते है ? उसकी मर्यादा का पालन कैसे कर सकते है ?

यह तो सहज ही समझ मे आ सकता है कि इस प्रकार की आदर्श स्थिति तक हजारो या लाखो लोग नही पहुँच सकते। किन्तु यदि बात ऐसी है तो सविनय कानून-भंग कराने से पहले शुद्ध स्वयंसेवको का एक ऐसा दल खड़ा होना चाहिये। जो लोगो को ये सारी बाते समझाये और प्रतिक्षण उनका मार्गदर्शन करे। और ऐसे दल को सविनय कानून-भंग तथा उसकी मर्यादा का पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिये

इन विचारो से भरा हुआ मै बम्बई पहुँचा और सत्याग्रह-सभा के द्वारा सत्याग्रही स्वयंसेवको का एक दल खड़ा किया। लोगो को सविनय कानून-भंग का मर्म समझाने के लिए जिस तालीम की जरूरत थी, वह इस दल के जरिये देनी शुरू की और इस चीज को समझानेवाली पत्रिकाये निकाली।

यह काम चला तो सही, लेकिन मैने देखा कि मै इसमे ज्यादा दिलचस्पी पैदा नहीं कर सका। स्वयंसेवको की बाढ नही आयी। यह नही कहा जा सकता कि जो लोग भरती हुए उन सबने नियमित तालीम ली। भरती मे नाम लिखानेवाले भी जैसे-जैसे दिन बीतते गये , वैसे-वैसे ढृढ बनने के बदले खिसकने लगे। मै समझ गया कि सविनय कानून-भंग की गाड़ी मैने सोचा था उससे धीमी चलेगी।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति