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'प्याज़चोर'

चम्पारन हिन्दुस्तान के ऐसे कोने मे स्थित था और वहाँ की लड़ाई को इस तरह अखबारो से अलग रखा जा सका था कि वहाँ से बाहर से देखनेवाले कोई आते नहीं थे। पर खेड़ा की लड़ाई अखबारो की चर्चा का विषय बन चुकी थी। गुजरातियो को इस नई वस्तु मे विशेष रस आने लगा था। वे पैसा लुटाने को तैयार थे। सत्याग्रह की लड़ाई पैसे से नही चल सकती , उसे पैसे की कम से कम आवश्यकता रहती है, यह बात जल्दी उनकी समझ में नही आ रही थी। मना करने पर भी बम्बई के सेठो ने आवश्यकता से अधिक पैसे दिये थे और लड़ाई के अन्त मे उसमें से कुछ रकम बच गयी थी।

दूसरी तरफ सत्याग्रही सेना को भी सादगी का नया पाठ सीखना था। मै यह तो नहीं कह सकता कि वे पूरा पाठ सीख सके थे, पर उन्होने अपनी रहन सहन मे बहुत कुछ सुधार कर लिया था।

पाटीदारो के लिए भी यह लड़ाई नई थी। गाँव-गाँव घूमकर लोगो को इसका रहस्य समझाना पड़ता था। सरकारी अधिकारी जनता के मालिक नहीं , नौकर हैं, जनता के पैसे से उन्हें तनख्वाह मिलती हैं -- यह सब समझाकर उनका भय दूर करने का काम मुख्य था। और निर्भय होने पर भी विनय के पालन का उपाय बताना और उसे गले उतारना लगभग असम्भव सा प्रतीत होता था।

अधिकारियो का डर छोड़ने के बाद उनके द्वारा किये गये अपमानो का बदला चुकाने की इच्छा किसे नहीं होती ! फिर भी यदि सत्याग्रही अविनयी बनता है , तो वह दूध मे जहर मिलने के समान हैं। पाटीदार विनय का पाठ पूरी तरह पढ़ नहीं पाये , इसे मैं बाद मे अधिक समझ सका। अनुभव से मैं इस परिणाम पर पहुँचा कि विनय सत्याग्रह का कठिन से कठिन अंश है। यहाँ विनय का अर्थ केवल सम्मान पूर्वक वचन कहना ही नही हैं। विनय से तात्पर्य है , विरोधी के प्रति भी मन मे आदर, सरल भाव , उसके हित की इच्छा औऱ तदनुसार व्यवहार।

शुरु के दिनो मे लोगो मे खूब हिम्मत दिखायी देती थी। शुरू-शुरू मे सरकारी कारवाई भी कुछ ढीली थी। लेकिन जैसे-जैसे लोगो की ढृढता बढती मालूम हुई, वैसे-वैसे सरकार को भी अधिक उग्र कार्यवाई करने की इच्छा हुई। कुर्की करनेवालो ने लोगो के पशु बेच डाले, घर मे से जो चाहा सो माल उठाकर ले गये। चौथाई जुर्माने की नोटिस निकली। किसी-किसी गाँव की सारी फसल जब्त कर ली गयी। लोगो मे घबराहट फैली। कुछ ने लगान जमा करा दिया। दूसरे मन-ही-मन यह चाहने लगे कि सरकारी अधिकारी उनका सामान जब्त करके लगान वसूल कर ले तो भर पाये। कुछ लोग मर-मिटनेवाले भी निकले।

इसी बीच शंकरलाल परीख की जमीन का लगान उनकी जमीन पर रहनेवाले आदमी ने जमा करा दिया। इससे हाहाकार मच गया। शंकरलाल परीख ने वह जमीन जनता को देकर अपने आदमी से हूई भूल का प्रायश्चित किया। इससे उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा हुई और दूसरो के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत हो गया।

भयभीत लोगो को प्रोत्साहित करने के लिए मोहनलाल पंडया के नेतृत्व मे मैने एक ऐसे खेत मे खड़ी फसल को उतार लेने की सलाह दी, जो अनुचित रीति से जब्त किया गया था। मेरी दृष्टि मे इससे कानून का भंग नहीं होता था। लेकिन अगर कानून टूटता हो , तो भी मैने यह सुझाया कि मामूली से लगान के लिए समूची तैयार फसल को जब्त करना कानूनन् ठीक होते हुए भी नीति के विरुद्ध है और स्पष्ट लूट है , अतएव इस प्रकार की जब्ती का अनादर करना हमारा धर्म है। लोगो को स्पष्ट रूप से समझा दिया था कि ऐसा करने मे जेल जाने और जुर्माना होने का खतरा है। मोहनलाल पंडया तो यही चाहते थे। सत्याग्रह के अनुरूप किसी रीति से किसी सत्याग्रही के जेल गये बिना खेड़ा की लड़ाई समाप्त हो जाय , यह चीज उन्हें अच्छी नही लग रही थी। उन्होंने इस खेत का प्याज खुदवाने का बीड़ा उठाया। सात-आठ आदमियो ने उनका साथ दिया।

सरकार उन्हें पकड़े बिना भला कैसे रहती ? मोहनलाल पंडया और उनके साथी पकड़े गये। इससे लोगो का उत्साह बढ़ गया। जहाँ लोग जेल इत्यादि के विषय मे निर्भय बन जाते है , वहाँ राजदंड लोगो को दबाने के बदले उनमे शूरवीरता उत्पन्न करता है। अदालत मे लोगो के दल-के-दल मुकदमा देखने को उमड़ पड़े। मोहनलाल पंडया को और उनके साथियो को थोडे-थोड़े दिनो की कैद की सजा दी गयी। मै मानता हूँ कि अदालत का फैसला गलत था। प्याज उखाडने का काम चोरी की कानूनी व्याख्या की सीमा मे नही आता था। पर अपील करने की किसी की वृति ही न थी।

जेल जानेवालो को पहुँचाने के लिए एक जुलूस उनके साथ हो गया और उस दिन से मोहनलाल पंडया को लोगो की ओर से 'प्याजचोर' की सम्मानित पदवी प्राप्त हुई, जिसका उपभोग वे आज तक कर रहे है।

इस लड़ाई का कैसा और किस प्रकार अन्त हुआ , इसका वर्णन करके हम खेड़ा-प्रकरण समाप्त करेंगे।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति