पत्री 98
देशभक्तीपर कविता
भारतमाता
हे भारतमाते मधुरे!
गाइन सतत तव गान।।
त्याग, तपस्या, यज्ञ, भूमि तव जिकडे तिकडे जाण
कर्मनीर किति धर्मवीर किति झाले तदगणगा न।। गाइन....।।
दिव्य असे तव माते करिता इतिहासामृतपान
तन्मय होतो मी गहिवरतो हरपून जाते भान।। गाइन....।।
देउन देउन दीन जाहलिस तरिही देशी दान
परजीवन सांभाळिशि संतत अर्पुन अपुली मान।। गाइन....।।
सत्त्वाचा सत्याचा जगती तूचि राखिशी मान
तुझ्या कथा ऐकाया उत्सुक भगवंताचे कान।। गाइन....।।
एकमुखाने किति वर्णु मी आई तव महिमान
थकले शेषहि, थकले ईशहि, अतुल तुला तुलना न।। गाइन....।।
धूळीकण, फळ, फूल, खडा वा असो तरुचे पान
तुझेच अनुपम दाखविती मज पवित्र ते लावण्य।। गाइन....।।
मांगल्याची माधुर्याची पावित्र्याची खाण
परमेशाच्या कृपाप्रसादे नुरेल तुजला वाण।। गाइन....।।
समरसता पावणे तुझ्याशी मदानंद हा जाण
यश:पान तव सदैव करितो करितो मी त्वद्धयान।। गाइन....।।
बहुभाग्याने बहुपुण्याने झालो तव संतान
तव सेवा मम हातुन होता हरपो माझा प्राण।। गाइन....।।
-त्रिचनापल्ली तुरुंग, जानेवारी १९३१
मनमोहन मूर्ति तुझी माते
मनमोहन मूर्ति तुझी माते
सकल जगाची माय माउली
गोड असे किति नाते।। मनमोहन....।।
कुरवाळिशि तू सकल जगाला
निवविशि अमृत-हाते।। मनमोहन....।।
स्नेहदयेचे मळे पिकविशी
देशी प्रेमरसाते।। मनमोहन....।।
सकळ धर्म हे बाळ तुझे गे
सांभाळिशि त्याते।। मनमोहन....।।
भेदभाव तो तुजजवळ नसे
सुखविशि तू सकळांते।। मनमोहन....।।
श्रद्धा देशी ज्ञाना देशी
सारिशि दूर तमाते।। मनमोहन....।।
थोर ऋषी तव थोर संत तव
शिकविति शुभ धर्माते।। मनमोहन....।।
सरिता सागर सृष्टि चराचर
गाती तुझ्याच यशाते।। मनमोहन....।।
तव शुभ पावन नाम सनातन
उचंबळवि हृदयाते।। मनमोहन....।।
त्वत्स्मरणाने त्वदगुण-गाने
भरुनि मदंतर जाते।। मनमोहन....।।
तव सेवा मम हातुन होता
मरण सुधारस वाटे।। मनमोहन....।।
-त्रिचनापल्ली तुरुंग, जानेवारी १९३१