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पत्री 38

देवाजवळ

तुझ्याविणे कोणि न माते वत्सले मला गे
तुझा ध्यास आता आई सर्वदैव लागे
अनाथास नाथ ग कोणी ना कुणीहि पाता
तूच तात माझा, प्रेमस्निग्ध तूचि माता।।

पाप अंतरंगी आहे संचले अनंत
सुचे रुचे काहि न वाटे दिवारात्र खंत
पापपंकमग्न मला तू काय ठेवशील
नसे असे आई!  तव गे क्रूर दुष्ट शील।।

परम सदय कोमल माते!  ते त्वदंतरंग
त्वत्कृपाबुधीचे येवो मजवरी तरंग
मलिन मानसी मम जे जे सकल ते धुवावे
विमल पुण्यवान आई!  लेकरु करावे।।

नको गर्व हेवा दावा लोभ तो नसावा
विषयवासनाकंद मळासकट तो खणावा
नको मान उच्च स्थान प्रभु!  नकोच किर्ती
मनी वसो एक सदा ती तुझी मधुर मूर्ती।।

करु काय?  संतापविती वासनाविकार
हीन दीन दुबळा मी तो शीण होइ फार
विषयडोहि डुंबे मोदे मन्मनोमतंग
कधी आइ!  या वृत्तीचा करिशि सांग भंग।।

मदिंद्रिया सकळा करितो मी तुझ्या अधीन
तूच त्यास आवर मी तो त्वत्पदी सुलीन
तुझ्यावरी घालुन आता सर्व दु:खभार
विसंबून राहिन देवा!  तार किंवा मार।।

मला देवदेवा! वाटे सांगण्यास लाज
मान घालुनीया खाली असे उभा आज
जगी घालवोनी देवा!  वत्सरांस तीस
काय मेळवीले?  काही नाहि!  धिक् कृतीस।।

कोप अल्प झाला न कमी, कामवासना ती
अहोरात्र गांजित, चित्ती अल्प नाही शांति
लोभ लुप्त झाला नाही, व्यर्थ सर्व काही
फुकट फुकट सारा गेला जन्म हाय पाहि।।

क्षुद्र- वस्तु- लोभी गेलो गुंतुनी कितीदा
क्षुद्र वस्तु हृदयी धरुनी मानिले प्रमोदा
कला नाहि, विद्या नाहि, शील तेहि नाहि
हाय हाय देवा!  स्थिति ही मन्मनास दाही।।

अता तरी देवा! ठेवा हृत्स्थ मोह दूर
आता तरी होवो मन हे विमल धीर वीर
सद्गुणाचि सत्कृत्याची मौत्किके अमोल
जीवनांबुधीत बनू दे रुचिर गोल गोल।।

नसो व्यर्थ, सार्थक होवो, प्रभो!  जीवनाचे
फुलो फल जीवनमय हे अता एकदाचे
दिसो रंग रमणीय असे वास दरवळू दे
तुझी कृपा झाली आहे हे मला कळू दे।।

मदाचरण होवो धुतल्या तांदळासमान
पुढे पुढे पाउल पडु दे जाउ दे चढून
तुझी कृपा होई तरि हे सर्व शक्य वाटे
नको अंत पाहू आता, लाव बाळ वाटे

स्नेहमयी माउलि तू गे साउली जिवाची
तूच एक आधार मला आस तू नताची
नको उपेक्षू तू, माते!  अश्रु हे पुसावे
मला नीट मार्गावरती आणण्यास धावे।।

तिमिर घोर नैराश्याचा मानसास घेरी
मला येइ मदध:पाता बघुन घोर घोरी
कृपाकौमुगदीचे आता किरण येउ देत
उदासीनता चित्ताची सकळ संहरोत।।

किती मनोरथ मी देवा मनी मांडियेले
भव्य किति ध्येयांना मी मनी खेळवीले
दिसे मला जे जे मोठे तेच तेच व्हावे
असे मनी वाटे, हाती काहिही न व्हावे।।

पत्री

पांडुरंग सदाशिव साने
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