सीमाब पुश्त-ए-गर्मी-ए-आईना दे, हैं हम
सीमाब[1] पुश्त-गर्मी-ए-आईना[2] दे, हैं हम
हैरां किये हुए हैं दिल-ए बे-क़रार के
आग़ोश-ए-गुल[3] कुशूदा[4] बरा-ए-विदाअ़[5] है
ऐ अ़नदलीब[6]! चल कि चले दिन बहार के
यूं बाद-ए-ज़ब्त-ए-अश्क[7] फिरूं गिरद यार के
पानी पिये किसू[8] पे कोई जैसे वार के
बाद अज़[9] विदाअ़-ए-यार ब ख़ूं दर तपीदा हैं
नक़श-ए-क़दम हैं हम कफ़-ए-पा-ए-निगार[10] के
हम मश्क़-ए-फ़िक्र-ए-वसल-ओ-ग़म-ए-हिज़्र से असद
लायक़ नहीं रहे हैं ग़म-ए रोज़गार के
शब्दार्थ: