जो न नक़्दे-दाग़े-दिल[1] की करे शोला[2] पासबानी[3] तो फ़ुसुर्दगी[4] निहां[5] है, ब कमीने[6]-बे-ज़बानी मुझे उस से क्या तवक़्क़ो[7] ब ज़माना-ए-जवानी[8] कभी कूदकी[9] में जिस ने न सुनी मेरी कहानी यूं ही दुख किसी को देना नहीं ख़ूब[10], वरना कहता कि मेरे अ़दू[11] को या रब मिले मेरी ज़िंदगानी