आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर[1] होने तक!
दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर होने तक!
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होने तक!
हमने माना कि तगाफुल[2] न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक!
परतवे-खुर[3] से है शबनम को फ़ना की तालीम
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक!
यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर[4] होने तक!
गम-ए-हस्ती[5] का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक!
शब्दार्थ: