निकोहिश है सज़ा, फ़रियादी-ए-बेदाद-ए-दिलबर की
निकोहिश[1] है सज़ा, फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर[2] की
मबादा[3] ख़न्दा-ए-दनदां-नुमा[4] हो सुबह महशर[5] की
रग-ए-लैला, को ख़ाक-ए-दश्त-ए-मजनूं[6] रेशगी[7] बख़्शे
अगर बोवे बजा-ए-दाना[8] दहक़ां[9], नोक नश्तर की
पर-ए-परवाना[10] शायद बादबान-ए-किश्ती-ए-मै[11] था
हुई मजलिस की गरमी से रवानी[12] दौर-ए-साग़र[13] की
करूं बे-दाद-ए-ज़ौक़-ए-पर-फ़िशानी[14] अ़रज़ क्या, क़ुदरत
कि ताक़त उड़ गई उड़ने से पहले मेरे शह-पर[15] की
कहां तक रोऊं उस के ख़ेमे के पीछे, क़यामत है
मेरी क़िस्मत में, या रब !, क्या न थी दीवार पत्थर की
शब्दार्थ: