न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता! हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस[1], तो ग़म क्या सर के कटने का ? न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानू[2] पर धरा होता हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' मर गया, पर याद आता है वो हर इक बात पर कहना, कि यूं होता तो क्या होता?