है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे
है आरमीदगी में निकोहिश[1] बजा[2] मुझे
सुबह-ए-वतन है ख़न्दा-ए-दन्दां-नुमा[3] मुझे
ढूंढे है उस मुग़न्नी-ए-आतिश-नफ़स[4] को जी
जिस की सदा[5] हो जल्वा-ए-बर्क़-ए-फ़ना[6] मुझे
मस्ताना[7], तय करूँ हूँ रह-ए-वादी-ए-ख़याल[8]
ता[9] बाज़-गश्त से[10] न रहे मुद्दआ़ मुझे
करता है बसकि[11], बाग़ में तू बे-हिजाबियां[12]
आने लगी है नकहत-ए-गुल[13] से हया मुझे
खुलता किसी पे क्यों मेरे दिल का मुआ़मला
शे`रों के इन्तख़ाब[14] ने रुसवा किया मुझे
शब्दार्थ: