जुनूं तोहमत-कशे-तस्कीं न हो गर शादमानी की
जुनूं[1] तोहमत-कशे-तस्कीं[2] न हो, गर शादमानी[3] की
नमक-पाशे-ख़राशे-दिल[4] है लज़्ज़त[5] ज़िन्दगानी की
कशाकशा-ए-हस्ती[6] से करे क्या सई-ए-आज़ादी[7]
हुई ज़ंजीर, मौज-ए-आब[8] को, फ़ुर्सत[9] रवानी[10] की
पस-अज़-मुर्दन[11] भी दीवाना ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़लां[12] है
शरार-ए-संग[13] ने तुरबत[14] पे मेरी गुल-फ़िशानी[15] की
शब्दार्थ: