तग़ाफ़ुल[1]-दोस्त हूँ, मेरा दिमाग़-ए-अ़जज़[2] आ़ली[3] है अगर पहलू-तही[4] कीजे, तो जा[5] मेरी भी ख़ाली है रहा आबाद आ़लम, अहल-ए हिम्मत[6] के न होने से भरे हैं जिस क़दर जाम-ओ-सुबू[7] मैख़ाना ख़ाली है