वो मेरी चीन-ए-जबीं से ग़मे-पिनहां समझा
वो मेरी चीन-ए-जबीं[1] से ग़मे-पिनहां[2] समझा
राज़-ए-मकतूब[3] ब बे-रबती-ए-उनवां[4] समझा
यक अलिफ़[5] बेश[6] नहीं सैक़ल-ए-आईना[7] हनूज़[8]
चाक करता हूं मैं जब से कि गिरेबां समझा
शरह[9]-ए-असबाब-ए-गिरफ़तारी-ए-ख़ातिर[10] मत पूछ
इस क़दर तंग हुआ दिल कि मैं ज़िन्दां[11] समझा
बद-गुमानी[12] ने न चाहा उसे सरगरम-ए-ख़िराम[13]
रुख़ पे हर क़तरा अ़रक़[14] दीदा-ए-हैरां समझा
अ़जज़[15] से अपने यह जाना कि वह बद-ख़ू[16] होगा
नब्ज़-ए-ख़़स[17] से तपिश-ए-शोला-ए-सोज़ां[18] समझा
सफ़र-ए-इश्क़ में की ज़ोफ़[19] ने राहत-तलबी
हर क़दम साए को मैं अपने शबिस्तां[20] समझा
था गुरेज़ां[21] मिज़गां[22]-हाए-यार से दिल ता-दम-ए-मर्ग[23]
दफ़अ-ए-पैकान-ए-क़ज़ा[24] उस क़दर आसां समझा
दिल दिया जान के क्यूं उस को वफ़ादार 'असद'
ग़लती की कि जो काफ़िर को मुसलमां समझा
शब्दार्थ:
- ↑ माथे कि शिकन
- ↑ भीतरी ग़म
- ↑ पत्र का रहस्य
- ↑ शीर्षक की असंगति
- ↑ उर्दू की वर्णमाला का पहला अक्षर
- ↑ अधिक
- ↑ आईने की क़लई
- ↑ अभी
- ↑ खुलासा
- ↑ पकड़े जाने के कारण
- ↑ कैदखाना
- ↑ शक करना
- ↑ घूमने की तीव्र इच्छा
- ↑ पसीना
- ↑ कमजोरी
- ↑ गुस्से वाला
- ↑ भूसे की नब्ज़
- ↑ जलती हुई आग की तपिश
- ↑ कमजोरी
- ↑ सोने का कमरा
- ↑ भागना
- ↑ पलकें
- ↑ आखिरी सांस तक
- ↑ मोत के तीर का रस्ता मोड़ना