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एक संवाद

जिस समय स्वदेशी के नाम से परिचित यह आन्दोलन चलने लगा , उस समय मिल मालिको की ओर से मेरे पास काफी टीकाये आने लगी। भाई उमर सोबानी स्वयं एक होशियार मिल-मालिक थे। अतएव वे अपने ज्ञान का लाभ तो मुझे देते ही थे, पर दूसरो की राय की जानकारी भी मुझे देते रहते थे। उनमे से एक की दलील का असर उन पर भी हुआ और उन्होने मुझे उस भाई के पास चलने की सूचना की। मैने उसका स्वागत किया। हम उनके पास गये। उन्होने आरम्भ इस प्रकार किया, 'आप यह तो जानते है न कि आपका स्वदेशी आन्दोलन पहला ही नही है?'

मैने जवाब दिया, 'जी हाँ।'

'आप जानते है न कि बंग भंग के समय स्वदेशी आन्दोलन ने खूब जोर पकड़ा था, जिसका हम मिलवालो ने खूब फायदा उठाया था और कपड़े के दाम बढ़ा दिये थे ? कुछ नही करने लायक बाते की भी?'

'मैने यह बात सुनी है और सुनकर मै दुःखी हुआ हूँ।'

'मै आपका दुःख समझता हूँ पर उसके लिए कोई कारण नही है। हम परोपकार के लिए व्यापार नही करते। हमें तो पैसा कमाना है। अपने हिस्सेदारो को जवाब देना है। वस्तु का मूल्य उसकी माँग पर निर्भर करता है , इस नियम के विरुद्ध कौन जा सकता है ? बंगालियो को जानना चाहिये था कि उनके आन्दोलन से स्वदेशी वस्त्र के दाम अवश्य बढेंगे।'

'वे विचारे मेरी तरह विश्वासशील है। इसलिए उन्होने मान लिया कि मिल-मालिक नितान्त स्वार्थी नही बन जायेंगे। विश्वासधात तो कदापि न करेंगे। स्वदेशी के नाम पर विदेशी कपड़ा हरगिज न बेचेंगे।'

'मै जानता था कि आप ऐसा मानते है। इसी से मैने आपको सावधान करने का विचार किया और यहाँ आने का कष्ट दिया , ताकि आप भोले बंगालियो की तरह धोखे मे न रह जाये।'

यह कहकर सेठजी ने अपने गुमाश्ते को नमूने लाने का इशारा किया। ये रद्दी रुई मे से बने हुए कम्बल के नमूने थे। उन्हे हाथ मे लेकर वे भाई बोले, 'देखिये , यह माल हमने नया बनाया है। इसकी अच्छी खपत है। रद्धी रुई से बनाया है , इसलिए यह सस्ता तो पड़ता ही है। इस माल को हम ठेठ उत्तर तक पहुँचातो है। हमारे एजेंट चारो ओर फैले हुए है। अतएव हमे आपके समान एजेट की जरूरत नही रहती। सच तो यह है कि जहाँ आप-जैसो की आवाज नही पहुँचती, वहाँ हमारा माल पहुँचती है। साथ ही, आपको यह भी जानना चाहिये कि हिन्दुस्तान की आश्यकता का सब माल हम उत्पन्न नही करते है। अतएव स्वदेशी का प्रश्न मुख्यतः उत्पादन का प्रश्न है। जब हम आवश्यक मात्रा मे कपड़ा पैदा कर सकेंगे और कपड़े की किस्म मे सुधार कर सकेंगे, तब विदेशी कपड़े का आना अपने आप बन्द हो जायेगा। इसलिए आपको मेरी सलाह तो यह है कि आप अपना स्वदेशी आन्दोलन जिस तरह चला रहे है, उस तरह न चलाये औऱ नई मिले खोलने की ओर ध्यान दे। हमारे देश मे स्वदेशी माल खपाने का आन्दोलन चलाने की आवश्यकता नही है , बल्कि उसे उत्पन्न करने की आवश्यकता है।'

मैने कहा, 'यदि मै यही काम कर रहा होऊँ, तब तो आप उसे आशीर्वाद देंगे न ?'

'सो किस तरह? यदि आपमिल खोलने का प्रयत्न करते हो , तो आप धन्यवाद के पात्र है।'

'ऐसा तो मै नही कर रहा हूँ, पर मै चरखे के काम मे लगा हुआ हूँ।'

'यह क्या चीज है ?'

मैने चरखे की बात सुनाई और कहा, 'मै आपके विचारो से सहमत हूँ। मुझे मिलो की दलाली नही करनी चाहिये। इससे फायदे के बदले नुकसान ही है। मिलो का माल पड़ा नही रहता। मुझे तो उत्पादन बढाने मे और उत्पन्न हुए कपड़े को खपाने मे लगना चाहिये। इस समय मै उत्पादन के काम मे लगा हुआ हूँ। इस प्रकार की स्वदेशी मे मेरा विश्वास है , क्योकि उसके द्वारा हिन्दुस्तान की भूखो मरनेवाली अर्ध-बेकार स्त्रियो को काम दिया जा सकता है। उनका काता हुआ सूत बुनवाना और उसकी खादी लोगो को पहनाना, यही मेरा विचार है और यही मेरा आन्दोलन है। मै नही जानता कि चरखा आन्दोलन कहाँ तक सफल होगा। अभी तो उसका आरम्भ काल ही है , पर मुझे उसमे पूरा विश्वास है। कुछ भी हो, उसमे नुकसान तो है ही नही। हिन्दुस्तान मे उत्पन्न होने वाले कपड़े मे जितनी वृद्धि इस आन्दोलन से होगी उतना फायदा ही है। अतएव इस प्रयत्न मे आप बताते है वह दोष तो है ही नही।'

'यदि आप इस रीति से आन्दोलन चलाते हो, तो मुझे कुछ नही कहना है। हाँ, इस युग मे चरखा चल सकता है या नही, यह अलग बात है। मै तो आपकी सफलता ही चाहता हूँ।'

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति