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पूना में

सर फिरोजशाह मेहता मे मेरा मार्ग सरल कर दिया। बम्बई से मै पूना गया। मुझे मालूम था कि पूना में दो दल थे। मुझे तो सबकी मदद की जरुरत थी। मै लोकमान्य तिलक से मिला। उन्होने कहा, 'सब पक्षो की मदद लेने का आपका विचार ठीक हैं। आपके मामले मे कोई मतभेद नही हो सकता। लेकिन आपके लिए तटस्छ सभापति चाहिये। आप प्रो. भांडारकर से मिलिये। वे आज कल किसी आन्दोलन मे सम्मिलित नही होते। पर सम्भव है कि इस काम के लिए आगे आ जाये। उनसे मिलने के बाद मुझे परिणाम से सूचित कीजिये। मै आपकी पूरी मदद करना चाहता हूँ। आप प्रो. गोखले से तो मिलेंगे ही। मेरे पास आप जब आना चाहे , निःसंकोच आइये।'

लोकमान्य का यह मेरा प्रथम दर्शन था। मैं उनकी लोकप्रियता का कारण तुरन्त समझ गया।

यहाँ से मैं गोखले के पास गया। वे फर्ग्यूसन कॉलेज मे थे। मुझ से बड़े प्रेम से मिले और मुझे अपना बना लिया। उनसे भी मेरा यह पहला ही परिचय था। पर ऐसा जान पड़ा, मानो हम पहले मिल चुके हो। सर फीरोजशाह मुझे हिमालय जैसे, लोकमान्य समुद्र जैसे और गोखले गंगा जैसे लगे। गंगा मे मैं नहा सकता था। हिमालय पर चढा नही जा सकता था। समुद्र मे डूबने का डर था। गंगा की गोद मे तो खेला जा सकता था। उसमे डोगियां लेकर सैर की जा सकती थी। गोखले मे बारीकी से मेरी जाँच की -- उसी तरह, जिस तरह स्कूल मे भरती होते समय किसी विद्यार्थी की की जाती हैं। उन्होने मुझे बताया कि मैं किस-किस से और कैसे मिलूँ और मेरा भाषण देखने को माँगा। मुझे कॉलेज की व्यवस्था दिखायी। जब जरुरत हो तब मिलने को कहा। डॉ. भांडारकर के जवाब की खबर देने को कहा और मुझे बिदा किया। राजनीति के क्षेत्र मे जो स्थान गोखले मे जीते-जी मेरे हृदय मे प्राप्त किया और स्वर्गवास के बाद आज भी जो स्थान उन्हे प्राप्त हैं , वह और कोई पा नही सका।

रामकृष्ण भांडारकार ने मेरा वैसा ही स्वागत किया, जैसा कोई बाप बेटे का करता हैं। उनके यहाँ गया तब दुपहरी का समय था। ऐसे समय मे भी मैं अपना काम कर रहा था , यह चीज ही इस उद्यम शास्त्री को प्यारी लगी। और तटस्थ सभापति के लिए मेरे आग्रह की बात सुनकर 'देट्स इट देट्स इट' (यह ठीक हैं , यह ठीक हैं ) के उद्गार उनके मुँह से सहज ही निकल पड़े।

बातचीत के अन्त में वे बोले, 'तुम किसी से भी पूछोगे तो वह बतलायेगा कि आजकल मैं किसी राजनीतिक काम मे हिस्सा नही लेता हूँ, पर तुम्हे मैं खाली हाथ नही लौटा सकता। तुम्हारा मामला इतना मजबूत हैं और तुम्हारा उद्यम इतना स्तुत्य हैं कि मै तुम्हारी सभा मे आने से इनकार कर ही नही सकता। यह अच्छा हुआ कि तुम श्री तिलक और श्री गोखले से मिल लिये। उनसे कहो कि मैं दोनो पक्षो द्वारा बुलायी गयी सभा मे खुशी से आऊँगा और सभापति-पद स्वीकार करुँगा। समय के बारे मे मुझ से पूछने की जरुरत नही हैं। दोनो पक्षो को जो समय अनुकूल होगा, उसके अनुकूल मै हो जाऊँगा।' यों कहकर उन्होने धन्यवाद औऱ आशीर्वाद के साथ मुझे बिदा किया।

बिना किसी हो-हल्ले और आडम्बर के एक सादे मकान मे पूना की इस विद्वान और त्यागी मंडली ने सभा की , और मुझे सम्पूर्ण प्रोत्साहन के साथ बिदा किया।

वहाँ से मैं मद्रास गया। मद्रास तो पागल हो उठा। बालासुन्दरम के किस्से का सभा पर गहरा असर पड़ा। मेरे लिए मेरा भाषण अपेक्षाकृत लम्बा था। पूरा छपा हुआ था। पर सभा ने उसका एक एक शब्द ध्यानपूर्वक सुना। सभा के अन्त में उस 'हरी पुस्तिका' पर लोग टूट पड़े। मद्रास में संशोधन औप परिवर्धन के साथ उसकी दूसरी आवृति दस हजार की छपायी थी। उसका अधिकांश निकल गया। पर मैने देखा कि दस हजार की जरुरत नही थी। मैने लोगो के उत्साह का अन्दाज कुछ अधिक ही कर लिया था। मेरे भाषण का प्रभाव तो अंग्रेजी जानने वाले समाज पर ही पडा था। उस समाज के लिए अकेले मद्रास शहर मे दस हजार प्रतियों कि आवश्यकता नही हो सकती थी।

यहाँ मुझे बड़ी से बड़ी मदद स्व. जी. परमेश्वरन पिल्लै से मिली। वे 'मद्रास स्टैंडर्ड' के सम्पादक थे। उन्होने इस प्रश्न का अच्छा अध्ययन कर लिया था। वे मुझे अपने दफ्तर मे समय-समय पर बुलाते थे और मेरा मार्गदर्शन करते थे। 'हिन्दू' के जी. सुब्रह्मण्यम से भी मैं मिला था। उन्होने और डॉ. सुब्रह्यण्यम ने भी पूरी सहानुभूति दिखायी थी। पर जी. परमेश्वरन पिल्लै ने तो मुझे अपने समाचार पत्र का इस काम के लिए मनचाहा उपयोग करने दिया और मैने निःसंकोच उसका उपयोग किया भी। सभा पाच्याप्पा हॉल में हुई थी और मेरा ख्याल हैं कि डॉ. सुब्रह्मण्यम उसके सभापति बने थे। मद्रास मे सबके साथ विशेषकर अंग्रेजी मे ही बोलना पड़ता था, फिर भी मैं बहुतो से इतना प्रेम और उत्साह पाया कि मुझे घर जैसा ही लगा। प्रेम किन बन्धनों के नही तोड़ सकता?

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति