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कसौटी पर चढ़े

आश्रम को कायम हुए अभी कुछ ही महीने बीते थे कि इतने मे जैसी कसौटी की मुझे आशा नही थी वैसी कसौटी हमारी हुई। भाई अमृतलाल ठक्कर का पत्र मिला , 'एक गरीब और प्रामाणिक अंत्यज परिवार है। वह आपके आश्रम मे रहना चाहता है। क्यो उसे भरती करेंगे ?'

मै चौका। ठक्करबापा जैसे पुरुष की सिफारीश लेकर कोई अंत्यज परिवार इतनी जल्दी आयेगा, इसकी मुझे जरा भी आशा न थी। मैने साथियो को वह पत्र पढने के लिए दिया। उन्होने उसका स्वागत किया। भाई अमृतलाल ठक्कर को लिखा गया कि यदि वह परिवार आश्रम के नियमो का पालन करने को तैयार हो तो हम उसे भरती करने के लिए तैयार है।

दूदाभाई, उनकी पत्नी दानीबहन और दूध-पीती तथा घुटनो चलती बच्ची लक्ष्मी तीनो आये। दूदाभाई बंबई मे शिक्षक का काम करते थे। नियमो का पालन करने को वे तैयार थे उन्हें आश्रम मे रख लिया।

सहायक मित्र-मंडल मे खलबली मच गयी। जिस कुएँ के बगले के मालिक का हिस्सा था, उस कुएँ से पानी भरने मे हमे अड़चन होने लगी। चरसवाले पर हमारे पानी के छींटे पड़ जाते , तो वह भ्रष्ट हो जाता। उसने गालियाँ देना और दूदाभाई को सताना शुरु किया। मैने सबसे कह दिया कि गालियाँ सहते जाओ और ढृढता पूर्वक पानी भरते रहो। हमें चुपचाप गालियाँ सुनते देखकर चरसवाला शरमिन्दा हुआ और उसने गालियाँ देना बन्द कर दिया। पर पैसे की मदद बन्द हो गयी। जिन भाई ने आश्रम के नियमो का पालन करनेवाले अंत्यजो के प्रवेश के बारे मे पहले से ही शंका की थी, उन्हें तो आश्रम मे अंतज्य के भरती होने की आशा ही न थी। पैसे की मदद बन्द होने के साथ बहिष्कार की अफवाहें मेरे कानो तक आने लगी। मैने साथियो से चर्चा करके तय कर रखा था, 'यदि हमारा बहिष्कार किया जाय और हमे मदद न मिले , तो भी अब हम अहमदाबाद नही छोड़ेगे। अंतज्यो की बस्ती मे जाकर उनके साथ रहेंगे और कुछ मिलेगा उससे अथवा मजदूरी करके अपना निर्वाह करेंगे।'

आखिर मगललाल ने मुझे नोटिस दी, 'अगले महीने आश्रम का खर्च चलाने के लिए हमारे पास पैसे नही है। ' मैने धीरज से जवाब दिया , 'तो हम अंत्यजो की बस्ती मे रहने जायेंगे।'

मुझ पर ऐसा संकट पहली ही बार नही आया था। हर बार अंतिम घडी मे प्रभु ने मदद भेजी है।

मगललाल के नोटिस देने के बाद तुरन्त ही एक दिन सबेरे किसी लड़के न आकर खबर दी , 'बाहर मोटर खड़ी है और एक सेठ आपको बुला रहे है।' मै मोटर के पास गया। सेठ ने मुझ से पूछा ,'मेरी इच्छा आश्रम को कुछ मदद देने की है, आप लेंगे ?'

मैने जवाब दिया, 'अगर आप कुछ देंगे, तो मै जरूर लूँगा। मुझे कबूल करना चाहिये कि इस समय मै आर्थिक संकट मे भी हूँ।'

'मै कल इसी समय आऊँगा। तब आप आश्रम मे होगे ?'

मैने 'हाँ' कहा और सेठ चले गये। दूसरे दिन नियत समय पर मोटर का भोपूँ बोला। लड़को ने खबर दी। सेठ अन्दर नही आये। मै उनसे मिलने गया। वे मेरे हाथ पर तेरह हजार के नोट रखकर बिदा हो गये।

मैने इस मदद की कभी आशा नही रखी थी। मदद देने की यह रीति भी नई देखी। उन्होने आश्रम मे पहले कभी कदम नही रखा था। मुझे याद आता है कि मै उनसे एक ही बार मिला था। न आश्रम मे आना , न कुछ पूछना , बाहर ही बाहर पैसे देकर लौट जाना ! ऐसा यह मेरा पहली ही अनुभव था। इस सहायता के कारण अंत्यजो की बस्ती मे जाना रूक गया। मुझे लगभग एक साल का खर्च मिल गया। पर जिस तरह बाहर खलबली मची , उसी तरह आश्रम मे भी मची। यद्यपि दक्षिण अफ्रीका मे मेरे यहाँ अंत्यज आदि आते रहते थे और भोजन करते थे, तथापि यह नही कहा जा सकता कि यहाँ अंत्यज कुटुम्ब का आना मेरी पत्नी को और आश्रम की दूसरी स्त्रियो को पसन्द आया। दानीबहन के प्रति धृणा नही तो उनकी उदासीनता ऐसी थी, जिसे मेरी अत्यन्त सूक्ष्म आँखे देख लेती थी और तेज कान सुन लेते थे। आर्थिक सहायता के अभाव के डर ने मुझे जरा भी चिन्तित नही किया था। पर यह आन्तरिक क्षोभ कठिन सिद्ध हुआ। दानीबहन साधारण स्त्री थी। दूदाभाई की शिक्षा भी साधारण थी , पर उनकी बुद्धि अच्छी थी। उनकी धीरज मुझे पसन्द आता था। उन्हें कभी-कभी गुस्सा आता था , पर कुल मिलाकर उनकी सहन-शक्ति की मुझ पर अच्छी छाप पड़ी थी। मै दूदाभाई को समझाता था कि वे छोटे-मोटे अपमान पी लिया करे। वे समझ जाते थे और दानीबहन से भी सहन करवाते थे।

इस परिवार को आश्रम मे रखकर आश्रम ने बहुतेरे पाठ सीखे है और प्रारंभिक काल मे ही इस बात के बिल्कुल स्पष्ट हो जाने से कि आश्रम मे अस्पृश्यता का कोई स्थान नही है , आश्रम की मर्यादा निश्चित हो गयी और इस दिशा मे उसका काम बहुत सरल हो गया। इसके बावजूद , आश्रम का खर्च, बराबर बढ़ता रहने पर भी, मुख्यतः कट्टर माने जाने वाले हिन्दुओ की तरफ से मिलता रहा है। कदाचित् यह इस बात का सूचक है कि अस्पृश्यता की जड़े अच्छी तरह हिल गयी है। इसके दूसरे प्रमाण तो अनेको है। परन्तु जहाँ अंत्यज के साथ रोटी तक का व्यवहार रखा जाता है , वहाँ भी अपने को सनातनी मानने वाले हिन्दू मदद दे, यह कोई नगण्य प्रमाण नही माना जायगा।

इसी प्रश्न को लेकर आश्रम मे हुई एक और स्पष्टका, उसके सिलसिले मे उत्पन्न हुए नाजुक प्रश्नो का समाधान, कुछ अनसोची अड़चनो का स्वागत- इत्यादि सत्य की खोज के सिलसिले मे हुए प्रयोगो का वर्णन प्रस्तुत होते हुए भी मुझे छोड़ देना पड़ रहा है। इसका मुझे दुःख है। किन्तु अब आगे के प्रकरणो मे यह दोष रहने ही वाला है। मुझे महत्त्व के तथ्य छोड़ देने पड़ेगे , क्योकि उनमे हिस्सा लेने वाले पात्रो मे से बहुतेरे अभी जीवित है और उनकी सम्मति के बिना उनके नामो का और उनसे संबंध रखनेवाले प्रसंगो का स्वतंत्रता-पूर्वक उपयोग करना अनुचित मालूम होता है। समय-समय पर सबकी सम्मति मंगवाना अथवा उनसे सम्बन्ध रखनेवाले तथ्यों को उनके पास भेज कर सुधरवाना सम्भव नही है और यह आत्मकथा की मर्यादा के बाहर की बात है। अतएव इसके आगे की कथा यद्यपि मेरी दृष्टि से सत्य के शोधक के लिए जानने योग्य है, तथापि मुझे डर है कि वह अधूरी ही दी जा सकेंगी। तिस पर भी मेरी इच्छा और आशा यह है कि भगवान पहुँचने दे, तो असहयोग के युग तक मै पहुँच जाऊँ।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति