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मुकदमे की तैयारी

प्रिटोरिया मे मुझे जो एक वर्ष मिला, वह मेरे जीवन का अमूल्य वर्ष था। सार्वजनिक काम करने की अपनी शक्ति का कुछ अंदाज मुढे यहाँ हुआ। उसे सीखने का अवसर यहीं मिला। मेरी धार्मिक भावना अपने-आप तीव्र होने लगी। और कहना होगा कि सच्ची वकालत भी मै यहीं सीखा। नया बारिस्टर पुराने बारिस्टर के दफ्तर में रहकर जो बाते सीखता है, सो मैं यही सीख सका। यहाँ मुझमे यह विश्वास पैदा हुआ कि वकील के नाते मैं बिल्कुल नालायक नहीं रहूँगा। वकील बनने की कुंजी भी यहीं मेरे हाथ लगी।

दादा अब्दुल्ला का मुकदमा छोटा न था। चालीस हजार पौंड का यानी छह लाख रुपयों का दावा था। दावा व्यापार के सिलसिले मे था, इसलिए उसमे बही-खाते की गुत्थियाँ बहुत थी। दावे का आधार कुछ तो प्रामिसरी नोट पर और कुछ प्रामिसरी नोट लिख देने के वचन पलवाने पर था। बचाव यह था कि प्रामिसरी नोट धोखा देकर लिखवाये गये थे और उनका पूरा मुआवजा नहीं मिला था। इसमे तथ्य और कानून की गलियाँ काफी थी। बही-खाते की उलझनें भी बहुत थी।

दोनो पक्षो ने अच्छे से अच्छे सॉलिसिटर और बारिस्टर किये थे, इसलिए मुझे उन दोनो के काम का अनुभव मिला। सॉलिसिटर के लिए वादी का तथ्य संग्रह करने का सारा बोझ मुझ पर था। उसमें से सॉलिसिटर कितना रखता हैं और सॉलिसिटर द्वारा तैयार की गयी सामग्री का उपयोग करता हैं, सो मुझे देखने को मिलता था। मै समझ गया कि इस केस को तैयार करने मे मुझे अपनी ग्रहण शक्ति का और व्यवस्था -शक्ति का ठीक अंदाज हो जाएगा।

मैंने केस मे पूरी दिलचस्पी ली। मै उसमे तन्मय हो गया। आगे-पीछे के सब कागज पढ़ गया। मुवक्किल के विश्वास की और उसकी होशियारी की सीमा न थी। इससे मेरा काम बहुत आसान हो गया। मैने बारीकी से बही-खाते का अध्ययन कर लिया। बहुत से पत्र गुजराती मे थे। उनका अनुवाद भी मुझे ही करना पड़ता था। इससे मेरी अनुवाद करने की शक्ति बढी।

मैने कड़ा परिश्रम किया। जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूँ, धार्मिक चर्चा आदि में और सार्वजनिक काम नें मुझे खूब दिलचस्पी थी और मै उसमे समय भी देता था, तो भी वह मेरे निकट गौण थी। मुकदमे की तैयारी को मैं प्रधानता देता था। इसके लिए कानून का या दूसरी पुस्तको का अध्ययन आवश्यक होता, तो मै उसे हमेशा पहले कर लिया करता था। परिणाम यह हुआ कि मुकदमे के तथ्यों पर मुझे इतना प्रभुत्व प्राप्त हो गया जिनता कदाचित् वादी-प्रतिवादी को भी नही था, क्योकि मेरे पास तो दोनो के ही कागज पत्र रहते थे।

मुझे स्व. मि. पिकट के शब्द याद आये। उनका अधिक समर्थन बाद में दक्षिण अफ्रीका के सुप्रसिद्ध बारिस्टर स्व. मि. लेनर्ड ने एक अवसर पर किया था। मि. पिकट का कथन था, 'तथ्य तीन-चौथाई कानून हैं।' एक मुकदमे में मैं जानता था कि न्याय तो मुवक्किल की ओर ही हैं, पर कानून विरुद्ध जाता दीखा। मै निराश हो गया और मि. लेनर्ड की मदद लेने दौड़ा। तथ्य ती दृष्टि से केस उन्हे भी मजबूत मालूम हुआ। उन्होने कहा, 'गाँधी, मै एक बात सीखा हूँ, और वह यह कि यदि हम तथ्यों पर ठीक-ठीक अधिकार कर ले, तो कानून अपने आप हमारे साथ हो जायेगा। इस मुकदमे के तथ्य हम समझ ले।' यों कहकर उन्होंने मुझे एक बार फिर तथ्यों को पढ़-समझ लेने और बाद मे मिलने की सलाह दी। उन्हीं तथ्यों को फिर जाँचने पर, उनका मनन करने पर मैने उन्हें भिन्न रुप में समझा और उनसे सम्बन्ध रखने वाले एक पुराने मुकदमे का भी पता चला, जो दक्षिण अफ्रीका में चला था। मैं हर्ष-विभोर होकर मि. लेनर्ड के यहाँ पहुँचा। वे खुश हुए और बोले, 'अच्छा, यह मुकदमा हम जरुर जीतेंगे। जरा इसका ध्यान रखना होगा कि मामला किस जज के सामने चलेगा।'

दादा अब्दुल्ला के केस की तैयारी करते समय मैं तथ्य की महिमा को इस हद तक नहीं पहचान सका था। तथ्य का अर्थ है, सच्ची बात। सचाई पर डटे रहने से कानून अपने-आप हमारी मदद पर आ जाते हैं।

अन्त मैने दादा अब्दुल्ला के केस में यह देख लिया था कि उनका पक्ष मजबूत हैं। कानून को उनकी मदद करनी ही चाहिये।

पर मैने देखा कि मुकदमा लड़ने मे दोनो पक्ष, जो आपस में रिश्तेदार हैं और एक ही नगर के निवासी हैं, बरबाद हो जायेंगे। कोई कर नही सकता था कि मुकदमे का अन्त कब होगा। अदालत मे चलता रहे, तो उसे जितना चाहो उतना लम्बा किया जा सकता था। मुकदमे को लम्बा करने मे दो मे से किसी पक्ष का भी लाभ न होता। इसलिए संभव हो तो दोनो पक्ष मुकदमे का शीध्र अन्त चाहते थे।

मैंने तैयब सेठ से बिनती की। झगडे को आपस में ही निबटा लेने की सलाह दी। उन्हें अपने वकील से मिलने को कहा। यदि दोनो पक्ष अपने विश्वास के किसी व्यक्ति को पंच चुन ले, तो मामला झटपट निबट जाये। वकीलो का खर्च इतना अधिक बढ़ता जा रहा था कि उसमे उनके जैसे बड़े व्यापारी भी बरबाद हो जाते। दोनो इतनी चिन्ता के साथ मुकदमा लड़ रहे थे कि एक भी निश्चिन्त होकर दूसरा कोई काम नहीं कर सकता था। इस बीच आपस में बैर भी बढ़ता ही जा रहा था। मुझे वकील के धंधे से धृण हो गयी। वकील के नाते तो दोनों वकीलो को अपने-अपने मुवक्किल को जीतने के लिए कानून की गलियाँ ही खोज कर देनी था। इस मुकदमे मे पहले-पहल मैं यह जाना कि जीतने वालो को भी पूरा खर्च कभी मिल ही नही सकता। दूसरे पक्ष से कितना खर्च बसूल किया जा सकता हैं, इसकी एक मर्यादा होती हैं, जब कि मुवक्किल का खर्च उससे कही अधिक होता हैं। मुझे यह सब असह्य मालूम हुआ। मैने तो अनुभव किया कि मेरा धर्म दोनो की मित्रता साधना और दोनो रिश्तेदारों में मेल करा देना है। मैने समझौते के लिए जी-तोड़ मेहनत की। तैयब सेठ मान गये। आखिर पंच नियुक्त हुए। उनके सामने मुकदमा चला। मुकदमे मे दादा अब्दुल्ला जीते।

पर इतने से मुझे संतोष नही हुआ। यदि पंच के फैसले पर अमल होता, तो तैयब हाजी खानमहम्मद इतना रुपया एक साथ दे ही नहीं सकते थे। दक्षिण अफ्रीका में बसे हुए पोरबन्दर मे मेमनों मे आपस का ऐसा एक अलिखित नियम था कि खुद चाहे मर जाये . पर दिवाला न निकाले। तैयब सेठ सैतींस हजार पौंड एक मुश्त दे ही नही सकते थे। उन्हे न तो एक दमड़ी कम देनी थी और न दिवाला ही निकालना था। रास्ता एक ही था कि दादा अब्दुल्ला उन्हे काफी लम्बी मोहलत दे। दादा अब्दुल्ला ने उदारता से काम लिया और खूब लम्बी मोहलत दे दी। पंच नियुक्त कराने में मुझे जितनी मेहनत पड़ी, उससे अधिक मेहनत यह लम्बी अवधि निश्चित कराने मे पड़ी। दोनो पक्षो को प्रसन्नता हुई। दोनो की प्रतिष्ठा बढी। मेरे संतोष की सीमा न रही। मैं सच्ची वकालत सीखा, मनुष्य के अच्छे पहलू को खोचना सीखा और मनुष्य हृदय मे प्रवेश करना सीखा। मैंने देखा कि वकील का कर्तव्य दोनो पक्षो के बीच खुदी हुई खाई को पाटना हैं। इस शिक्षा ने मेरे मन मे ऐसी जड़ जमायी कि बीस साल की अपनी वकालत का मेरा अधिकांश समय अपने दफ्तर में बैठकर सैकड़ो मामलो को आपस मे सुलझाने मे ही बीता। उसमे मैने कुछ खोया नही। यह भी नही कहा जा सकता कि मैंने पैसा खोया। आत्मा तो खोयी ही नही।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति