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पहली रात

फीनिक्स में 'इंडियन ओपीनियन' का पहला अंक निकालना सरल सिद्ध न हुआ। यदि मुझे दो सावधानियाँ न सूझी होती तो अंक एक सप्ताह बंद रहता अथवा देर से निकलता। इस संस्था मे एंजिन से चलने वाली मशीनें लगाने का मेरा कम ही विटार था। भावना यह थी जहाँ खेती भी हाथ से करनी है वहाँ अखबार भी हाथ से चल सकनेवाले यंत्रों की मदद से निकले तो अच्छा हो। पर इस बार ऐसा प्रतीत हुआ कि यह हो न सकेगा। इसलिए वहाँ ऑइल एंजिन ले गये थे। किन्तु मैने वेस्ट को सुझाया था कि इस तैल-यंत्र बिगड़ने पर दूसरी कोई भी कामचलाऊ शक्ति हमारे पास हो तो अच्छा रहे। अतएव उन्होने हाथ से चलाने की व्यवस्था कर ली थी। इसके अलावा, हमारे अखबार का कद दैनिक पत्र के समान था। बड़ी मशीन के बिगडने पर उसे तुरन्त सुधार सकने की सुविधा यहाँ नही थी। इससे भी अखबार का काम रुक सकता था। इस कठिनाई से बचने के लिए उसका आकार बदलकर साधारण साप्ताहिक के बराबर कर दिया गया , जिससे अड़चन के समय ट्रेडल पर पैरो की मदद से कुछ पृष्ट छापे जा सके।

शुरु के दिनों मे 'इंडियन ओपीनियन' ओपीनियन प्रकाशित होने के दिन की पहली रात को तो सबका थोड़ा बहुत जागरण हो ही जाता था। कागज भाँजने के काम मे छोटे बडे सभी लग जाते थे और काम रात को दस बारह बजे पूरा होता था। पहली रात तो ऐसी बीती कि वह कभी भूल नही सकती। फर्मा मशीन पर कर दिया गया , पर एंजिन चलने से इनकार करने लगा ! एंजिन को बैठाने और चलाने के लिए एक इंजीनियर बुलाया गया था। उसने और वेस्ट ने बहुत मेहनत की , पर एंजिन चलता ही न था। सब चिन्तित हो गये। आखिर वेस्ट ने निराश होकर डबडबायी आँखो से मेरे पास आये और बोले , 'अब आज एंजिन चलता नजर नही आता और इस सप्ताह हम लोग समय पर अखबार नही निकाल सकेंगे।'

'यदि यही बात हैं तो हम लाचार है। आँसू बहाने का को कारण नही हैं। अब भी कोई प्रयत्न हो सकता हो तो हम करके देखे। पर आपके उस हाथ चक्र का क्या हुआ  ? ' यह कहकर मैने उन्हें आश्वासन दिया।

वेस्ट बोले , 'उसे चलाने के लिए हमारे पास आदमी कहाँ है ? हम जितने लोग यहाँ है उतनो से वह चल नही सकता , उसे चलाने के लिए बारी बारी से चार चार आदमियों की आवश्यकता है। हम सब तो थक चुके है।'

बढइयो का काम अभी पूरा नहीं हुआ था। इससे बढई अभी गये नही थे। छापाखाने मे ही सोये थे। उनकी ओर इशारा करके मैने कहा, 'पर ये सब बढई तो है न ? इनका उपयोग क्यो न किया जाय ? और आज की रात हम सब अखंड जागरण करे। मेरे विचार मे इतना कर्तव्य बाकी रह जाता है।'

'बढइयों को जगाने और उनकी मदद माँगने की मेरी हिम्मत नही होती , और हमारे थके हुए आदमियो से कैसे कहा जाये ?'

मैने कहा, 'यह मेरा काम है।'

'तो संभव है, हम अपना काम समय पर पूरा कर सके।'

मैने बढइयों को जगाया और उनकी मदद माँगी। मुझे उन्हे मनाना नही पड़ा। उन्होने कहा, 'यदि ऐसे समय भी हम काम न आये , तो हम मनुष्य कैसे ? आप आराम कीजिये , हम चक्र चला लेंगे। हमे इसमे मेहनत नहीं मालूम होगी।'

छापाखाने के लोग तो तैयार थे ही।

वेस्ट के हर्ष का पार न रहा। उन्होने काम करते हुए भजन गाना शुरु किया। चक्र चलाने मे बढइयों की बराबरी में मैं खड़ा हुआ औऱ दुसरे सब बारी बारी से खड़े हुए। काम निकलने लगा। सुबह के लगभग सात बजे होगे। मैने देखा कि काम अभी काफी बाकी है। मैने वेस्ट से कहा, 'क्या अब इजीनियर को जगाया नहीं जा सकता ? दिन के उजेले मे फिर से मेहनत करे तो संभव है कि एंजिन चलने लगे और हमारा काम समय पर पूरा हो जाय।'

वेस्ट ने इंजीनियर को जगाया। वह तुरन्त उठ गया और एंजिन घक मे धुस गया। छूते ही एंजिन चलने लगा। छापाखाना हर्षनाद से गूँज उठा। मैने कहा, 'ऐसा क्यो होता है ? रात मे इतनी मेहनत करने पर भी नही चला और अब मानो कोई दोष न हो इस तरह हाथ लगाते ही चलने लग गया !'

वेस्ट ने अथवा इंजीनियर ने जवाब दिया, 'इसका उत्तर देना कठिन हैं। कभी कभी यंत्र भी ऐसा बरताव करते पाये जाते है , मानो हमारी तरह उन्हें भी आराम की आवश्यकता हो !'

मेरी तो यह धारणा रही कि एंजिन का न चलना हम सब की एक कसौटी थी और ऐन मौके पर उसका चल पडना शुद्ध परिश्रम का शुद्ध फल था। अखबार समय से स्टेशन पर पहुँच गया और हम सब निश्चित हुए।

इस प्रकार के आग्रह का परिणाम यह हुआ कि अखबार की नियमितता की धाक जम गयी और फीनिक्स के परिश्रम का वातावरण बना। इस संस्था मे एक ऐसा भी युग आया कि जब विचार पूर्वक एंजिन चलाना बन्द किया गया और ढृढता पूर्वक चक्र से ही काम लिया गया। मेरे विचार मे फीनिक्स का वह ऊँचे से ऊँचा नैतिक काल था।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति