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गोखले की उदारता

विलायत मे मुझे पसली की सूजन की जो शिकायत हुई थी, उसकी बात मै कर चुका हूँ। इस बीमारी के समय गोखले विलायत आ चुके थे। उनके पास मै और केलनबैक हमेशा जाया करते थे। अधिकतर लड़ाई की ही चर्चा होती थी। कैलनबैक दो जर्मनी का भूगोल कंठाग्र था और उन्होने यूरोप की यात्रा भी खूब की थी। इससे वे गोखले को नकशा खींचकर लड़ाई के मुख्य स्थान बताया करते थे।

जब मै बीमार पड़ा तो मेरी बीमारी भी चर्चा का एक विषय बन गयी। आहार के मेरे प्रयोग तो चल ही रहे थे। उस समय का मेरा आहार मूंगफली, कच्चे और पक्के केले, नींबू, जैतून का तेल, टमाटर और अंगूर आदि का था। दूध , अनाज, दाल आदि मै बिल्कुल न लेता था। डॉ. जीवराज मेहता मेरी सार-संभाल करते थे। उन्होने दूध और अन्न लेने का बहुत आग्रह किया। शिकायत गोखले तर पहुँची। फलाहार की मेरी दलील के बारे मे उन्हें बहुत आदर न था, उनका आग्रह यह था कि आरोग्य की रक्षा के लिए डॉक्टर जो कहे सो लेना चाहिये।

गोखले को आग्रह को ठुकराना मेरे लिए बहुत कठिन था। जब उन्होंने खूब आग्रह किया, तो मैने विचार के लिए चौबीस घंटो का समय माँगा। केलनबैक और मै दोनो घर आये। मार्ग मे अपने धर्म विषय मे मैने चर्चा की। मेरे प्रयोग मे वे साथ थे। उन्हे प्रयोग अच्छा लगता था। पर अपनी तबीयत के लिए मै उसे छोडूँ तो ठीक हो, ऐसी उनकी भी भावना मुझे मालूम हुई। इसलिए मुझे स्वयं ही अन्तर्नाद का पता लगाना था।

सारी रात मैने सोच-विचार मे बितायी। यदि समूचे प्रयोग को छोड़ देता, तो मेरे किये हुए समस्त विचार मिट्टी मे मिल जाते। उन विचारो मे मुझे कही भी भूल नही दिखायी देती थी। प्रश्न यह था कि कहाँ तक गोखले के प्रेम के वश होना मेरा धर्म था , अथवा शरीर-रक्षा के लिए ऐसे प्रयोगो को किस हद तक छोडना ठीक था। इसलिए मैने निश्चय किया कि इन प्रयोगो मे से जो प्रयोग केवल धर्म की दृष्टि से चल रहा है , उस पर ढृढ रहकर दूसरे सब मामलो मे डॉक्टर के कहे अनुसार चलना चाहिये।

दूध के त्याग मे धर्म-भावना की स्थान मुख्य था। कलकत्ते मे गाय-भैस पर होने वाली दुष्ट क्रियाएँ मेरे सामने मूर्तिमंत थी। माँस की तरह पशु का दूध भी मनुष्य का आहार नही है , यह बात भी मेरे सामने थी। इसलिए दूध के त्याग पर डटे रहने का निश्चय करके मै सबेरे उठा। इतने निश्चय से मेरा मन बहुत हलका हो गया। गोखले का डर था, पर मुझे यह विश्वास था कि वे मेरे निश्चय का आदर करेंगे।

शाम को नेशनल लिबरल क्लब मे हम उनसे मिलने गये। उन्होने तुरन्त ही प्रश्न किया , 'क्यो डॉक्टर का कहना मानने का निश्चय कर लिया न?'

मैने धीरे से जवाब दिया , 'मै सब कुछ करूँगा, किन्तु आप एक चीज का आग्रह न कीजिये। मै दूध और दूध के प्रदार्थ अथवा माँसाहार नही लूँगा। उन्हें न लेने से देहपात होता हो, तो वैसा होने देने मे मुझे धर्म मालूम होता है।'

गोखले ने पूछा, 'यह आपका अंतिम निर्णय है ?'

मैने जवाब दिया, 'मेरा ख्याल है कि मै दूसरा जवाब नही दे सकता। मै जानता हूँ कि इससे आपको दुःख होगा , पर मुझे क्षमा कीजिये।'

गोखले मे कुछ दुःख से परन्तु अत्यन्त प्रेम से कहा, 'आपका निश्चय मुझे पसन्द नही है। इसमे मै धर्म नही देखता। पर अब मै आग्रह नही करूँगा।' यह कहकर वे डॉ. जीवराज मेहता की ओर मुड़े और उनसे बोले, 'अब गाँधी को तंग मत कीजिये। उनकी बतायी हुई मर्यादा मे उन्हे जो दिया जा सके , दीजिये।'

डॉक्टर मे अप्रसन्नता प्रकट की , लेकिन वे लाचार हो गये। उन्होने मुझे मूंग का पानी लेने की सलाह दी औऱ उसमे हींग का बघार देने को कहा। मैने इसे स्वीकार कर लिया। एक-दो दिन वह खुराक ली। उससे मेरी तकलीफ बढ़ गयी। मुझे वह मुआफिक नही आयी। अतएव मै फिर फलाहार पर आ गया। डॉक्टर ने बाहरी उपचार तो किये ही। उससे थोडा आराम मिलता था। पर मेरी मर्यादाओ से वे बहुत परेशान थे। इस बीच लंदन का अक्तूबर-नवम्बर का कुहरा सहन न कर सकने के कारण गोखले हिन्दुस्तान जाने को रवाना हो गये।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति