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आश्रम की झांकी

मजदूरो की बात को आगे बढाने से पहले यहाँ आश्रम की झाँकी कर लेना आवश्यक है। चम्पारन मे रहते हुए भी मैं आश्रम को भूल नही सकता था। कभी कभी वहाँ हो भी आता था।

कोचरब अहमदाबाद के पास एक छोटा सा गाँव है। आश्रम का स्थान इस गाँव मे था। कोचरब मे प्लेग शुरू हुआ। आश्रम के बालको को मै उइस बस्ती के बीच सुरक्षित नही रख सकता था। स्वच्छता के नियमो का अधिक से अधिक सावधानी से पालन करने पर भी आसपास की अस्वच्छता से आश्रम को अछूता रखना असमभव था। कोचरब के लोगो से स्वच्छता के नियमों का पालन कराने की अथवा ऐसे समय उनकी सेवा करने की हममे शक्ति नही थी , हमारा आदर्श तो यह था कि आश्रम को शहर या गाँव से अलग रखे , फिर भी वह इतना दूर न हो कि वहाँ पहुँचने मे बहुत कठिनाई हो। किसी न किसी दिन तो आश्रम को आश्रम के रूप मे सुशोभित होने से पहले अरनी जमीन पर खुली जगह मे स्थिर होना ही था।

प्लेग को मैने कोचरब छोड़ने की नोटिस माना। श्री पूंजाभाई हीराचन्द आश्रम के साथ बहुत निकट का सम्बन्ध रखते थे और आश्रम की छोटी बड़ी सेवा शुद्ध और निरभिमान भाव से करते थे। उन्हें अहमदाबाद के कारबारी जीवन का व्यापक अनुभव था। उन्होंने आश्रम के लिए जमीन खोज तुरन्त ही कर लेने का बीड़ा उठाया। कोचरब के उत्तर दक्षिण के भाग मे मैं उनके साथ घूमा। फिर उत्तर की ओर तीन चार मील दूर कोई टुक़डा मिल जाय तो उसका पता लगाने की बात मैने उनसे कही। उन्होंने आज की आश्रमवाली जमीन का पता लगा लिया। वह जेल के पास है , यह मेरे लिए खास प्रलोभन था। सत्याग्रह आश्रम मे रहने वाले के भाग्य मे जेल तो लिखा ही होता है। अपनी इस मान्यता के कारण जेल का पड़ोस मुझे पसन्द आया। मै यह तो जानता ही था कि जेल के लिए हमेशा वही जगह पसन्द की जाती है जहाँ आसपास स्वच्छ स्थान हो।

कोई आठ दिन के अन्दर ही जमीन का सौदा तय कर लिया। जमीन पर न तो कोई मकान था, न कोई पेड़। जमीन के हक मे नदी का किनारा और एकान्त ये दो बड़ी सिफारिशे थी। हमने तम्बुओ मे रहने का निश्चय किया और सोचा कि रसोईघर के लिए टीन का एक कामचलाऊ छप्पर बाँध लेंगे और धीरे धीरे स्थायी मकान बनाना शुरू कर देंगे।

इस समय आश्रम की बस्ती बढ गयी थी। लगभग चालीस छोटे-बढे स्त्री-पुरुष थे। सुविधा यह थी कि सब एक ही रसोईघर मे खाते थे। योजना का कल्पना मेरी थी। उसे अमली रूप देने का बोझ उठाने वाले तो नियमानुसार स्व. मगललाल गाँधी ही थे।

स्थायी मकान बनने से पहले की कठिनाइयों का पार न था। बारिश का मौसम सामने था। सामान सब चार मील दूर शहर से लाना होता था। इस निर्जन भूमि मे साँप आदि हिंसक जीव तो थे ही। ऐसी स्थिति मे बालको की सार सँभाल को खतरा मामूली नही था। रिवाज यह था कि सर्पादि को मारा न जाय लेकिन उनके भय से मुक्त तो हममे से कोई न था , आज भी नही है।

फीनिक्स, टॉल्सटॉय फार्म और साबरमती आश्रम तीनो जगहों मे हिंसक जीवो को न मारने का यथाशक्ति पालन किया गया है। तीनो जगहों मे निर्जन जमीने बसानी पड़ी थी। कहना होगा कि तीनो स्थानो में सर्पादि का उपद्रव काफी था। तिस पर भी आज तक एक भी जान खोनी नही पड़ी। इसमे मेरे समान श्रद्धालु को तो ईश्वर के हाथ का , उसकी कृपा का ही दर्शन होता है। कोई यह निरर्थक शंका न उठावे कि ईश्वर कभी पक्षपात नही करता , मनुष्य के दैनिक कामो मे दखल देने के लिए यह बेकार नहीं बैठा है। मै इस चीज को, इस अनुभव को , दूसरी भाषा मे रखना नही जानता। ईश्वर की कृति को लौकिक भाषा मे प्रकट करते हुए भी मैं जानता हूँ कि उसका 'कार्य' अवर्णनीय है। किन्तु यदि पामर मनुष्य वर्णन करने बैठे तो उसकी अपनी तोतली बोली ही हो सकती है। साधारणतः सर्पादि को न मारने पर भी आश्रम समाज के पच्चीस वर्ष तक बचे रहने का संयोग मानने के बदले ईश्वर की कृपा मानना यदि वहम हो , तो वह वहम भी बनाये रखने जैसा है।

जब मजदूरो की हड़ताल हुई , तब आश्रम की नींव पड़ रही थी। आश्रम का प्रधान प्रवृत्ति बुनाई काम की थी। कातने की तो अभी हम खोज ही नही कर पाये थे। अतएव पहले बुनाईघर बनाने का निश्चय किया था। इससे उसकी नींव चुनी जा रही थी।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति