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ग्राम-प्रवेश

प्रायः प्रत्येक पाठशाला मे एक पुरुष और एक स्त्री की व्यवस्था की गयी थी। उन्हीं के द्वारा दवा और सफाई के काम करने थे। स्त्रियो की मारफत स्त्री-समाज मे प्रवेश करना था। दवा का काम बहुत सरल बना दिया था। अंडी का तेल, कुनैन और एक मरहम -- इतनी ही चीजें प्रत्येक पाठशाला मे रखी जाती थी। जाँचने पर जीभ मैली दिखाई दे और कब्ज की शिकायत हो तो अंड़ी का तेल पिला देना। बुखार की शिकायत हो तो अंडी का तेल देने के बाद आने वाले को कुनैन पिला देना। और अगर फोड़े हो तो उन्हे धोकर उनपर मरहम लगा देना। खाने की दवा अथवा मरहम के साथ ले जाने के लिए शायद ही दिया जाता था। कही कोई खतरनाक या समझ मे न आनी वाली बीमारी होती , तो वह डॉ. देव को दिखाने के लिए छोड़ दी जाती। डॉ. देव अलग-अलग जगह मे नियत समय पर हो आते थे। ऐसी सादी सुविधा का लाभ लोग ठीक मात्रा मे उठाने लगे थे। आम तौर से होने वाली बीमारियो थोडी ही है और उनके लिए बड़े-बड़े विशारदो की आवश्यकता नही होती। इसे ध्यान मे रखा जाय , तो उपर्युक्त रीति से की गयी व्यवस्था किसी को हास्यजनक प्रतीत नही होगी। लोगो को तो नही ही हुई।

सफाई का काम कठिन था। लोग गंदगी दूर करने के लिए तैयार नही थे। जो लोग गोज खेतो की मजदूरी करते थे वे भी अपने हाथ से मैला साफ करने के लिए तैयार न थे। डॉ. देव हार मान लेनेवाले आदमी न थे। उन्होने और स्वयंसेवको ने अपने हाथ से एक गाँव की सफाई की , लोगो के आंगनो से कचरा साफ किया, कुओ के आसपास के गड्ढे भरे, कीचड़ निकाला और गाँववालो को स्वयंसेवक देने की बात प्रेम-पूर्वक समझाते रहे। कुछ स्थानो मे लोगो ने शरम मे पड़कर काम करना शुरू किया और कहीं-कहीं तो लोगो ने मेरी मोटर आने-जाने के लिए अपनी मेहनत से सड़के भी तैयार कर दी। ऐसे मीठे अनुभवो के साथ ही लोगो की लापरवाही के कड़वे अनुभव भी होते रहते थे। मुझे याद है कि कुछ जगहो मे लोगो ने अपनी नाराजी भी प्रकट की थी।

इस अनुभवो मे से एक, जिसका वर्णन मैने स्त्रियो की कई सभाओ मे किया है, यहाँ देना अनुचित न होगा। भीतिहरवा एक छोटा से गाँव था। उसके पास उससे भी छोटा एक गाँव था। वहाँ कुछ बहनो के कपड़े बहुत मैले दिखायी दिये। इन बहनो को कपड़े बदलने के बारे मे समझाने के लिए मैने कस्तूरबाई से कहा। उसने उन बहनो से बात की। उनमे से एक बहन कस्तूरबाई को अपनी झोंपड़ी मे ले गयी और बोली , 'आप देखिये, यहाँ कोई पेटी या आलमारी नही है कि जिसमे कपड़े बन्द हो। मेरे पास यही एक साड़ी है , जो मैने पहन रखी है। इसे मै कैसे धो सकती हूँ ? महात्माजी से कहिये कि वे कपड़े दिलवाये। उस दशा मे मै रोज नहाने और कपडे बदलने को तैयार रहूँगी।' हिन्दुस्तान मे ऐसे झोपडो मे साज-सामान , संदूक-पेटी , कपड़े लत्ते, कुछ नही होते और असंख्य लोग केवल पहने हुए कपड़ो पर ही अपना निर्वाह करते है।

एक दूसरा अनुभव भी बताने-जैसा है। चम्पारन मे बास या घास की कमी नही रहती। लोगो ने भीतिहरवा मे पाठशाला का जो छप्पर बनाया था , वह बांस और घास का था। किसी ने उसे रात को जला दिया। सन्देह तो आसपास के निलहो के आदमियो पर हुआ था। फिर से बांस और घास का मकान बनाना मुनासिब मालूम नही हुआ। यह पाठशाला श्री सोमण और कस्तूरबाई के जिम्मे थी। श्री सोमण ने ईटों का पक्का मकान बनाने का निश्चय किया और उनके स्वपरिश्रम की छूत दूसरो को लगी , जिससे देखते-देखते ईटो का मकान तैयार हो गया और फिर से मकान के जलजाने का डर न रहा।

इस प्रकार पाठशाला , सफाई और औषधोपचार के कामो से लोगो मे स्वयंसेवको के प्रति विश्वास और आदर की वृद्धि हुई औऱ उन पर अच्छा प्रभाव पड़ा।

पर मुझे खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस काम को स्थायी रूप देने का मेरा मनोरथ सफल न हो सका। जो स्वयंसेवक मिले थे , वे एक निश्चित अवधि के लिए ही मिले थे। दूसरे नये स्वयंसेवको को मिलने मे कठिनाई हुई और बिहार से इस काम के लिए योग्य सेवक न मिल सके। मुझे भी चम्पारन का काम पूरा होते-होते एक दूसरा काम, जो तैयार हो रहा था, घसीट ले गया। इतने पर भी छह महीनो तक हुए इस काम ने इतनी जड़ पकड ली कि एक नही तो दूसरे स्वरूप मे उसका प्रभाव आज तक बना हुआ है।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति