Get it on Google Play
Download on the App Store

वह सप्ताह!-2

मै कमिश्नर ग्रिफिथ साहब के कार्यालय मे गया। उनकी सीढी के पास जहाँ देखा वहीं हथियारबन्द सैनिको को बैठा पाया, मानो लड़ाई के लिए तैयार हो रहे हो ! बरामदे मे भी हलचल मची हुई थी। मै खबर देकर ऑफिस मे पैठा , तो देखा कि कमिश्नर के पास मि. बोरिंग बैठे हुए है।

मैने कमिश्नर से उस दृश्य का वर्णन किया , जिसे मै अभी -अभी देखकर आया था। उन्होने संक्षेप मे जवाब दिया , ' मै नही चाहता था कि जुलूस फोर्ट की ओर जाये। वहाँ जाने पर उपद्रव हुए बिना न रहता। और मैने देखा कि लोग लौटाये लौटनेवाले न थे। इसलिए सिवा घोड़े दौड़ाने के मेरे पास दूसरा कोई उपाय न था।'

मैने कहा, 'किन्तु उसका परिणाम तो आप जानते थे। लोग घोडो के पैरा तले दबने से बच नही सकते थे। मेरा तो ख्याल है कि घुडसवारो की टुकड़ी भेजने की आवश्यकता ही नही थी।'

साहब बोले, 'आप इसे समझ नही सकते। आपकी शिक्षा का लोगो पर क्या असर हुआ है , इसका पता आपकी अपेक्षा हम पुलिसवालो को अधिर रहता है। हम पहले से कड़ी कार्रवाई न करे, तो अधिक नुकसान हो सकता है। मै आपसे कहता हूँ कि लोग आपके काबू मे भी रहने वाले नही है। वे कानून को तोड़ने की बात तो झट समझ जायेगे समझ जायेगे , लेकिन शान्ति की बात समझना उनकी शक्ति से परे है। आपके हेतु अच्छे है, लेकिन लोग उन्हें समझेगे नही। वे तो अपने स्वभाव का ही अनुकरण करेगे।'

मैने जवाब दिया ,' किन्तु आपके और मेरे बीच जो भेद है , सो इसी बात मे है। मै कहता हूँ कि लोग स्वभाव से लड़ाकू नही, बल्कि शान्तिप्रिय है।'

हममे बहस होने लगी।

आखिर साहब ने कहा , 'अच्छी बात है , यदि आपको विश्वास हो जाये कि लोग आपकी शिक्षो को समझे नही है , तो आप क्या करेगे?'


मैने उत्तर दिया, 'यदि मुझे इसका विश्वास हो जाय तो मै इस लड़ाई को मुलतवी कर दूँगा।'

'मुलतवी करने का मतलब क्या ? आपने तो मि. बोरिंग से कहा है कि मुक्त होने पर आप तुरन्त वापस पंजाब जाना चाहते है!'

'हाँ, मेरा इरादा तो लौटती ट्रेन से ही वापस जाने का था, पर अब आज तो जाना हो ही नही सकता।'

'आप धैर्य से काम लेगे तो आपको और अधिक बाते मालूम होगी। आप जानते है, अहमदाबाद मे क्या हो रहा है ? अमृतसर मे क्या हुआ है ? लोग सब कहीं पागल से हो गये है। कई स्थानो मे तार टूटे है। मै तो आपसे कहता हुँ कि इस सारे उपद्रव की जवाबदेही आपके सिर पर है।'

मैने कहा , 'मुझे जहाँ अपनी जिम्मेदारी महसूस होगी , वहाँ मै उसे अपने ऊपर लिये बिना नही रहूँगा। अहमदाबाद मे तो लोग थोडा भी उपद्रव करे तो मुझे आश्चर्य और दुःख होगा। अमृतसर के बारे मे मै कुछ भी नही जानता हूँ कि पंजाब की सरकार मे मुझे वहाँ जाने से रोका न होता, तो मै शान्ति रक्षा मे बहुत मदद कर सकता था। मुझे रोक कर तो सरकार ने लोगो को चिढाया ही है।'

इस तरह हमारी बातचीत होती रही। हमारे मन को मेल मिलने वाला न था। मै यह कहकर बिदा हुआ कि चौपाटी पर सभा करने और लोगो को शान्ति रखने के लिए समझाने का मेरा इरादा है।

चौपाटी पर सभा हुई। मैने लोगो को शान्ति और सत्याग्रह की मर्यादा के विषय मे समझाया और बतलाया , 'सत्याग्रह सच्चे का हथियार है। यदि लोग शान्ति न रखेगे , तो मै सत्याग्रह की लड़ाई कभी लड़ न सकूँगा।'

अहमदाबाद से श्री अनसूयाबहन को भी खबर मिल चुकी थी कि उपद्रव हुआ है। किसी ने अफवाह फैला दी थी कि वे भी पकड़ी गयी है। उससे मजदूर पागल हो उठे थे। उन्होंने हड़ताल कर दी थी , उपद्रव भी मचाया , और एक सिपाही का खून भी हो गया था।

मै अहमदाबाद गया। मुझे पता चला कि नड़ियाद के पास रेल की पटरी उखाडने की कोशिश भी हुई थी। वीरगाम मे एक सरकारी कर्मचारी का खून हो गया था। अहमदाबाद पहुँचा तब वहाँ मार्शल लॉ जारी था। लोगो मे आतंक फैला हुआ था। लोगो ने जैसा किया वैसा पाया और उसका ब्याज भी पाया।

मुझे कमिश्नर मि. प्रेट के पास ले जाने के लिए एक आदमी स्टेशन पर हाजिर था। मै उसके पास गया। वे बहुत गुस्से मे थे। मैने उन्हें शान्ति से उत्तर दिया। जो हत्या हुई थी उसके लिए मैने खेद प्रकट किया। यह भी सुझाया कि मार्शल लॉ की आवश्यकता नही है , और पुनः शान्ति स्थापति करने के लिए जो उपवास करने जरूरी हो , सो करने की अपनी तैयारी बतायी। मैने आम सभा बुलाने की माँग की। यह सभा आश्रम की भूमि पर करने की अपनी इच्छा प्रकट की। उन्हे यह बात अच्छी लगी। जहाँ तक मुझे याद है, मैने रविवार ता. 13 अप्रैल को सभा की था। मार्शल लॉ भी उसी दिन अथवा अगले दिन रद्द हुआ था। इस सभा मे मैने लोगो को उनके दोष दिखाने का प्रयत्न किया। मैने प्रायश्चित के रूप मे तीन दिन के उपवास किये और लोगो को एक उपवास करने की सलाह दी। जिन्होने हत्या वगैरा मे हिस्सा लिया हो, उन्हें मैने सुझाया कि वे अपना अपराध स्वीकार कर लें।

मैने अपना धर्म स्पष्ट देखा। जिन मजदूरो आदि के बीच मैने इतना समय बिताया था , जिनकी मैने सेवा की थी और जिनके विषय मे मै अच्छे व्यवहार की आशा रखता था , उन्होने उपद्रव मे हिस्सा लिया, यह मुझे असह्य मालूम हुआ और मैने अपने को उनके दोष मे हिस्सेदार माना।

जिस तरह मैने लोगो को समझाया कि वे अपना अपराध स्वीकार कर ले , उसी तरह सरकार को भी गुनाह माफ करने की सलाह दी। दोनो मे से किसी एक ने भी मेरी बात नही सुनी। न लोगो ने अपने दोष स्वीकार किये , न सरकार ने किसी को माफ किया।

स्व. रमणभाई आदि नागरिक मेरे पास आये और मुझे सत्याग्रह मुलतवी करने के लिए मनाने लगे। पर मुझे मनाने की आवश्यकता ही नही रही थी। मैने स्वयं निश्चय कर लिया था कि जब तक लोग शान्ति का पाठ न सीख ले, तब तक सत्याग्रह मुलतवी रखा जाये। इससे वे प्रसन्न हुए।

कुछ मित्र नाराज भी हुए। उनका ख्याल यह था कि अगर मै सब कहीं शान्ति की आशा रखूँ और सत्याग्रह की यही शर्त रहे, तो बड़े पैमाने पर सत्याग्रह कभी चल ही नही सकता। मैने अपना मतभेद प्रकट किया। जिन लोगो मे काम किया गया है , जिनके द्वारा सत्याग्रह करने की आशा रखी जाती है, वे यदि शान्ति का पालन न करे , तो अवश्य ही सत्याग्रह कभी चल नही सकता। मेरी दलील यह थी कि सत्याग्रही नेताओ को इस प्रकार की मर्यादित शान्ति बनाये रखने की शक्ति प्राप्त करनी चाहिये। अपने इन विचारो को मै आज भी बदल नही सका हूँ।

सत्य के प्रयोग

महात्मा गांधी
Chapters
बाल-विवाह बचपन जन्म प्रस्तावना पतित्व हाईस्कूल में दुखद प्रसंग-1 दुखद प्रसंग-2 चोरी और प्रायश्चित पिता की मृत्यु और मेरी दोहरी शरम धर्म की झांकी विलायत की तैयारी जाति से बाहर आखिर विलायत पहुँचा मेरी पसंद 'सभ्य' पोशाक में फेरफार खुराक के प्रयोग लज्जाशीलता मेरी ढाल असत्यरुपी विष धर्मों का परिचय निर्बल के बल राम नारायण हेमचंद्र महाप्रदर्शनी बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या? मेरी परेशानी रायचंदभाई संसार-प्रवेश पहला मुकदमा पहला आघात दक्षिण अफ्रीका की तैयारी नेटाल पहुँचा अनुभवों की बानगी प्रिटोरिया जाते हुए अधिक परेशानी प्रिटोरिया में पहला दिन ईसाइयों से संपर्क हिन्दुस्तानियों से परिचय कुलीनपन का अनुभव मुकदमे की तैयारी धार्मिक मन्थन को जाने कल की नेटाल में बस गया रंग-भेद नेटाल इंडियन कांग्रेस बालासुंदरम् तीन पाउंड का कर धर्म-निरीक्षण घर की व्यवस्था देश की ओर हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा बम्बई में सभा पूना में जल्दी लौटिए तूफ़ान की आगाही तूफ़ान कसौटी शान्ति बच्चों की सेवा सेवावृत्ति ब्रह्मचर्य-1 ब्रह्मचर्य-2 सादगी बोअर-युद्ध सफाई आन्दोलन और अकाल-कोष देश-गमन देश में क्लर्क और बैरा कांग्रेस में लार्ड कर्जन का दरबार गोखले के साथ एक महीना-1 गोखले के साथ एक महीना-2 गोखले के साथ एक महीना-3 काशी में बम्बई में स्थिर हुआ? धर्म-संकट फिर दक्षिण अफ्रीका में किया-कराया चौपट? एशियाई विभाग की नवाबशाही कड़वा घूंट पिया बढ़ती हुई त्यागवृति निरीक्षण का परिणाम निरामिषाहार के लिए बलिदान मिट्टी और पानी के प्रयोग एक सावधानी बलवान से भिड़ंत एक पुण्यस्मरण और प्रायश्चित अंग्रेजों का गाढ़ परिचय अंग्रेजों से परिचय इंडियन ओपीनियन कुली-लोकेशन अर्थात् भंगी-बस्ती? महामारी-1 महामारी-2 लोकेशन की होली एक पुस्तक का चमत्कारी प्रभाव फीनिक्स की स्थापना पहली रात पोलाक कूद पड़े जाको राखे साइयां घर में परिवर्तन और बालशिक्षा जुलू-विद्रोह हृदय-मंथन सत्याग्रह की उत्पत्ति आहार के अधिक प्रयोग पत्नी की दृढ़ता घर में सत्याग्रह संयम की ओर उपवास शिक्षक के रुप में अक्षर-ज्ञान आत्मिक शिक्षा भले-बुरे का मिश्रण प्रायश्चित-रुप उपवास गोखले से मिलन लड़ाई में हिस्सा धर्म की समस्या छोटा-सा सत्याग्रह गोखले की उदारता दर्द के लिए क्या किया ? रवानगी वकालत के कुछ स्मरण चालाकी? मुवक्किल साथी बन गये मुवक्किल जेल से कैसे बचा ? पहला अनुभव गोखले के साथ पूना में क्या वह धमकी थी? शान्तिनिकेतन तीसरे दर्जे की विडम्बना मेरा प्रयत्न कुंभमेला लक्षमण झूला आश्रम की स्थापना कसौटी पर चढ़े गिरमिट की प्रथा नील का दाग बिहारी की सरलता अंहिसा देवी का साक्षात्कार ? मुकदमा वापस लिया गया कार्य-पद्धति साथी ग्राम-प्रवेश उजला पहलू मजदूरों के सम्पर्क में आश्रम की झांकी उपवास (भाग-५ का अध्याय) खेड़ा-सत्याग्रह 'प्याज़चोर' खेड़ा की लड़ाई का अंत एकता की रट रंगरूटों की भरती मृत्यु-शय्या पर रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट वह अद्भूत दृश्य! वह सप्ताह!-1 वह सप्ताह!-2 'पहाड़-जैसी भूल' 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' पंजाब में खिलाफ़त के बदले गोरक्षा? अमृतसर की कांग्रेस कांग्रेस में प्रवेश खादी का जन्म चरखा मिला! एक संवाद असहयोग का प्रवाह नागपुर में पूर्णाहुति