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वेदांत, सांख्य और गीता

सांख्य और वेदांत का तथा उनके प्रर्वतक आचार्यों का भी तो नाम आया ही है। सांख्य के प्रर्वतक कपिल का उल्लेख 'कपिलोमुनि:' (10। 26) में तथा वेदांत के आचार्य व्यास का 'मुनीनामप्यहं व्यास:' (10। 37) में आया है। पहले कपिल का और पीछे व्यास का। इन दर्शनों का क्रम भी यही माना जाता है। इसी प्रकार 'वेदांतकृद्वेदविदेव चाहम्' (15। 15) में वेदांत का और 'सांख्य कृतान्ते प्रोक्तानि' (18। 13) तथा 'प्रोच्यते गुणसंख्याने' (18। 19) में सांख्यदर्शन का उल्लेख है। कृतांत और सिद्धांत शब्दों का एक ही अर्थ है। इसलिए 'सांख्ये कृतान्ते' का अर्थ है 'सांख्यसिद्धांत में।' सांख्यवादी भी तो आत्मा को अकर्त्ता, केवल तथा निर्विकार मानते हैं और यही बात यहाँ लिखी गई है। इसी प्रकार गुणसंख्यान शब्द का अर्थ है गुणों का वर्णन जहाँ पाया जाए। सांख्य शब्द का भी तो अर्थ है गिनना, वर्णन करना। सांख्य ने तो गुणों का ही ब्योरा ज्यादातर बताया है। इसीलिए उसे गुणसंख्यानशास्त्र भी कह दिया है। शेष सांख्य और योग शब्द ज्ञान आदि के ही अर्थ में गीता में आए हैं।

गीताधर्म और मार्क्सवाद

स्वामी सहजानन्द सरस्वती
Chapters
गीताधर्म कर्म का पचड़ा श्रद्धा का स्थान धर्म व्यक्तिगत वस्तु है धर्म स्वभावसिद्ध है स्वाभाविक क्या है? मार्क्‍सवाद और धर्म द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और धर्म भौतिक द्वन्द्ववाद धर्म, सरकार और पार्टी दृष्ट और अदृष्ट अर्जुन की मानवीय कमजोरियाँ स्वधर्म और स्वकर्म योग और मार्क्‍सवाद गीता की शेष बातें गीता में ईश्वर ईश्वर हृदयग्राह्य हृदय की शक्ति आस्तिक-नास्तिक का भेद दैव तथा आसुर संपत्ति समाज का कल्याण कर्म और धर्म गीता का साम्यवाद नकाब और नकाबपोश रस का त्याग मस्ती और नशा ज्ञानी और पागल पुराने समाज की झाँकी तब और अब यज्ञचक्र अध्यात्म, अधिभूत, अधिदैव, अधियज्ञ अन्य मतवाद अपना पक्ष कर्मवाद और अवतारवाद ईश्वरवाद कर्मवाद कर्मों के भेद और उनके काम अवतारवाद गुणवाद और अद्वैतवाद परमाणुवाद और आरंभवाद गुणवाद और विकासवाद गुण और प्रधान तीनों गुणों की जरूरत सृष्टि और प्रलय सृष्टि का क्रम अद्वैतवाद स्वप्न और मिथ्यात्ववाद अनिर्वचनीयतावाद प्रातिभासिक सत्ता मायावाद अनादिता का सिद्धांत निर्विकार में विकार गीता, न्याय और परमाणुवाद वेदांत, सांख्य और गीता गीता में मायावाद गीताधर्म और मार्क्सवाद असीम प्रेम का मार्ग प्रेम और अद्वैतवाद ज्ञान और अनन्य भक्ति सर्वत्र हमीं हम और लोकसंग्रह अपर्याप्तं तदस्माकम् जा य ते वर्णसंकर: ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव सर्व धर्मान्परित्यज्य शेष बातें उत्तरायण और दक्षिणायन गीता की अध्‍याय-संगति योग और योगशास्त्र सिद्धि और संसिद्धि गीता में पुनरुक्ति गीता की शैली पौराणिक गीतोपदेश ऐतिहासिक गीताधर्म का निष्कर्ष योगमाया समावृत