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गीता, न्याय और परमाणुवाद

आश्चर्य की बात कहिए या कुछ भी मानिए; मगर यह सही है कि गीता में गौतम और कणाद का परमाणुवाद पाया नहीं जाता। इसकी कहीं चर्चा तक नहीं है और न गौतम या कणाद की ही। विपरीत इसके गुणकीर्त्तन और गुणवाद तो भरा पड़ा है, जैसा कि पहले बताया जा चुका है। इतना ही नहीं। जिन योग, सांख्य या वेदांतदर्शनों ने इसे मान्य किया है उनका भी उल्लेख है और उनके आचार्यों का भी। यह ठीक है कि योगदर्शन के प्रर्वतक पतंजलि का जिक्र नहीं है। मगर योग की विस्तृत चर्चा पाँच, छह, आठ और अठारह अध्यायों में खूब आई है। यों तो प्रकारांतर से यह बात और अध्यायों में भी मन के निरोध या आत्मसंयम के नाम से बार-बार आई ही है। पतंजलि से इसी बात को 'योगश्चित्तवृत्ति निरोध:' (1। 2) तथा 'अध्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोध:' (2। 12) आदि सूत्रों में साफ ही कहा है। गीता के छठे अध्याधय में मालूम होता है, यह दूसरा सूत्र ही जैसे उद्धृत कर दिया गया हो 'अध्यासेन तु कौंतेय वैराग्येण च गृह्यते' (6। 35)। चौथे अध्यासय के 'आत्मसंयमयोगाग्नौ' (4। 27) में तो साफ ही मन के संयम को ही योग कहा है। और स्थानों में भी यही बात है। पाँचवें अध्याय के 27, 28 श्लोकों में, छठे अध्याय के 10-26 श्लोकों में तथा आठवें अध्याय के 12, 13 श्लोकों में तो साफ ही योग के प्राणायाम की बात लिखी गई है। अठारहवें के 51-53 श्लोकों में भी जिस ध्या नयोग की बात आई है, उसी का उल्लेख पतंजलि ने 'यथाभिमतध्यानाद्वा' (1।35) 'यमनियमासन प्राणायाम प्रत्याहार ध्याैनधारणासमाधयोऽष्टावंगानि' (2 ।29) तथा 'तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यायनम्' (3। 2) सूत्रों में किया है।

गीताधर्म और मार्क्सवाद

स्वामी सहजानन्द सरस्वती
Chapters
गीताधर्म कर्म का पचड़ा श्रद्धा का स्थान धर्म व्यक्तिगत वस्तु है धर्म स्वभावसिद्ध है स्वाभाविक क्या है? मार्क्‍सवाद और धर्म द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और धर्म भौतिक द्वन्द्ववाद धर्म, सरकार और पार्टी दृष्ट और अदृष्ट अर्जुन की मानवीय कमजोरियाँ स्वधर्म और स्वकर्म योग और मार्क्‍सवाद गीता की शेष बातें गीता में ईश्वर ईश्वर हृदयग्राह्य हृदय की शक्ति आस्तिक-नास्तिक का भेद दैव तथा आसुर संपत्ति समाज का कल्याण कर्म और धर्म गीता का साम्यवाद नकाब और नकाबपोश रस का त्याग मस्ती और नशा ज्ञानी और पागल पुराने समाज की झाँकी तब और अब यज्ञचक्र अध्यात्म, अधिभूत, अधिदैव, अधियज्ञ अन्य मतवाद अपना पक्ष कर्मवाद और अवतारवाद ईश्वरवाद कर्मवाद कर्मों के भेद और उनके काम अवतारवाद गुणवाद और अद्वैतवाद परमाणुवाद और आरंभवाद गुणवाद और विकासवाद गुण और प्रधान तीनों गुणों की जरूरत सृष्टि और प्रलय सृष्टि का क्रम अद्वैतवाद स्वप्न और मिथ्यात्ववाद अनिर्वचनीयतावाद प्रातिभासिक सत्ता मायावाद अनादिता का सिद्धांत निर्विकार में विकार गीता, न्याय और परमाणुवाद वेदांत, सांख्य और गीता गीता में मायावाद गीताधर्म और मार्क्सवाद असीम प्रेम का मार्ग प्रेम और अद्वैतवाद ज्ञान और अनन्य भक्ति सर्वत्र हमीं हम और लोकसंग्रह अपर्याप्तं तदस्माकम् जा य ते वर्णसंकर: ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव सर्व धर्मान्परित्यज्य शेष बातें उत्तरायण और दक्षिणायन गीता की अध्‍याय-संगति योग और योगशास्त्र सिद्धि और संसिद्धि गीता में पुनरुक्ति गीता की शैली पौराणिक गीतोपदेश ऐतिहासिक गीताधर्म का निष्कर्ष योगमाया समावृत